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Wednesday, 13 November 2024

नाम जप मंत्र

नाम जप एक ऐसी चीज है जिसके लिए किसी देवी-देवता या फिर गुरु से लेने की जरूरत नहीं है। इसे आप कभी भी किसी भी समय से आरंभ कर सकते हैं। कई साधक राधा रानी, श्री राम, श्री कृष्ण, शिव जी या फिर अन्य आराध्य का नाम जप करते हैं। प्रभु का नाम लेने मात्र से व्यक्ति के हर एक कष्ट दूर हो जाते हैं।

किसी तरह से भी नाम जपने से कल्याण ही होता है।

भायं कुभायं अनख आलसहू। नाम जपत मंगल दिसि दसहू।।

राम-राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि पाप पुंज समुहाही।

नाम जप करते हुए अगर रुचि नहीं है, आलस आ रहा हैं मन नहीं लगता हैं, तब भी नाम जाप कीर्तन करने से फल मिलता ही है।

श्री गणेश के इन 12 नामों के जाप से मिलते हैं अद्भुत लाभ

पहला नाम वक्रतुण्ड, दूसरा एकदन्त, तीसरा कृष्णपिड्गाक्ष, चौथा गजवक्त्र, पांचवां लम्बोदर, छठा विकट, सातवां विघ्नराजेन्द्र, आठवां धूमवर्ण, नौवां भालचन्द्र, दसवां विनायक, ग्यारहवां गणपति और बारहवां गजानन है. जो व्यक्ति प्रतिदिन इन नामों का जप करता है, उसकी सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं.

श्रीराम को विभिन्न नामों से जाना जाता है, लेकिन उनके प्रमुख नाम हैं:

राम, रघुकुल, श्रीराम, सीतापति राम, मार्गदर्शक राम, और मार्यादापुरुषोत्तम राम

राधा रानी के 28 नाम

भगवान कृष्ण की सहचरी राधा जी बरसाना के गोपों राजा वृषभानु की पुत्री थी। इसलिए वे वृषभानुसुता कहलाती हैं, जो उनके 28 पवित्र नामों से एक है। राधा जी के जिन 28 नामों से उनका गुणगान किया जाता है, वे इस प्रकार हैं:

1. राधा, 2. रासेश्वरी, 3. रम्या, 4. कृष्णमत्राधिदेवता, 5. सर्वाद्या, 6. सर्ववंद्या, 7. वृंदावनविहारिणी, 8. वृंदाराधा, 9. रमा, 10. अशेषगोपीमंडलपूजिता, 11. सत्या, 12. सत्यपरा, 13. सत्यभामा, 14. श्रीकृष्णवल्लभा, 15. वृषभानुसुता, 16. गोपी, 17. मूल प्रकृति, 18. ईश्वरी, 19. गान्धर्वा, 20. राधिका, 21. राम्या, 22. रुक्मिणी, 23. परमेश्वरी, 24. परात्परतरा, 25. पूर्णा, 26. पूर्णचन्द्रविमानना, 27. भुक्ति-मुक्तिप्रदा और 28. भवव्याधि-विनाशिनी

निरोगी काया और घर में संपन्नता का वास चाहते हैं तो भगवान सूर्य के 21 नामों का पाठ करना

1. विकर्तन- विपत्तियों को नष्ट करने वाले

2. विवस्वान- प्रकाश रूप

3. मार्तंड

4. भास्कर

5. रवि

6. लोकप्रकाशक

7. श्रीमान

8. लोक चक्षु

9. गृहेश्वर

10. लोक साक्षी

11. त्रिलोकेश

12. कर्ता

13. हर्ता

14. तमिस्त्रहा- अंधकार को नष्ट करने वाले

15. तपन

16. तापन

17. शुचि- पवित्रतम

18. सप्ताश्ववाहन

19. गभस्तिहस्त- किरणें जिनके हाथ स्वरूप हैं

20. ब्रह्मा

21. सर्वदेवनमस्कृत.

सूर्यदेव के इन 12 नामों का करें जप

– ॐ सूर्याय नम:
– ॐ भास्कराय नम:
– ॐ खगय नम:
– ॐ पुष्णे नम:
– ॐ मारिचाये नम:
– ॐ आदित्याय नम:
– ॐ सावित्रे नम:
– ॐ रवये नम:
– ॐ मित्राय नम:
– ॐ भानवे नम:
– ॐ आर्काय नम:
– ॐ हिरण्यगर्भाय नम:

तुलसी माता के आठ प्रमुख नाम

पुष्पसारा, नन्दिनी, वृंदा, वृंदावनी, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, तुलसी और कृष्ण जीवनी।

