Globalwits

Monday, 22 January 2024

‘श्रीराम’ के १०८ नाम और उनका अर्थ': -

सहस्त्रनाम-तुल्य ‘श्रीराम’-नाम


राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।।

रकारादीनि नामानि शृण्वतो मम पार्वति। मन: प्रसन्नतां याति रामनामाभिशंकया।।

‘श्रीराम’ के १०८ नाम और उनका अर्थ: -

१. ॐ श्रीराम: – जिनमें योगीजन रमण करते हैं, ऐसे सच्चिदानन्दघन श्रीराम और सीता-सहित राम।

२. रामचन्द्र: – चन्द्रमा के समान मनोहर राम।

३. रामभद्र: – कल्याणमय राम।

४. शाश्वत: – सनातन भगवान।

५. राजीवलोचन: – कमल के समान नेत्रों वाले।

६. श्रीमान् राजेन्द्र: – श्रीसम्पन्न और राजाओं के भी राजा।

७. रघुपुंगव: – रघुकुल में सर्वश्रेष्ठ।

८. जानकीवल्लभ: – जनककिशोरी सीता के प्रियतम।

९. जैत्र: – विजयशील।

१०. जितामित्र: – शत्रुओं को जीतने वाले।

११. जनार्दन: – सभी मनुष्यों द्वारा याचना करने योग्य।

१२. विश्वामित्रप्रिय: – विश्वामित्रजी के प्रिय।

१३. दान्त: – जितेन्द्रिय।

१४. शरण्यत्राणतत्पर: – शरणागतों की रक्षा में संलग्न।

१५. वालिप्रमथन: – वानर बालि को मारने वाले।

१६. वाग्मी: – अच्छे वक्ता।

१७. सत्यवाक्: – सत्यवादी।

१८. सत्यविक्रम: – सत्य पराक्रमी।

१९. सत्यव्रत: – सत्य का दृढ़तापूर्वक पालन करने वाले।

२०. व्रतफल: – सम्पूर्ण व्रतों के प्राप्त होने वाले फलस्वरूप।

२१. सदा हनुमदाश्रय: – हनुमानजी के हृदयकमल में सदा निवास करने वाले।

२२. कौसल्येय: – कौसल्याजी के पुत्र।

२३. खरध्वंसी: – खर राक्षस का नाश करने वाले।

२४. विराधवधपण्डित: – विराध दैत्य का वध करने में कुशल।

२५. विभीषणपरित्राता: – विभीषण के रक्षक।

२६. दशग्रीवशिरोहर: – दस सिर वाले रावण के मस्तक को काटने वाले।

२७. सप्ततालप्रभेत्ता: – सात तालवृक्षों को एक ही बाण से बींध डालने वाले।

२८. हरकोदण्डखण्डन: – जनकपुर में शिवजी के धनुष को तोड़ने वाले।

२९. जामदग्न्यमहादर्पदलन: – परशुरामजी के महान् अभिमान को चूर्ण करने वाले।

३०. ताटकान्तकृत्: – ताड़का नाम की राक्षसी का वध करने वाले।

३१. वेदान्तपार: – वेदान्त से भी अतीत, वेद भी जिसका पार नही पा सकता।

३२. वेदात्मा: – वेदस्वरूप।

३३. भवबन्धैकभेषज: – संसार-बंधन से मुक्ति की एकमात्र औषधि।

३४. दूषणत्रिशिरोऽरि: — दूषण और त्रिशिरा नामक राक्षसों के शत्रु।

३५. त्रिमूर्ति: – ब्रह्मा, विष्णु और शिव–तीन रूप धारण करने वाले।

३६. त्रिगुण: – तीनों गुणों के आश्रय।

३७. त्रयी: – तीन वेदस्वरूप।

३८. त्रिविक्रम: – वामन अवतार में तीन पगों से त्रिलोकी को नाप लेने वाले।

३९. त्रिलोकात्मा: – तीनों लोकों के आत्मा।

४०. पुण्यचारित्रकीर्तन: – जिनकी लीलाओं का कीर्तन परम पवित्र है।

४१. त्रिलोकरक्षक: – तीनों लोकों की रक्षा करने वाले।

४२. धन्वी: – धनुष धारण करने वाले।

४३. दण्डकारण्यवासकृत्: – दण्डकारण्य में निवास करने वाले।

४४. अहल्यापावन: - अहल्या को पवित्र करने वाले।

४५. पितृभक्त: – पिता के भक्त।

४६. वरप्रद: – वर देने वाले।

४७. जितेन्द्रिय: – इन्द्रियों को वश में रखने वाले।

४८. जितक्रोध: – क्रोध को जीतने वाले।

४९. जितलोभ: – लोभ को परास्त करने वाले।

५०. जगद्गुरु: – अपने चरित्र से संसार को शिक्षा देने के कारण सबके गुरु।

५१. ऋक्षवानरसंघाती: – वानर और भालुओं की सेना का संगठन करने वाले।

५२. चित्रकूटसमाश्रय: – वनवास के समय चित्रकूट पर्वत पर निवास करने वाले।

५३. जयन्तत्राणवरद: – जयन्त की रक्षा करके वर देने वाले।

५४. सुमित्रापुत्रसेवित: – सुमित्रानन्दन लक्ष्मण द्वारा सेवित।

५५. सर्वदेवाधिदेव: – सम्पूर्ण देवताओं के भी देवता।

५६. मृतवानरजीवन: – मरे हुए वानरों को जीवित करने वाले।

५७. मायामारीचहन्ता: – मायावी मृग बनकर आए मारीच राक्षस का वध करने वाले।

५८. महाभाग: – महान सौभाग्यशाली।

५९. महाभुज: – बड़ी-बड़ी बांहों वाले।

६०. सर्वदेवस्तुत: – सम्पूर्ण देवता जिनकी स्तुति करते हैं।

६१. सौम्य: – शान्त स्वभाव वाले।

६२. ब्रह्मण्य: – ब्राह्मणों के हितैषी।

६३. मुनिसत्तम: – मुनियों में श्रेष्ठ।

६४. महायोगी: – महायोगी।

६५. महोदार: – परम उदार।

६६. सुग्रीवस्थिरराज्यद: – सुग्रीव को स्थिर राज्य प्रदान करने वाले।

६७. सर्वपुण्याधिकफल: – समस्त पुण्यों के उत्कृष्ट फलरूप।

६८. स्मृतसर्वाघनाशन: – स्मरण करने मात्र से ही सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाले।

