गायत्री मंत्र यजुर्वेद के मन्त्र 'ॐ भूर्भुवः स्वः' और ऋग्वेद के छन्द 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवितृ देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। इसे श्री गायत्री देवी के स्त्री रूप में भी पूजा जाता है।
गायत्री मंत्र एक प्रकार का योग है, जिसे नाद योग कहा जाता है। अगर सरल शब्दों में
कहें, तो नादयोग एक प्रकार का संगीत ध्यान है। दरअसल,
नाद का मतलब होता है ध्वनि या आवाज, जिसकी मदद
से इस योग को किया जाता है। नाद योग शरीर, मन और आत्मा के
बीच तालमेल स्थापित कर प्राकृतिक रूप से शारीरिक समस्याओं के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक
समस्याओं से छुटकारा पाने में मदद कर सकता है।
नाद ब्रह्म विश्व स्वरूपा, नाद हि सकल जीव रूपा,
नाद हि कर्म, नाद हि धर्म, नाद
हि बंधन, नाद हि मुक्ति,
नाद हि शंकर, नाद हि शक्ति, नादम,
नादम, सर्वम नादम,
नादम,
नादम, नादम, नादम ।।
अर्थात, ध्वनि ही ब्रह्म है, ब्रह्मांड का प्रकट स्वरुप है, ध्वनि अपने आप को सभी प्रकार के जीवन के रूप में प्रकट करती है, ध्वनि ही कर्म है, ध्वनि ही धर्म है, ध्वनि ही बंधन है, ध्वनि ही मुक्ति है, ध्वनि ही सब कुछ देने वाली है, ध्वनि ही हर चीज़ में मौजूद ऊर्जा है, ध्वनि ही सब कुछ है।
ॐ के उच्चारण में ही तीनो
शक्तियों का समावेश हैं । हे माँ भगवती जिसने सभी शक्तियों का सर्जन किया ऐसी
प्राणदायिनी, दुःख हरणी,
सुख करणी, समस्त रोगों का निवारण करने वाली,
प्रज्ञावान माँ भगवती जो सभी देवों की देवी हैं उसकी में उपासना
करती हूँ जिसने मुझे संरक्षण दिया और सभी प्रकार के ज्ञान से समृद्ध बनाया ।
मंत्र विद्या का प्रयोग भगवान की भक्ति, ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के लिए किया जाता है। साथ ही, सांसारिक
एवं भौतिक सुख-सुविधाओं, धन प्राप्त करने की इच्छा के लिए भी
मंत्रों का जप किया जा सकता है।
गायत्री मंत्र का महत्व
हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले गायत्री मंत्र को सबसे पवित्र मंत्र मानते
है। माना जाता है कि सभी 4 वेदों का
सार इस एक गायत्री मंत्र में समाहित है। शास्त्रों के अनुसार यह मंत्र वेदों का
श्रेष्ठ मंत्र है।
गायत्री मंत्र कुल 24 अक्षरों
से मिलकर बना है, इन 24 अक्षरों को
देवी-देवताओं का स्मरण बीज माना गया है। इन 24 अक्षरों को
शास्त्रों और वेदों के ज्ञान का आधार भी बताया गया है।
गायत्री मंत्र जप के नियम
गायत्री मंत्र का जाप करते समय इन बातों को जरूर ध्यान में रखना चाहिए:
प्रातःकाल में स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ और धुले कपड़े पहनकर इस मंत्र
का जाप करना चाहिए।
जाप ऐसे स्थान पर करें जो स्थान शांत और एकांत होने के साथ ही पवित्र भी
हो।
गायत्री मंत्र का जाप चमड़े के बने आसन पर नहीं करना चाहिए इसका जाप ऊनी और
रेशमी आसनों पर बैठकर करना चाहिए।
मंत्र का जाप करते समय पालथी मारकर या पद्मासन में बैठकर ही करें।
इस मंत्र का जप बिना आहार के करना चाहिए।
मंत्र के जप के समय जप की गिनती जरूर करनी चाहिए। क्योंकि बिना गिनती के
किया गया जाप “आसुर जाप” कहलाता है।
इस मंत्र का जप मन में करना चाहिए, होठ बिलकुल भी नहीं हिलने चाहिए और मन एकाग्र होना चाहिए।
इस मंत्र का जप करते समय आपको बीच में उठना नहीं होता है। यदि किसी कारणवश उठना भी पड़े तो हाथ और मुंह धोकर वापस जप के लिए बैठे।
गायत्री मंत्र का जप प्रतिदिन नियमित समय पर ही करना चाहिए।
मंत्र का जाप करने के बाद त्रुटियों के लिए क्षमा-प्रार्थना जरूर करें।
इस मंत्र को करने के लिए आपको शुद्ध शाकाहारी होना जरूरी है।
निम्नलिखित संकल्प मन में पूर्ण विश्वास से दोहराईये:-
1- मैं त्रिपदा गायत्री की सर्वशक्तिमान पुत्री/पुत्र हूँ।
2- मैं बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान परमात्मा
का बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान पुत्री/पुत्र हूँ।
3- मैं गायत्री की गर्भनाल से जुड़ी/जुड़ा हूँ और माता गायत्री
मेरा पोषण कर रही हैं। मुझे बुद्धि, स्वास्थ्य, सौंदर्य व बल प्रदान कर रही है।
4- मैं वेदमाता का वेददूत पुत्री/पुत्र हूँ। मुझमें ज्ञान जग
रहा है।
5- जो गुण माता के हैं वो समस्त गुण मुझमें है।
फिर गायत्री मंत्र जप करना शुरू करे - * ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥।*