पतित पावनी मां गंगा के प्रमुख नाम निम्न है

जाहनवी

त्रिपथगा

त्रिलोक पथ गामिनी

भागीरथी

भाग्यवती

मन्दाकिनी

पद्मा

हरिवल्लभा

गिरिमंदला गामिनी

सिंधुगमिनी

शुभ्रांगी

श्रीमती

त्रिवेणी

अनंता

अतुला

दुखा हंतरी


श्रीहरि विष्णु के इन 16 नामों को जपने से होते हैं संकट दूर

किन-किन परिस्थितियों में जपें भगवान विष्णु के नाम

1. दवाई लेते समय जपें- विष्णु
2. भोजन करते समय जपें- जनार्दन
3. सोते समय जपें- पद्मनाभ
4. शादी-विवाह के समय जपें- प्रजापति
5. युद्ध के समय - चक्रधर 
6. यात्रा के समय जपें- त्रिविक्रम 
7. शरीर त्यागते समय जपें- नारायण 
8. पत्नी के साथ जपें- श्रीधर
9. नींद में बुरे स्वप्न आते समय जपें- गोविंद 
10. संकट के समय जपें- मधुसूदन
11. जंगल में संकट के समय जपें- नृसिंह 

12. अग्नि के संकट के समय जपें- जलाशयी 

13. जल में संकट के समय जपें- वाराह 
14. पहाड़ पर संकट के समय जपें- रघुनंदन
15. गमन करते समय जपें- वामन 
16. अन्य सभी शेष कार्य करते समय जपें- माधव

भगवान श्री कृष्ण के दिव्य नाम:

1.      अनंतरूप : जिसके अनंत रूप हैं।

2.      अच्युत : जिसका कभी क्षय या पतन न हो।

3.      अरिसुदन : शत्रु के प्रयास के बिना विनाशक।

4.      कृष्ण : कृष – आधिकारिक है और ण – आनंददायक है। यह दोनों के एकीकृत परब्रह्म भी कृष्ण ही कहा जाता है।

5.      केशव : के – ब्रह्मा और ईश (शिव) को प्रेम करता है।

6.      केशिनिसुदन : केशी नामक दैत्य का संहारक कर ने वाला।

7.      कमलपत्राक्ष : कमल के पत्तों जैसी सुंदर आंखों वाले।

8.      गोविंद : यानि जो वेदांत वाक्यों के माध्यम से जाना जा सकता है वह।

9.      जगतपति: सारी दुनिया के भगवान।

10.    जगनिवास : पूरे संसार का निवास जिन मे हो वह, जो समग्र संसार मे व्याप्त है वह।

11.    जनार्दन : दुष्टों या भक्तों के शत्रु का नाश करने वाला।

12.    देवदेव : देवताओं के पूजनीय।

13.    देववर : सभी देवताओ मे श्रेष्ठ।

14.    पुरुषोत्तम : चरित्र अथवा किसी भी वस्तुओ मे सबसे सर्व श्रेष्ठ है वह, या जो पुरुष शरीर की परिपूर्णता में रहते हैं,  और जीवो मे सब से श्रेष्ठ है वह।

15.    भगवान : धर्म, यश, लक्ष्मी, वैराग्य, ऐश्वर्य, और मोक्ष, इन छह वस्तुओं के प्रदाता। साथ ही सभी भूतों की उत्पत्ति, प्रलय, जन्म, मृत्यु तथा विद्या और अविद्या के ज्ञाता हैं।

16.    भूतेश : भूतों का देवता।

17.    मधुसूदन : मधु नामक दैत्य का संहारक।

18.    महाबाहु : जिनके हाथ संयम और कृपा के लिए अविश्वसनीय रूप से सक्षम हैं वह।

19.    माधव : माया के जानकार।

20.    यादव : यदुकुल में जन्मे।

21.    योगवित्तम : योग जानने वालों में श्रेष्ठ।

22.    वासुदेव : वसुदेव के सुपुत्र।

23.    वाश्र्णेय :  वृष्णि गोत्र वाले।

24.    विष्णु : सर्व व्यापी।

25.    हृषिकेश : इंद्रियों के स्वामी।

26.    हरि : सांसारिक दुखों का नाश करने वाला।

माँ लक्ष्मी जी के बारह नामों का जाप अत्यंत लाभकारी है इनका जाप करने से वैभव और यश की प्राप्ति होती है। ये बारह नाम इस प्रकार है।

ईश्वरी. कमला. लक्ष्मी. चला. भूति. हरिप्रिया. पद्मा. पद्मालया. रमा. संपद. श्रीं. पद्मधारिणी. ।

मां दुर्गा के 32 नामों का करें जाप, सभी मनोकामना होगी पूर्ण मां के इन 32 नामों को दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला भी कहा जाता है। 

