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Monday, 30 August 2021

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: कृष्णम् वन्दे जगद्गुरुम्

जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं मै नाहि ।
सब अँधियारा मिट गया दीपक देख्या माँहि ॥ कबीर


योगेश्वर श्रीकृष्ण अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। उनका चंचल बचपन हो या श्रेष्ठ आदर्श जीवन, उनके चमत्कार हों या श्रीमद्भगवदगीता में उनके द्वारा अर्जुन को दिया गया धर्म और कर्म का उपदेश। श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व का प्रतिबिंब कण-कण में विद्यमान है।श्रीकृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। श्रीकृष्ण लगभग 5,200 वर्ष से कुछ पूर्व (द्वापरयुग) इस भारत भूमि में जन्मे थे। हिंदू धर्म के अनुसार त्रिदेवों में से एक भगवान विष्णु आठवें अवतार के रूप में श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ। श्रीकृष्ण को द्वापरयुग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष, युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। श्रीकृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है।

वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर्मर्दनम्।

देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।

कृष्ण हर रूप में अद्भुद हैं, ब्रज वृंदावन के कान्हा हो, मुरलीमनोहर, माखन चोर, गोपाल राधेकृष्ण, नन्द नंदन, यशोदा के लाल, रास रचैया, गोपी कृष्ण हो या देवकी नंदन, द्रौपदी के सखा, पांडवों के तारणहार वासुदेव, वे द्वारका के द्वारकाधीश, वे राधा मीरा गोपियों का विरह हैं और उनकी आराधना भी, वे सूरदास की दृष्टि हैं तो रसखान का अमृत भी, किंतु अपने हर रूप में पूर्ण और अनंत।

ॐ कृष्ण कृष्ण महाकृष्ण सर्वज्ञ त्वं प्रसीद मे। रमारमण विद्येश विद्यामाशु प्रयच्छ मे॥

भाद्रपद: भाद्रपद में गणेशजी और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। इसी माह में गणेश उत्सव मनाया जाता है और कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था इसीलिए जन्माष्टमी मनाई जाती है। इसी माह में श्रीराधा की पूजा भी होती है क्योंकि इसी माह में उन्होंने भी जन्म लिया था।

श्रीकृष्ण का परिवार

·         कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था।

·         वे माता देवकी और पिता वसुदेव की 8वीं संतान थे।

·         श्रीमदभागवत् के वर्णन अनुसार द्वापरयुग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज करते थे।

·         उग्रसेन का एक आततायी पुत्र कंस था और देवकी राजा उग्रसेन के भाई देवक की कन्या थी।

·         देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ था जो कृष्ण के पिता थे।

·         वसुदेव के पिता राजा शूरसेन वृष्णि वंश और यादव कुल के थे।

·         शूरसेन सुधर्मा सभा के एक वरिष्ठ सदस्य थी, उनकी एक बेटी प्रीथा और एक बेटा वसुदेव थे।

·         प्रीता को भोज राजवंश के महाराजा कुन्तिभोज ने गोद लिया था, जिससे उनका नाम कुन्ती हुआ।

·         कुन्ती का विवाह हस्तिनापुर के राजा पांडु से हुआ।

·         वसुदेव की बहन होने के नाते पांडवों की माता कुन्ती श्रीकृष्ण की बुआ लगीं।

·         वसुदेव और नन्द (कृष्ण के पालक पिता) दोनों ही चचेरे भाई थे।

·         नन्द हरिवन्श व पुराणो के अनुसार “पावन ग्वाल” के रूप मे विख्यात गोपालक जाति के मुखिया थे।

·         वसुदेव ने अपने नवजात शिशु कृष्ण को लालन पालन हेतु नन्द को सौंप दिया था।

·         नन्द व उनकी पत्नी यसोदा ने कृष्ण व बलराम दोनों को पाला पोसा।

·         कृष्ण के बड़े भाई थे उनकी माता रोहिणी थी, रोहिणी वसुदेव की पत्नी थीं।


कृष्ण की बहनें

1.   एकांगा (यह यशोदा की पुत्री थीं)। उन्होंने एकांत ग्रहण कर लिया था। इन्हें यादवों की कुल देवी भी माना गया है। कुछ लोग इन्हें योगमाया भी कहते हैं।

