Globalwits

Saturday, 16 April 2022

"जीवन #सुख-दुःख का संगम है"

सुख और दुःख में कोई अंतर नहीं है जिसे मन स्वीकारे वह सुख है और जिसे अस्वीकारे वह दुःख है सारा खेल हमारी स्वीकृति और अस्वीकृति का ही तो है

आजकल जिससे भी मिलो वह केवल अपने दुख की बात करता है। कोई अपने आर्थिक दुख की बात करता है, कोई अपने परिवारिक दुख की तो कोई अपने शारीरिक दुख की। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा मनुष्य होगा जिससे कोई दुख ना हो। खैर हमारे जीवन में सुख-दुख तो आते जाते ही रहते हैं परंतु मजे की बात यह है कि हम अपने दुख के लिए कभी ईश्वर को, कभी किस्मत को, तो कभी दूसरों को दोषी ठहराते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि हर मनुष्य अपने दुख का निर्माता स्वयं है। हर मनुष्य अपना दुख स्वयं उत्पन्न करता है। लेकिन इस बात को कोई मानना नहीं चाहता। 

निज सुख आतम राम है, दूजा दुख अपार।
मनसा वाचा करमना, कबीर सुमिरन सार।।


कोई न कोई कमी हर मनुष्य के जीवन में जरूर रहती है, लेकिन महाभारत के एक प्रसंग में महात्मा विदुर ने कुछ ऐसी चीजें बताई गई हैं, जो अगर किसी इंसान के पास हो तो वह कभी दुखी नहीं होता। महाभारत के उद्योग पर्व में महात्मा विदुर ने इस लोक में 6 प्रकार के सुख गिनाए हैं, जो इस प्रकार है-

श्लोक
अर्थागमों नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यश्च पुत्रो अर्थकरी च विद्या षट् जीव लोकेषु सुखानि राजन्।

अर्थ- 1. धन, 2. निरोगी शरीर, 3. सुंदर पत्नी, 4. वह भी प्रिय बोलने वाली हो, 5. पुत्र का आज्ञाकारी होना और 6. धन पैदा करने वाली विद्या का ज्ञान होना- ये 6 बातें इस लोक में मनुष्य को सुख देती हैं।

1. धन
सुखी जीवन के लिए धन का होना बहुत आवश्यक है। बिना धन के न सम्मान मिलता है और न ही यश। परिवार के पालन-पोषण के लिए भी धन का होना बहुत जरूरी है। आज के समय में शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी धन की जरूरत पड़ती है। वृद्धावस्था में धन ही सबसे बड़ा सहारा होता है। जीवन में धन की आवश्यकता सबसे अधिक बुढ़ापे में ही होती है।

2. निरोगी शरीर
जीवन में सदैव सुखी रहने के लिए शरीर का तंदुरुस्त होने बहुत जरूरी है। अगर शरीर में कोई रोग होगा तो आप न ठीक से खा सकते हैं न पी सकते हैं। ऐसी अवस्था में आप जीवन के अनेक सुखों से वंचित रह सकते हैं। जिसका शरीर निरोगी होता है वह कोई भी काम करने में सक्षम हो सकता है।

3. सुंदर पत्नी, 4. वह भी मीठा बोलने वाली
महाभारत में महात्मा विदुर ने सुंदर पत्नी को तीसरा और यदि वह मीठा बोलने वाली तो उसे जीवन का चौथा सुख बताया है। सुंदर पत्नी यदि मीठा बोलने वाली हो तो सोने पर सुहागा हो सकता है। मीठा यानी सभी से नम्रतापूर्वक बात कर वह अपने परिवार के हर सदस्य को खुश रखेगी। परिवार खुश रहेगा तो आप स्वतः ही प्रसन्न रहेंगे।

