एक बार एक व्यापारी था. वह ज्यादा अमीर नहीं था. उसके पास एक उंट था जो ज्यादा खूबसूरत नहीं था, पर वह उस उंट से प्यार करता था. एक दिन, वह उंट को देखने गया मगर उंट वहां नहीं था. उंट गायब हुआ था. ‘अरे, मेरा उंट कहाँ गया? मेरा उंट, कहाँ है वह? उसने हर जगह देखा; सब जगह ढूंडा, मगर उसे अपना उंट नहीं मिला.
आखिर, उसने तीन अजनबियों को अपनी ओर आते हुए देखा. पेड़ों से घिरे हुए एक रास्ते से वह चल के उसकी तरफ आ रहे थे. जब वे उसके पास पहुचे, उसने पहले आदमी को रोक कर पूछा: ‘क्या आपने मेरे उंट को देखा है?’
‘तुम्हारा उंट एक आँख से अँधा है.’
‘हाँ, यह सच है; मेरा उंट एक आँख से अँधा है. कहाँ है वह?’
पर वह आदमी चलता गया.
अब दूसरा मुसाफिर आ पंहुचा.
‘क्या आपने मेरा उंट देखा है?’
तुम्हारा उंट एक पैर से लंगड़ा है.’
‘जी हाँ. कहाँ है वह, आपने उसके साथ क्या किया?’
पर वह मुसाफिर चलता गया.
अब तीसरा अजनबी आ कर रुक गया.
क्या आपने मेरा उंट देखा है?’
‘तुम्हारे उंट की पूँछ छोटी है.’
‘यह सच है! क्या किया आपने उसके साथ?’
मगर वह मुसाफिर चलता गया.
उस व्यापारी ने उन तीनो मुसाफिरों का, पेड़ों से घिरे उस रास्ते पर पीछा किया. ‘कहाँ है मेरा उंट? आपने मेरा उंट चोरी किया है! चोरी किया है आपने उसे! चोर! आवारा!
वे उस रास्ते से चलते गए. अब वह रास्ता चौड़ा हो गया. और वह चलता गया, पहले से भी ज्यादा गुस्से में क्योंकि वह उसे ध्यान नहीं दे रहे थे.
वह उन पर और जोर से चिल्लाता गया. अब उन सब ने सुलतान के महल की बाग़ में प्रवेश किया. उस सुगन्धित बाग़ में जासमीन और दुसरे सुन्दर फूल थे. और वहां सुलतान पधारें: ‘इस शोर का क्या मतलब है?’
‘इन अजनबियों ने मेरा उंट चोरी किया है!’
‘तुम्हे यह कैसे पता?’
‘वे जानते है की मेरा उंट एक आँख से अँधा है! वे जानते है की मेरा उंट एक पैर से लंगड़ा है! वे जानते है की मेरे उंट की पूँछ छोटी है!’
‘और आप को यह कैसे पता?’, सुलतान ने पुचा.
पहला अजनबी बोला: ‘मैं जानता हूँ की इसका उंट एक आँख से अँधा है, क्योंकि जब हम पेड़ों से घिरे उस रास्ते से आ रहे थे, सिर्फ बाए तरफ के डाल के पत्ते टूटे हुए थे. दाए तरफ के पेड़ों के पत्तों को छुआ भी नहीं गया था.’
‘आप को कैसे पता की इसका उंट एक पैर में लंगड़ा है?’
‘उंट के रास्ते को देखते हुए,’ दूसरा अजनबी बोला, ‘उसके पैरों के निशानों से यह बात साफ़ थी.’
‘आप को कैसे पता की उंट की पूँछ छोटी है?’
‘यह बात साफ़ है की उंट की पूँछ छोटी है,’ तीसरा अजनबी बोला. ‘रास्ते में खून के निशान थे. अगर उंट की पूँछ लम्बी होती तो उसने खून चूसने वाले कीड़े मकोंडों को दूर किया होता.’
‘यह सही है,’ सुलतान ने कहा. ‘ तुम्हारा उंट मेरे बाग़ में कुछ ही देर पहले आया था’.
और फिर उस उंट को सामने लाया गया. ज्यादा सुंदर नहीं था वह उंट. पर उस व्यापारी ने अपने उंट को चूमा. ‘अरे, मेरा उंट. मेरा सुंदर उंट मुझे वापस मिल गया.’
