Globalwits

Saturday 1 May 2021

हरेक कश्ती का अपना तज़ुर्बा होता है दरिया में

हरेक कश्ती का अपना तज़ुर्बा होता है दरिया में,

सफर में रोज़ ही मंझदार हो ऐसा नहीं होता !!

हम भी हैं शायद किसी भटकी हुई कश्ती के लोग ।।

चीखने लगते हैं ख़्वाबों में जज़ीरा देख कर..!!

कश्ती न बदली दरिया न बदला

डूबने वालों का जज़्बा भी न बदला !!


जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है

माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है !!


डूबे हुओं को, हमने बिठाया था अपनी कश्ती में यारो.. ..

और फिर कश्ती का बोझ कहकर, हमे ही उतारा गया..।।


वो मायूसी के लम्होँ मेँ ज़रा भी हौँसला देते तो..

हम काग़ज़ की कश्ती पे समंदर मेँ उतर जाते.!!




ज़िंदगी मैं भी मुसाफ़िर हूँ तेरी कश्ती का

तू जहाँ मुझसे कहेगी, मैं उतर जाऊँगा….!!

ना साहिल, ना दरिया, ना कश्ती से प्यार हैँ मुझे

वो लहर अभी तक नहीँ आई जिसका इंतजार हैँ मुझे….!!


थीं जो कल तक कश्ती-ए-उम्मीद को थामी हुईं,

रूख बदलकर, आज वह मौजें भी तूफां हो गईं !!





No comments:

Post a Comment