Globalwits

Thursday, 27 July 2017

गजल ने बांधा समां

Sharafaton ki yahan koi ahmiyat hi nahi
Kisi ka kuch na bigadon to kaun darta hai

Yeh duniya jis mein dobara kahin kuch bhi nahi hota
Yahan kaise kisi ka saath koi chorh jaata hai

Raat to waqt ki paband hai dhal jayegi
Dekhna yeh hai chiraaghon ka safar kitna hai

Woh samne aa jaye to rukne lagi saansen
Main phir bhi use dushman-e-jaani nahi kehta

Khushi ki aankh mein aansu ki bhi jagah rakhna
Bure zamaane kabhi puch ke nahi aate.


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चलो इश्क करें......

आज हम दोंनों को फुर्सत है चलो इश्क करें
इश्क दोंनों की जरूरत है चलो इश्क करें
इसमें नुकसान का खतरा ही नहीं रहता है
ये मुनाफे की फिजारत है चलो इश्क करे
आप हिन्दु में मुसलमान ये ईसाई वो सिख

यार छोड़ो ये सियासत है चलो इश्क करें......

जाके ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से
फूल इस बार खिले है बड़ी तैयारी से
वादशाहों से भी फेंके हुये सिक्के न लिये
हमने खैरात भी मांगी है तो खुददारी से 
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वो तो बता रहा था बहोत दूर का सफर।
ज़ंजीर खींच कर जो मुसाफिर उतर गया। ।
साहिल की सारी रेत इमारत में लग गई।
अब लोग कैसे अपने घरौंदे बनायेंगे। ।
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वक़्त मुक़र्रर कर लेते हैं चाँद को तकने का
जिस रोज़ मैं देखूं उस रोज़ तुम देखो
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