६९. आदिपुरुष: – ब्रह्माजी को भी उत्पन्न करने वाले सबके आदिभूत परमात्मा।

७०. महापुरुष: – समस्त पुरुषों में महान्।

७१. परमपुरुष: – सर्वोत्कृष्ट पुरुष।

७२. पुण्योदय: – पुण्य को प्रकट करने वाले।

७३. महासार: – सर्वश्रेष्ठ सारभूत परमात्मा।

७४. पुराणपुरुषोत्तम: – पुराणप्रसिद्ध क्षर-अक्षर पुरुषों से श्रेष्ठ लीलापुरुषोत्तम।

७५. स्मितवक्त्र: – जिनके मुख पर सदा मुसकान छाई रहती है।

७६. मितभाषी: – कम बोलने वाले।

७७. पूर्वभाषी: – पूर्ववक्ता।

७८. राघव: – रघुकुल में अवतीर्ण।

७९. अनन्तगुणगम्भीर: – अनन्त गुणों से युक्त एवं गम्भीर।

८०. धीरोदात्तगुणोत्तर: – धीर और उदात्त नायक के लोकोत्तर गुणों से युक्त।

८१. मायामानुषचारित्र: – अपनी माया का आश्रय लेकर मनुष्यों की-सी लीलाएं करने वाले।

८२. महादेवाभिपूजित: – भगवान शंकर द्वारा निरन्तर पूजित।

८३. सेतुकृत्: – समुद्र पर पुल बांधने वाले।

८४. जितवारीश: – समुद्र को जीतने वाले।

८५. सर्वतीर्थमय: – सर्वतीर्थस्वरूप।

८६. हरि: – पाप-ताप को हरने वाले।

८७. श्यामांग: – श्याम विग्रह वाले।

८८. सुन्दर: – परम मनोहर।

८९. शूर: – अनुपम शौर्य से सम्पन्न वीर।

९०. पीतवासा: – पीताम्बरधारी।

९१. धनुर्धर: – धनुष धारण करने वाले।

९२. सर्वयज्ञाधिप: – सम्पूर्ण यज्ञों के स्वामी।

९३. यज्ञ: – यज्ञस्वरूप।

९४. जरामरणवर्जित: – बुढ़ापा और मृत्यु से रहित।

९५. शिवलिंगप्रतिष्ठाता: – रामेश्वर नामक ज्योतिर्लिंग की स्थापना करने वाले।

९६. सर्वाघगणवर्जित: – समस्त पाप-राशि से रहित।

९७. परमात्मा: – परम श्रेष्ठ, नित्य-शुद्ध-बुद्ध-मुक्त स्वभाव।

९८. परं ब्रह्म: – सर्वोत्कृष्ट, सर्वव्यापी परेश्वर।

९९. सच्चिदानन्दविग्रह: – सत्, चित् और आनन्दमय दिव्यविग्रह वाले।

१००. परं ज्योति: – परम प्रकाशमय, परम ज्ञानमय।

१०१. परं धाम: – साकेत धामस्वरूप।

१०२. पराकाश: – महाकाशस्वरूप ब्रह्म।

१०३. परात्पर: – मन, बुद्धि आदि से परे परमात्मा।

१०४. परेश: – सर्वोत्कृष्ट शासक।

१०५. पारग: – सबको पार लगाने वाले।

१०६. पार: – भवसागर से पार जाने की इच्छा रखने वाले प्राणियों के प्रातव्य परमात्मा।

१०७. सर्वभूतात्मक: – सर्वभूतस्वरूप।

१०८. शिव: – परम कल्याणमय।

‘श्रीराम’ के १०८ नामों के पाठ व श्रवण का माहात्म्य: -

इस प्रकार श्रीमहादेवजी ने ‘श्रीराम’ के परम पुण्यमय १०८ नाम और उनके पाठ व श्रवण का माहात्म्य पार्वतीजी को बताते हुए कहा–जो मनुष्य दूर्वादल के समान श्यामसुन्दर कमलनयन पीताम्बरधारी भगवान श्रीराम का इन दिव्य नामों से स्तवन करता है–

Y      वह संसार-बंधन से मुक्त होकर परम पद को प्राप्त कर लेता है।

Y      मनुष्य के जन्म-जन्मान्तर के पाप नष्ट हो जाते हैं।

Y      उसकी चंचल लक्ष्मी स्थिर हो जाती है अर्थात् लक्ष्मीजी सदैव उसके घर में निवास करती हैं।

Y      शत्रु मित्र बन जाते हैं। सभी प्राणी उसके अनुकूल हो जाते हैं।

Y      उस मनुष्य के लिए जल स्थल बन जाता है, जलती हुई अग्नि शान्त हो जाती है।

Y      क्रूर ग्रहों के समस्त उपद्रव शान्त हो जाते हैं। मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। वह सबका वन्दनीय, सब तत्त्वों का ज्ञाता और भगवद्भक्त हो जाता है।





No comments:

Post a Comment