(1) गायत्री मंत्र का उच्चारण करने से हमारा तन मन और
मस्तिष्क पूरी तरह से शांत हो जाता है
(2) गायत्री मंत्र का उच्चारण सुबह सूर्योदय के समय करने से
सकारात्मक विचार उत्पन्न होती है और कोई भी कार्य करने की अभूतपूर्व ऊर्जा मिलती
है।
(3) गायत्री मंत्र का जाप करते समय 1,10,000 ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती है जो कि सभी वचनों और मंत्रों से अधिक है इससे
मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर के विकार भी दूर होते है।
(4) गायत्री मंत्र में विभिन्न प्रकार की आवृतिया होती है
जिन के मिश्रण से आध्यात्मिक शक्ति को और अधिक विकसित करने की क्षमता उत्पन्न होती
है।
(5) विद्यार्थी के लिए यह मंत्र उच्चारण करना बहुत आवश्यक है
क्योंकि इसके जाप करने मात्र से ही उनके अंदर आई सभी विकारों का नाश होता है और
उनके बुद्धि का विकास होता है।
(6) इस मंत्र का जाप करने से आपके अंदर गुस्से और क्रोध की
भावनाओं का पूरी तरह से नाश हो जाता है।
(7) यह मंत्र रहने ईश्वर द्वारा दी गई प्रत्येक वस्तु पृथ्वी,
जल, अग्नि, अंतरिक्ष
इत्यादि का बोध कराता है और ईश्वर से जुड़ने का मार्ग बताता है।
गायत्री मंत्र में हर शब्द का अर्थ और महत्व अलग-अलग है जो इस प्रकार है (Gayatri Mantra Meaning word by words in Hindi):
ॐ भूर्भुव: स्व: आह्वान है।
मूल मंत्र अगली तीन पंक्तियाँ हैं।
अन्वय क्रम ( सायण भाष्य के अनुसार )
य: न: धिय: प्रचोदयात तत देवस्य सवितु: वरेण्यं भर्ग: धीमहि
पृथ्वी, अंतरिक्ष
औऱ स्वर्ग - त्रिलोक में व्यापक परमेश्वर का आवाहन करते हैं
जो हमारी बुद्धियों को प्रेरित करते हैं उस देवता सविता का वरण करने योग्य
पाप नाशक तेज - (हम) धारण करें या ध्यान करें।
ॐ = ईश्वर हमारी सबकी मदद करने वाला हर कण में मौजूद है
भू = पृथ्वी जो सम्पूर्ण जगत
के जीवन का आधार और प्राणों से भी प्रिय है
भुवः = सभी दुःखों से रहित, जिसके संग से सभी दुखों का नाश हो जाता है
स्वः = वो स्वयं:, जो सम्पूर्ण जगत का धारण करते हैं
तत् = उसी परमात्मा के रूप को
हम सभी
सवितु = जो सम्पूर्ण जगत का
उत्पादक है
र्वरेण्यं = जो स्वीकार करने योग्य
अति श्रेष्ठ है
भर्गो = शुद्ध स्वरूप और पवित्र
करने वाला चेतन स्वरूप है
देवस्य = भगवान स्वरूप जिसकी
प्राप्ति सभी करना चाहते हैं
धीमहि = धारण करें
धियो = बुद्धि को
यो = जो देव परमात्मा
नः = हमारी
प्रचोदयात् = प्रेरित करें, अर्थात बुरे कर्मों से मुक्त होकर अच्छे कर्मों में लिप्त
हों
गायत्री मन्त्र का सरल अर्थ :-----
1. ॐ = ब्रम्हा, विष्णु और महेश तीनों
देवताओं का संयुक्त रूप से बोध कराने वाला संकेत;
भूर्भुवः स्वः = तीनों देवों के अलग-अलग निवास स्थान का संकेत है;
2. भूः = (श्री ब्रम्हा जी का);
3. भुवः = (श्री विष्णु जी का);
4. स्वः = (श्री महेश जी का);
5. तत्सवितुर्वरेण्यं = सूर्य द्वारा वरणीय अथवा सूर्य का भी
उपास्य देव रूप उस;
6. भर्गो देवस्य = तेजस्वरूप देव का;
7. धीमहि = ध्यान करता हूँ;
8. धियो = बुद्धि; यो = जिससे; नः = हमारी; (जिससे हमारी बुद्धि)
9. प्रचोदयात् = शुद्ध रहे या सत्कर्म के प्रति उत्प्रेरित
रहे।
गायत्री मंत्र कब करें
प्रातःकाल में उठते समय अष्ट कर्मों को जीतने के लिए गायत्री मंत्र का 8 बार जाप करना चाहिए।
सुबह पूजा में बैठे तब 108 बार इसका
जप करना चाहिए।
हमेशा जब आप घर से पहली बार बाहर जाते है तो समृद्धि, सफलता, सिद्धि और उच्च जीवन के लिए
इसका उच्चारण करना चाहिए।
मन्दिर में प्रवेश के दौरान इसका उच्चारण करना चाहिए।
हमेशा रात में सोने से पूर्व एक बार इसका उच्चारण जरूर करना चाहिए।
गायत्री मंत्र का जाप हम सभी लोगों को करना चाहिए क्योंकि मस्तिष्क के विकार के साथ साथ शारीरिक परेशानियां भी दूर होती है और यह हमें आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है। जिससे हमें जीवन जीने का सही मतलब समझ में आता है। गायत्री मंत्र विश्व में सबके कल्याण एक स्रोत है। गायत्री मंत्र एक ऐसा मंत्र है जिसकी उपासना भगवान स्वयं भी करते हैं। इसलिए इसके गुणों का वर्णन करना असंभव है। इस मंत्र के जप से हृदय शुद्ध होता है और मानसिक और शारीरिक विकार दूर होते हैं। शरीर में एक सकारात्मक शक्ति का संचार होता है।
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