5. पुत्र का आज्ञाकारी होना
वर्तमान समय में सबसे बड़ी समस्या ही संतान को लेकर है। बुढ़ापे में जब माता-पिता को अपने बच्चों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तो वे उनके साथ नहीं होते। पुत्र यदि पास हो और आज्ञा न मानता हो तो वह और भी दुखदाई होता है। इसलिए महात्मा विदुर ने कहा है कि जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो, उसे जीवन में कभी कोई दुख नहीं होता।

6. धन पैदा करने वाली विद्या का ज्ञान
पैसा तो आता-जाता रहता है, इसकी प्रकृति ही ऐसी होती है। आपके पास कोई ऐसी कला या ज्ञान होना चाहिए जिससे धन की आवक बनी रहे। यादि उस कला के बल पर आप अपने पालन-पोषण कर सको। अगर आपके पास कोई ऐसी कला हो तो आपके जीवन में कभी धन का अभाव नहीं होगा और आप सम्मानपूर्वक जी सकेंगे।

सुख और दुःख धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से…

चार वेद छः शास्त्र में , बात लिखी है दोय ।

सुख दीन्हे सुख होत है, दुख दीन्हे दुख होय।।

सुख इक ठंडी छांव है, दुख पहाड़ सी रात ।

सुख में सोवत रहत सब, दुख जागत में जात।।

हिरदै सागर में सदा , उठती रहें तरंग ।

ऊपर उठि के सुख लहै , नीचे गिर सुख भंग।।

सुख "सुविधा" से मिलै ,मन के सब अनुकूल ।

दुख उपजै मन सोच से ,दशा होय प्रतिकूल ।।

सुख दुख मन के भाव हैं,मानव कर्मों के मूल ।

मात पिता हरि सेवा से, रहत सदा अनुकूल ।।

दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करै न कोय ।

जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख काहे होय ।।

वर्तमान सामयिक दृष्टिकोण से…

सुख दुख मनुष्य द्वारा स्वंय निर्मित किया जाता है। एक ही परिस्थिति में कोई सुख अनुभव करता है, तो कोई दुख । परिस्थितियों का संतुलन बिगड़ने पर दृष्टि कोण बदलता है।

किसी ने कहा है – ज्ञानी काटै ज्ञान से, मूरख काटै रोय। सामान्‍य और समझदार लोगों में यही अंतर है। विषय-विलासियों को दुख-सुख ज्‍यादा व्‍यापते हैं। पुरुषार्थियों को दुख के अनुभव का वक्‍त कहां?

प्रीतिकर उत्तेजना है सुख

अप्रीतिकर उत्तेजना है दुख

दोनों ही हैं मन की उत्तेजना

अशांत, उद्वेलित, चंचल चेतना

 

जब आप आये दिन सुनार के पास जाने लगे तो समझिये सुख है और जब आप भगवान को याद करे तो समझिये दु:ख है।

दु:ख में राम , सुख में सुनार” यह एक कहावत है।

सारो संसार दुःखी है सुखी कौन है सुनो
कोई तन दुखी कोई मन दुखी
कोई धन बिना फायर उदास
थोड़ा थोड़ा सब दुखी
भाई सुखी राम का दास।।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

तन धन सुखिया कोई न देखा, जो देखा सो दुखिया रे ।

चंद्र दुखी है, सूर्य दुखी है, भरमत निसदिन जाया रे ।।

ब्रह्मा और प्रजापति दुखिया, जिन यह जग सिरजाया रे ।

हाटो दुखिया, बाटो दुखिया, क्या गिरस्थ बैरागी रे ।।

शुक्राचार्य जन्म के दुखिया, माया गर्व न त्यागी रे ।

धूत दुखी, अवधूत दुखी हैं, रंक दुखी धन रीता रे ।।

कहै कबीर वोही नर सुखिया, जो यह मन को जीता रे ।।



1 comment:

  1. Dukh mein Ram aur Sukh mein Sunaar ( Gold Smith ) is quite a good humour🙃 but absolute true.

    ReplyDelete