श्रीमद्भागवत के अनुसार–’भगवान का नाम प्रेम से, बिना प्रेम से, किसी संकेत के रूप में, हंसी-मजाक करते हुए, किसी डांट-फटकार लगाने में अथवा अपमान के रूप में भी लेने से मनुष्य के सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं ।’
हरे कृष्ण मंत्र है:
हरे कृष्ण
हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम
हरे राम राम राम हरे हरे ||
अर्थ- श्री कृष्ण और भगवान राम को प्रणाम। वे दो
शरीर हैं लेकिन श्री हरि विष्णु के अवतार होने के कारण दोनों एक ही हैं।
श्रीकृष्ण और अर्जुन संवाद
एक बार भगवान श्रीकृष्ण
से अर्जुन ने पूछा—‘केशव! मनुष्य बार-बार आपके एक हजार नामों का जप क्यों करता
है, उनका जप करना तो बहुत ही श्रम साध्य है । आप मनुष्यों की सुविधा के लिए एक
हजार नामों के समान फल देने अपने दिव्य नाम बताइए ।’
भगवान श्रीकृष्ण ने
कहा—‘मैं अपने ऐसे चमत्कारी 28 नाम बताता हूँ जिनका जप करने से मनुष्य के शरीर में
पाप नहीं रह पाता है । वह मनुष्य एक करोड़ गो-दान, एक सौ अश्वमेध-यज्ञ और एक हजार
कन्यादान का फल प्राप्त करता है । अमावस्या, पूर्णिमा तथा एकादशी तिथि को और
प्रतिदिन प्रात:, मध्याह्न व सायंकाल इन नामों का स्मरण करने या जप करने से मनुष्य
सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है ।’
समस्त
पापनाशक भगवान के 28 दिव्य नामों का स्तोत्र (श्रीविष्णोरष्टाविंशति नाम
स्तोत्रम्)

अर्जुन उवाच!
किं नु नाम सहस्त्राणि
जपते च पुन: पुन: ।
यानि नामानि दिव्यानि तानि चाचक्ष्व केशव ।।
श्रीभगवानुवाच
मत्स्यं कूर्मं वराहं च वामनं च जनार्दनम् ।
गोविन्दं पुण्डरीकाक्षं माधवं मधुसूदनम् ।।
पद्मनाभं सहस्त्राक्षं वनमालिं हलायुधम् ।
गोवर्धनं हृषीकेशं वैकुण्ठं पुरुषोत्तमम् ।।
विश्वरूपं वासुदेवं रामं नारायणं हरिम् ।
दामोदरं श्रीधरं च वेदांगं गरुणध्वजम् ।।
अनन्तं कृष्णगोपालं जपतोनास्ति पातकम् ।
गवां कोटिप्रदानस्य अश्वमेधशतस्य च ।।
भगवान श्रीकृष्ण के 28
दिव्य नाम (हिन्दी में)
1. मत्स्य
2. कूर्म
3. वराह
4. वामन
5. जनार्दन
6. गोविन्द
7. पुण्डरीकाक्ष
8. माधव
9. मधुसूदन
10.
पद्मनाभ
11.
सहस्त्राक्ष
12.
वनमाली
13.
हलायुध
14.
गोवर्धन
15.
हृषीकेश
16.
वैकुण्ठ
17.
पुरुषोत्तम
18.
विश्वरूप
19.
वासुदेव
20.
राम
21.
नारायण
22.
हरि
23.
दामोदर
24.
श्रीधर
25.
वेदांग
26.
गरुड़ध्वज
27.
अनन्त
28.
कृष्णगोपाल
जीवन की जटिलताओं में फंसे, हारे-थके,
आत्म-विस्मृत सम्पूर्ण प्राणियों के लिए आज के जीवन में भगवन्नाम ही एकमात्र तप
है, एकमात्र साधन है, एकमात्र धर्म है । इस मनुष्य जीवन का कोई भरोसा नहीं है ।
इसके प्रत्येक श्वास का बड़ा मोल है । अत: उसका पूरा सदुपयोग करना चाहिए ।
जय श्रीकृष्ण!