और वह सुलतान उन तीनों मुसाफिरों की तरफ मुडा: ‘आप सच मुच होशियार हैं. यही रहिये,’ सुलतान ने कहा, ‘मेरे सलाहकार बनकर.’
और पहले कभी भी, और आगे कभी भी, किसी सुलतान को इतना ज्ञान और इतनी सलाह नहीं मिली जितनी की उन तीनो से मिली.
एक मासूम सज़ा
यह कहानी है हिंदुस्तान के शहंशाह अकबर की और उसके वफादार और चतुर सलाहकार - बीरबल की.
दिन सुहाना था. अकबर के महल के दरबार में उनके सलाहकार उनके इंतज़ार में खड़े बातें कर रहे थे. बहुत जल्द अकबर आये, लेकिन वह आज हमेशा जैसे अच्छे मिजाज़ में नहीं थे. वे परेशान थे. अकबर का गंभीर चहरा देखकर उनके सलाहकार शांत हो गए.
"बात क्या है, जहापना? क्या आप को कोई तकलीफ है?" एक सलाहकार ने पुचा.
"आज किसीने मेरी मूंछें नोचने की जुर्रत की!" अकबर चिल्लाये. "आपको क्या लगता है, क्या सज़ा दी जाए उस बदमाश को?" अकबर ने अपने सलाहकारों को पूंछा.
एक एक कर, उन सब ने शेहेंशाह की मूछें खींचने वाले बदमाश के लिए भारी से भारी सज़ा सुझाई.
"उसे चौराहे पर फांसी पे चढ़ा दिया जाए!" एक ने कहा.
"उसका सर काट दिया जाए!" दूसरा चिल्लाया.
"उसे सौ बार चाबुक से मारा जाये!" तीसरे ने जिद्द की.
शेहेंशाह ने सबकी बातें सुनी पर उन्होंने देखा की उनके सबसे भरोसेमंद सलाहकार ने अब तक कुछ नहीं कहा था.
"बीरबल, तुम्हे कुछ नहीं कहना इस बात पर?" उन्होंने पूंछा.
बीरबल ने शांत चित्ती से कहा, "माफ़ कीजिये जहापना. मैं सुझाई हुई किसी भी सज़ा से सहमत नहीं हूँ",
अकबर बिलकुल चौक गए और उन्होंने अपने वफादार सलाहकार को पूछा, "तुम इस जुर्म के लिए क्या सज़ा सुझाते हो?"
"मुझे लगता है," बीरबल ने कहा, " की जिसने आपकी मूंछे खींचने की जुर्रत की, उसे मिठाई का डिब्बा दिया जाए."
यह सुन कर, दरबार में फिर से बातें होनी लगी. दुसरे सलाहकार बीरबल का सुझाव सुन कर चौक गए. वे सब सोचने लगे की ऐसा वफादार सलाहकार शेहेंशाह को बदमाश को मिठाई का डिब्बा देने का सुझाव कैसे दे सकता है.
"जरूर," उन्होंने विरोध किया, "यह सही सज़ा नहीं है!"
गडबडाकर शेहेंशाह ने पूंछा: "बीरबल, तुम ऐसी सज़ा क्यों सुझा रहे हो?"
"जहापना, सिर्फ आपका बेटा - राजकुमार ही आपकी मूंछे नोचने की जुर्रत कर सकता है. वह आपकी गोद में खेलता है, और आज उसने खेलते हुए आपकी मूंछे खींच लीं होंगी. ऐसे मासूम गुनेहगार को सिर्फ एक मासूम सज़ा दी जानी चाहिए. मेरा सुझाव है की आप नादान राजकुमार को एक मिठाई का डिब्बा दें."
बीरबल के चतुर प्रत्युत्तर ने शेहेंशाह के चेहरे पर मुस्कराहट लायी.
तुम सही हो, मेरे यार," शेहेंशाह अकबर बोले. "वह मेरा बेटा ही था. और उसे जरूर सज़ा की तौर पर एक मिठाई का डिब्बा ही मिलेगा!", अकबर ने कहा.
बीरबल मुस्कुराये जब की स्तिथि न समझकर भारी सज़ा सुझाने की शर्म से बाकि सलाहकार आँखें न मिला पाएं.
और आज तक, बीरबल की चतुराई और होशियारी के किस्से पीढ़ी दर पीढ़ी को दोहराए जाते है.
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