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Monday, 21 April 2025

"जीवन को स्पर्श करें"

इच्छाएं अनन्त हैं, मरने वाला चंद सांसें चाहता है, लंगड़ा को पैर चाहिए, पैर वाले को साइकिल, साइकिक वाले को बाइक, बाइक वाले को कार, और कार वाले को प्राइवेट जेट इसी तरह जो जिसके पास नहीं बस वही उसे चाहिये। जो है उसका कोई मोल नहीं, जो ईश्वर ने दिया उसका कभी आभार व्यक्त नहीं किया।

इच्छाओं का भी अपना अजीब चरित्र होता है…. खुद के मन की बहुत अच्छी दूसरे की मन की बहुत बुरी।

हम लोग तो मरते रहे क़िस्तों में हमेशा
फिर भी हमें जीने का हुनर क्यूँ नहीं आया

"सभी मानवीय कार्यों के इन सात कारणों में से एक या अधिक कारण होते हैं: संयोग, स्वभाव, विवशता, आदत, कारण, जुनून और इच्छा।" [अरस्तू]

काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से बचे, सारी सांसारिक समस्याएं इन्हीं की वजह से आती है जी, ज्यादा पैसा, ज्यादा गुस्सा, ज्यादा मोह, ज्यादा हवस और घमंड यही तो परेशानियों कि जड़ें है जी और अंत में सभी कुछ यहीं तो छोड़ कर जाना तो यह सब नहीं शुभ कर्म, शुभ सेवा, मधुर वाणी, प्रभु भक्ति यही कमाएं ।

समस्या नजर ही तब आती हैं जब हम * अपेक्षा तो करते हैं पर प्रयास में उत्सुक नहीं होते *!!

अगर आप सामने आया काम, शुरू कर देते है तो समस्या * समाधान * की तरफ बढ जाती है और समस्या नदारद!!

जीवन कठिन नहीं, हम ही हैं इसे कठिन या सहज बनाने वाले!!

जीवन में जब हमारे पास चने होते हैं तो दांत नहीं होते, और दांत होते हैं तो खाने के लिए चने नहीं होते। इसी में जीवन का मज़ा है!

"यह जिन्दगी है जनाब, मां नहीं, जो हर वक्त प्यार दे" …

पुराने समय में एक संत को रास्ते में से एक स्वर्ण मुद्रा मिली। संत बहुत विद्वान थे। उन्हें धन और सुख-सुविधाओं का मोह नहीं था। इसीलिए उन्होंने सोचा कि ये स्वर्ण मुद्रा किसी व्यक्ति को दे देंगे।

संत कई दिनों तक स्वर्ण मुद्रा के लिए सबसे गरीब व्यक्ति को खोजते रहे, लेकिन उन्हें कोई योग्य व्यक्ति नहीं मिल रहा था। तभी एक दिन संत ने देखा कि उनके राज्य का राजा पूरी सेना के साथ गुजर रहा था। संत ने पूछताछ की तो मालूम हुआ कि राजा दूसरे राज्य पर आक्रमण करने जा रहे हैं। ये बात मालूम होते ही संत ने तुरंत राजा के पास पहुंचे और राजा को वह स्वर्ण मुद्रा दे दी।

राजा ये देखकर हैरान हो गए कि एक संत उन्हें स्वर्ण मुद्रा क्यों दे रहे हैं। राजा ने इसका कारण पूछा। संत ने कहा कि कुछ दिन पहले मुझे ये मुद्रा रास्ते में मिली थी। तब मैंने सोचा था कि इसे किसी गरीब व्यक्ति को दे दूंगा। आज ये मुद्रा आपको दे रहा हूं।

ये सुनकर राजा क्रोधित हो गए। उन्होंने कि गुरुदेव मैं इस राज्य का राजा हूं, आप मुझे गरीब क्यों बोल रहे हैं?

संत बोले कि राजन् आपके पास अपार धन-संपत्ति है, किसी सुख-सुविधा की कमी नहीं है, फिर भी आप इतनी बड़ी सेना लेकर दूसरे राज्य पर अधिकार करने जा रहे हैं। संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। जो लोग असंतुष्ट रहते हैं, उन्हें कभी भी सुख नहीं मिल पाता है। आपके पास इतना बड़ा राज्य है, लेकिन आप अंसतोष की वजह से ही दूसरे राज्य पर आक्रमण करने जा रहे हैं। आप दूसरों के धन पर अधिकार करने के युद्ध में नरसंहार करने को तैयार हैं, आपसे बड़ा गरीब कौन हो सकता है?

ये बात सुनकर राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया। उसने संत को प्रणाम किया और सेना को वापस लौटने का आदेश दे दिया।

प्रसंग की सीख

किसी भी व्यक्ति को धन-संपत्ति से सुख नहीं मिलता है। जो लोग संतुष्ट रहते हैं, वही सुखी रहते हैं। अगर कोई धनी व्यक्ति असंतुष्ट है तो वह कभी भी सुखी नहीं हो सकता है।

जिस चाभी से ताला बंध होता है, उसी से खुल भी जाता है। मन ही समस्या पैदा करता है, मन ही समाधान है। मन ही बंधन और मुक्ति का कारण है।

"जीवन को स्पर्श करें" एक आह्वान है — wake up, feel, live, connect.
सिर्फ समय बिताने से जीवन नहीं होता... उसे छूना पड़ता है।