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Tuesday, 5 December 2023

कहानी से सीख

कोई परमात्मा को ‘ब्रह्म’ कहता है; कोई ‘परमात्मा’ कहता है; कोई ‘ईश्‍वर’ कहता है; कोई ‘भगवान’ कहता है। लेकिन अलग-अलग नाम लेने से परमात्मा अलग-अलग नहीं हो जाते।


एक व्यक्ति बहुत परेशान था उसके दोस्त ने उसे सलाह दी कि कृष्ण भगवान की पूजा शुरू कर दो
उसने एक कृष्ण भगवान की मूर्ति घर ला कर   उसकी   पूजा करना  शुरू  कर  दी ।
कई  साल  बीत  गए  लेकिन … कोई  लाभ  नहीं  हुआ ।


एक  दूसरे  मित्र  ने  कहा  कि  तू  काली  माँ  की  पूजा  कर ,  जरूर  तुम्हारे  दुख  दूर  होंगे
अगले  ही  दिन  वो  एक  काली  माँ  की  मूर्ति  घर  ले  आया


कृष्ण  भगवान  की  मूर्ति  मंदिर  के  ऊपर  बने  एक  टांड  पर  रख  दी  और
काली  माँ  की  मूर्ति  मंदिर  में  रख  कर  पूजा  शुरू  कर  दी


कई  दिन  बाद  उसके  दिमाग  में  ख्याल  आया  कि  जो  अगरबत्ती ,  धूपबत्ती  काली  जी  को  जलाता  हूँ ,  उसे  तो श्री  कृष्ण  जी  भी  सूँघते  होंगे
ऐसा  करता हूँ  कि  श्री कृष्ण  का  मुँह  बाँध  देता  हूँ
जैसे   ही  वो  ऊपर  चढ़  कर  श्री कृष्ण  का  मुँह  बाँधने  लगा  कृष्ण  भगवान  ने  उसका  हाथ  पकड़  लिया   वो  हैरान  रह   गया और  भगवान  से  पूछा 
इतने  वर्षों  से  पूजा  कर  रहा  था  तब  नहीं  आए  !  आज कैसे प्रकट हो गए ?
भगवान श्री कृष्ण ने समझाते हुए कहा,
आज तक तू एक मूर्ति समझ कर मेरी  पूजा  करता  था
किन्तु  आज  तुम्हें  एहसास  हुआ  कि  कृष्ण  साँस  ले  रहा  है बस  मैं    गया
भगवान  सिर्फ  एक  मूर्ति  नहीं  हैं ,  एक  भावना  हैं  वो  कहते  है  ना.. जाकी रही भावना जैसी, प्रभु   मूरत   देखि   तिन   तैसी 

*कृष्ण से कृष्ण को मांगिए*

*हृदय की इच्छाएं शांत नहीं होती हैं। क्यों???**

एक राजमहल के द्वार पर बड़ी भीड़ लगी थी।*

*किसी फकीर ने सम्राट से भिक्षा मांगी थी। सम्राट ने उससे कहा,''जो भी चाहते हो, मांग लो।''*

*दिवस के प्रथम याचक की कोई भी इच्छा पूरी करने का उसका नियम था।**उस फकीर ने अपने छोटे से भिक्षापात्र को आगे बढ़ाया और कहा,''बस इसे स्वर्ण मुद्राओं से भर दें।''

सम्राट ने सोचा इससे सरल बात और क्या हो सकती है! लेकिन जब उस भिक्षा पात्र में स्वर्ण मुद्राएं डाली गई, तो ज्ञात हुआ कि उसे भरना असंभव था।**वह तो जादुई था।

जितनी अधिक मुद्राएं उसमें डाली गई, वह उतना ही अधिक खाली होता गया!*

*सम्राट को दुखी देख वह फकीर बोला,''न भर सकें तो वैसा कह दें। मैं खाली पात्र को ही लेकर चला जाऊंगा! *

*ज्यादा से ज्यादा इतना ही होगा कि लोग कहेंगे कि सम्राट अपना वचन पूरा नहीं कर सके !*

*''सम्राट ने अपना सारा खजाना खाली कर दिया, उसके पास जो कुछ भी था, सभी उस पात्र में डाल दिया गया, लेकिन अद्भुत पात्र न भरा, सो न भरा।*

*तब उस सम्राट ने पूछा,''भिक्षु, तुम्हारा पात्र साधारण नहीं है। उसे भरना मेरी सामर्थ्य से बाहर है। क्या मैं पूछ सकता हूं कि इस अद्भुत पात्र का रहस्य क्या है?''*

*वह फकीर हंसने लगा और बोला,''कोई विशेष रहस्य नहीं। यह पात्र मनुष्य के हृदय से बनाया गया है।*

*क्या आपको ज्ञात नहीं है कि मनुष्य का हृदय कभी भी भरा नहीं जा सकता*?

*धन से, पद से, ज्ञान से- किसी से भी भरो, वह खाली ही रहेगा, क्योंकि इन चीजों से भरने के लिए वह बना ही नहीं है। इस सत्य को न जानने के कारण ही मनुष्य जितना पाता है, उतना ही दरिद्र होता जाता है।*

*हृदय की इच्छाएं कुछ भी पाकर शांत नहीं होती हैं। क्यों? *

*क्योंकि, हृदय तो परमात्मा को पाने के लिए बना है।''*

*शांति चाहिए? संतृप्ति चाहिए ? तो अपने संकल्प को कहिए कि "भगवान श्रीकृष्ण" के सेवा के अतिरिक्त और मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।

**"कृष्ण से कृष्ण को ही मांगिए ।"*

ॐ विश्व व्यापिने महाविष्णवे नमः ऊॅ परमात्मने नमः ऊॅ अच्युताय नमः ऊॅ नमः भगवते वासुदेवाय नमः ॐ केशवाय नमः ❖═══▩ஜ۩۞۩ஜ▩═══❖

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