2.   सुभद्रा : वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से बलराम और सुभद्र का जन्म हुआ। वेबदुनिया के शोधानुसार वसुदेव देवकी के साथ जिस समय कारागृह में बंदी थे, उस समय ये नंद के यहां रहती थीं। सुभद्रा का विवाह कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। जबकि बलराम दुर्योधन से करना चाहते थे।

3.   द्रौपदी : पांडवों की पत्नी द्रौपदी हालांकि कृष्ण की बहन नहीं थी, लेकिन श्रीकृष्ण इसे अपनी मानस भगिनी मानते थे।

4.   महामाया : देवकी के गर्भ से सती ने महामाया के रूप में इनके घर जन्म लिया, जो कंस के पटकने पर हाथ से छूट गई थी। कहते हैं,विन्ध्याचल में इसी देवी का निवास है। यह भी कृष्ण की बहन थीं।

कृष्ण के गुरु- गुरु संदीपनि ने कृष्ण को वेद शास्त्रों सहित 14 विद्या और 64 कलाओं का ज्ञान दिया था। गुरु घोरंगिरस ने सांगोपांग ब्रह्म ‍ज्ञान की शिक्षा दी थी।

कृष्ण के नाम- नंदलाल, गोपाल, बांके बिहारी, कन्हैया, केशव, श्याम, रणछोड़दास, द्वारिकाधीश और वासुदेव। बाकी बाद में भक्तों ने रखे जैसे मुरलीधर, माधव, गिरधारी, घनश्याम, माखनचोर, मुरारी, मनोहर, हरि, रासबिहारी आदि।

श्रीकृष्ण की आठ रानियों और संतानों के नाम- महाभारत युद्ध के पश्‍चात्य वे 35 वर्षों तक जिंदा रहे और द्वारिका में अपनी आठ पत्नियों के साथ सुख पूर्वक जीवन व्यतीत किया। यहां प्रस्तुत है उनकी प्रत्येक पत्नी से उत्पन्न हुए 80 संतानों के नाम। हालांकि संतानें तो उनकी और भी थीं।

1.रुक्मिणी: प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुचारू, चरुगुप्त, भद्रचारू, चारुचंद्र, विचारू और चारू।

2.सत्यभामा: भानु, सुभानु, स्वरभानु, प्रभानु, भानुमान, चंद्रभानु, वृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु और प्रतिभानु।

3.जाम्बवंती: साम्ब, सुमित्र, पुरुजित, शतजित, सहस्त्रजित, विजय, चित्रकेतु, वसुमान, द्रविड़ और क्रतु।

4.सत्या: वीर, चन्द्र, अश्वसेन, चित्रगु, वेगवान, वृष, आम, शंकु, वसु और कुन्ति।

5.कालिंदी: श्रुत, कवि, वृष, वीर, सुबाहु, भद्र, शांति, दर्श, पूर्णमास और सोमक।

6.लक्ष्मणा: प्रघोष, गात्रवान, सिंह, बल, प्रबल, ऊर्ध्वग, महाशक्ति, सह, ओज और अपराजित।

7.मित्रविन्दा: वृक, हर्ष, अनिल, गृध्र, वर्धन, अन्नाद, महांस, पावन, वह्नि और क्षुधि।

8.भद्रा: संग्रामजित, वृहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित, जय, सुभद्र, वाम, आयु और सत्यक।

16 कलाओं से पूर्ण श्रीकृष्ण

जय श्री कृष्ण चैतन्यप्रभु नित्यानंद, श्री अद्वैतगदाधरश्रीवास आदि गौर भक्त वृन्द ।।

ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः।


श्रृंगार कला – भगवान श्रीकृष्ण को श्रृंगार की बारिकियों का इतना ज्यादा ज्ञान था कि उसके श्रृंगार रूप को देखकर गोकुल की कन्याएं (गोपिया) उनके मनमोहक रूप को निहारती रहती थी। उनके गले में दुपट्टा, कमर पर तगड़ी, पीताम्बर अंग वस्त्र, सिर पर छोटा मुकुट तथा उसपर मोर पंख श्री की सुन्दरता में चार चांद लगाता था


