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Friday, 14 January 2022

मकर संक्रांति: दक्षिणायन से उत्तरायण

मकर संक्रांति का पर्व आ गया है। हर साल की तरह इस साल भी मकर संक्रांति 14 जनवरी के दिन मनाई जा रही है। देश भर में मकर संक्रांति अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाई जाती है। मकर संक्रांति का पर्व धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक अधिक महत्वपूर्ण होता है। जब सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, जिसे "संक्रांति" कहा जाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को "मकर संक्रांति" के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन देव भी धरती पर अवतरित होते हैं, आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है, अंधकार का नाश व प्रकाश का आगमन होता है। लेकिन मकर संक्रांति का जितना धार्मिक महत्व होता है, उतना ही अधिक वैज्ञानिक महत्व भी होता है। इसके अलावा मकर संक्रांति से जुड़े कई रोचक तथ्य भी हैं।



मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व

मकर संक्रांति के पावन दिन पर लंबे दिन और रातें छोटी होने लगती हैं। सर्दियों के मौसम में रातें लंबी हो जाती हैं और दिन छोटे होने लगते हैं, जिसकी शुरुआत 25 दिसंबर से होती है। लेकिन मकर संक्रांति से ये क्रम बदल जाता है। माना जाता है कि मकर संक्रांति से ठंड कम होने की शुरुआत हो जाती है।

मकर संक्रांति का महत्व...

पहला कारण
मकर सक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए आते हैं। मकर राशि के स्वामी शनि हैं और इस दिन सूर्य देव शनि महाराज का भंडार भरते हैं।

दूसरा कारण
ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल संभव नही, लेकिन इस दिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं। इसलिए पुराणों में यह दिन पिता-पुत्र को संबंधो में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।

तीसरा कारण
मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने मधु कैटभ से युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने मधु के कंधे पर मंदार पर्वत रखकर उसे दबा दिया था। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु मधुसूदन कहलाने लगे

चौथा कारण

गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भागीरथ ने अपने पूर्वजों के आत्मा की शांति के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इस कारण से मकर सक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।

पांचवा कारण

इच्छामृत्यु के वरदान से भीष्म बाण लगने के बाद भी सूर्य उत्तराण होने तक जीवित रहे थे। पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर स्वेच्छा से शरीर का त्याग किया था, कारण यह है कि उत्तरायण में देह त्यागने वाले व्यक्ति की आत्मा को मोक्ष मिलती है। 

मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा है। लोग छतों और मैदानों पर रंग-बिरंगी पतंगें उड़ाते दिखाई देते हैं। पतंग उड़ाने की मान्यता का मकर संक्रांति के साथ संबंध है। इसके पीछे अच्छी सेहत का राज है। दरअसल मंकर संक्रांति पर सूरज से मिलने वाली धूप से स्वास्थ्य लाभ होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से इस दिन सूर्य की किरण शरीर के लिए अमृत समान है, जो विभिन्न रोगों को दूर करने में सहायक होती है।

मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग में भगवान राम ने मकर संक्रांति के दिन अपने भाइयों और हनुमान के साथ पतंग उड़ाई थीं। तब से मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा शुरू हुआ। इस दिन स्नान, पूजा और दान-पुण्य का बेहद महत्व है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस बार मकर संक्रांति की शुरुआत रोहणी नक्षत्र में हो रही है। इस नक्षत्र को शुभ माना जाता है। साथ ही ब्रह्म योग और आनंदादि योग बन रहा है, जो फलदायी माना जाता है।

इसलिए उड़ाते हैं मकर संक्रांति पर पतंग

- मकर संक्रांति और पतंग एक-दूसरे के पर्याय हैं। पतंग के बिना मकर संक्रांति पर्व के बारे में सोच भी नहीं जा सकता। भारत के अधिकांश हिस्सों में इस दिन पतंगबाजी की जाती है, खासतौर पर गुजरात में।
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इसके अलावा मध्य प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में भी मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा है। मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने के पीछे कोई धार्मिक कारण नहीं अपितु वैज्ञानिक पक्ष अवश्य है।
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सर्दी के कारण हमारे शरीर में कफ की मात्रा बढ़ जाती है और त्वचा भी रुखी हो जाती है। मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण होता है, इस कारण इस समय सूर्य की किरणें औषधि का काम करती हैं।
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पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आ जाता है, जिससे सर्दी से जुड़ी शारीरिक समस्याओं से निजात मिलती है व त्वचा को विटामिन डी भी पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
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इस मौसम में विटामिन डी हमारे शरीर के लिए बहुत आवश्यक होता है, जिससे हमें जीवनदायिनी शक्ति मिलती है।
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यही कारण है कि मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा की शुरूआत हुई।

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