1.    दुर्गा

2.    दुर्गतिशमनी

3.    दुर्गाद्विनिवारिणी

4.    दुर्ग मच्छेदनी

5.    दुर्गसाधिनी

6.    दुर्गनाशिनी

7.    दुर्गतोद्धारिणी

8.    दुर्गनिहन्त्री

9.    दुर्गमापहा

10. दुर्गमज्ञानदा

11. दुर्गदैत्यलोकदवानला

12. दुर्गमा

13. दुर्गमालोका

14. दुर्गमात्मस्वरुपिणी

15. दुर्गमार्गप्रदा

16. दुर्गम विद्या

17. दुर्गमाश्रिता

18. दुर्गमज्ञान संस्थाना

19. दुर्गमध्यान भासिनी

20. दुर्गमोहा

21. दुर्गमगा

22. दुर्गमार्थस्वरुपिणी

23. दुर्गमासुर संहंत्रि

24. दुर्गमायुध धारिणी

25. दुर्गमांगी

26. दुर्गमता

27. दुर्गम्या

28. दुर्गमेश्वरी

29. दुर्गभीमा

30. दुर्गभामा

31. दुर्गमो

32. दुर्गोद्धारिणी

भद्रा के ये 12 नाम आपकी तकलीफ़ों में राहत देगा ।

धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली, असुरक्षयकरी

शिव के 11 रुद्र अवतारों के नाम 

कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भू, चण्ड, भव ये रुद्र, सुरभी के पुत्र हैं. ये सुख के अवास स्थान हैं और देवताओं की कार्य सिद्धि के लिए शिव रूप में उत्पन्न हुए हैं. ये 11 रुद्र, दिव्य प्राणियों की रक्षा के लिए अस्तित्व में आए और युद्ध में उपहार में दिए गए. रुद्र का अर्थ है "जो समस्याओं को जड़ से मिटा दे". ऋग्वेद में, रुद्र की "पराक्रमी में भी सबसे शक्तिशाली" के रूप में प्रशंसा की गई है।

हनुमान जी के द्वादश नाम

आनंद रामायण में हनुमान जी के विशेष बारह नाम बताए गए हैं- 

हनुमान, अंजनीसुत, वायुपुत्र, महाबल, रामेष्ट, फाल्गुनसखा, पिंगाक्ष, अमितविक्रम, उदधिक्रमण, सीतोशोकविनाशन, लक्ष्मणप्राणदाता, दशग्रीवदर्पहा.

लंबी आयु और स्वस्थ जीवन प्रदान करने वाले यह दिव्य मंत्र

उदयन्तं भास्करं प्रणमान्ति ये दिने दिने। चत्वारि वर्धते तेषामायुर्विद्यायशे बलम्।।

क्क हौं जूं सः, क्क भूर्भुवः स्वः। क्क भूर्भवः स्वः। क्क त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्व्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। स्वः भुवः भूः क्क हौं जूं सः क्क।

अच्युतानन्त गोविन्द नामोच्चारण भेषजात् |
नश्यन्ति सकल रोगः सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ||

अच्युतानन्तगोविन्द विष्णो नारायणामृत |
रोगान्मे नाशयाशेषान आशु-धन्वन्तरे हरे ||

अच्युतानन्त गोविन्द विष्णो धन्वन्तरे हरे |
वासुदेवाखिलानस्य रोगान् नाशाय नाशाय ||

सोमनाथं वैद्यनाथं धन्वन्तरिमथाश्विनौ |
एतान् संस्मरतः प्रातः व्याधिः स्पर्श न विद्यते ||

१) ॐ तेजसे नम: २) ॐ प्रसन्नात्मने नम: ३) ॐ शूराय नम: ४) ॐ शान्ताय नम: ५) ॐ मारुतात्मजाय नमः ६) ॐ हं हनुमते नम:

ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय विश्वरूपाय अमितविक्रमाय
प्रकट-पराक्रमाय महाबलाय सूर्यकोटिसमप्रभाय रामदूताय स्वाहा।

अन्नब्रह्मा रसोविष्णुः भोक्ता देवो महेश्वरः ।
एवम् ज्ञक्त्व तु यो भुन्क्ते अन्न दोषो न लिप्यते॥

अन्न ब्रह्मा रसं विष्णुं भोक्ता देवो जनार्दनम् एवं ध्यात्वा तथा ज्ञात्वा अन्न दोषो लिप्यते

पश्येम शरदः शतम् ।।१।।

जीवेम शरदः शतम् ।।२।।

बुध्येम शरदः शतम् ।।३।।

रोहेम शरदः शतम् ।।४।।

पूषेम शरदः शतम् ।।५।।

भवेम शरदः शतम् ।।६।।

भूयेम शरदः शतम् ।।७।।

भूयसीः शरदः शतात् ।।८।। (अथर्ववेद, काण्ड १९, सूक्त ६७)

जिसके अर्थ समझना कदाचित् पर्याप्त सरल है – हम सौ शरदों तक देखें, यानी सौ वर्षों तक हमारे आंखों की ज्योति स्पष्ट बनी रहे (१)। सौ वर्षों तक हम जीवित रहें (२); सौ वर्षों तक हमारी बुद्धि सक्षम बनी रहे, हम ज्ञानवान् बने रहे (३); सौ वर्षों तक हम वृद्धि करते रहें, हमारी उन्नति होती रहे (४); सौ वर्षों तक हम पुष्टि प्राप्त करते रहें, हमें पोषण मिलता रहे (५); हम सौ वर्षों तक बने रहें (वस्तुतः दूसरे मंत्र की पुनरावृत्ति!) (६); सौ वर्षों तक हम पवित्र बने रहें, कुत्सित भावनाओं से मुक्त रहें (७); सौ वर्षों से भी आगे ये सब कल्याणमय बातें होती रहें (८)।