वादन कला – भगवान को वादन के सभी स्वरों का पूर्ण ज्ञान था, जिसके परिणास्वरूप वे अपनी बांसूरी से बड़े बड़ों को अपने अनुचर बना लेते थे।

नृत्य कला – श्रीकृष्ण को नृत्य का पूर्ण ज्ञान था, इसी लिए गोकुल की देवियां उनके नृत्य की प्रशंसा करते-करते श्रीकृष्ण का नृत्य देखने की हठ करती थी।

गायन कला – श्रीकृष्ण एक अच्छे गायक भी थे। वेद के मंत्रों का गायन कर उन्होंने अर्जुन को मोहपाश के मुक्त कर दिया था।

वाकमाधूर्य कला – श्रीकृष्ण की वाणी में विलक्षण मधुरता व्याप्त थी। वे जिस किसी से भी वार्ता करते थे, वह हमेशा के लिए उनका हो जाता था।

वाकचातुर्य कला – उनकी वाणी में चतुरता भी थी। वे बडे़ सहज भाव से अपनी बात को मनवा लेते थे और सामने वाले को अपना विरोद्घि भी नही बनने देते थे। महाभारत में ऐसे अनेक प्रकरण सामने आए हैं।

वक्तृत्व कला – भगवान एक महान वक्ता थे। बड़े-बड़े धूरंधरों को उन्होंने अपने प्रभावशाली वक्तव्यों से धराशाही कर उनको उनके ही बनाए जाल में फांस लिया था। कालयवन उसका एक अच्छा उदाहरण है।

लेखन कला – श्रीकृष्ण ने मात्र एक घंटे के सुक्ष्मकाल में गीता की रचना कर एक ऐतिहासिक कार्य किया है। उनका मुकाबला आज तक या इससे पहले कोई नही कर सका। अतः भगवान एक उत्तम कोटी के लेखक भी थे।

वास्तुकला – भगवान श्रीकृष्ण को वास्तुकला का भी अकाटय ज्ञान था। पांडवों के लिए इन्द्रप्रस्थ और स्वयं अपने लिए राजधानी द्वारका का निर्माण वास्तुकला के बेजोड़ नमूने थे।

पाककला – भगवान श्रीकृष्ण पाक शास्त्र के भी महान पंडित थे। सम्राट युधिष्ठर के राजसूय यज्ञ के दौरान खाने-पीने का पूरा सामान उनकी देख-रेख में ही तैयार किया गया था।

नेतृत्व कला – कृष्ण में नेतृत्व करने की क्षमता बेजोड थी। वे जहां भी गए नेतृत्व उनके पीछे-पीछे हो जाता था। सभी युद्घों से लेकर आम सभाओं में हमेशा सभी ने उन्हीं के नेतृत्व को स्वीकार किया था।

युद्घ कला – श्रीकृष्ण की अधिकतर आयु युद्घों में ही व्यतीत हुई थी परन्तु हमेशा उन्होंने सभी में विजय प्राप्त की। वे युद्घ की सभी विधाओं का सम्पूर्ण ज्ञान रखते थे।

शस्त्रास्‍त्र कला – योगेश्वर श्रीकृष्ण को युद्घ में प्रयोग होने वाले सभी व्यूहों की रचना, उन्हें भंग करने की कला तथा आग्नेयास्त्र, वरूणास्त्र तथा ब्रह्मास्त्र सहित सभी अस्त्र शस्त्रों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त था।

अध्यापन कला – भगवान श्रीकृष्ण एक सफल अध्यापक भी थे। युद्घ क्षेत्र में जिस प्रकार उन्होंने अर्जुन को निष्कामकर्म योग, सांख्य योग, विभूति योग, भक्ति योग, मोक्ष सन्यास योग तथा विश्वरूप दर्शन योग का पाठ पढाया, वह हमेशा अनुक्रणीय रहेगा।

वैद्यक कला – श्रीकृष्ण आयूर्वेद के भी सम्पूर्ण ज्ञाता थे। कंस की फूल चुनने वाली दासी कुबड़ी के शरीर को सीधा करना तथा महाभारत युद्घ में अश्वथामा के प्रहार से मृतप्रायः हुए परीक्षित को जीवन दान देना इसके अकाट्य उदाहरण है।

पूर्वबोध कला – भगवान ने तप से अपनी आत्मा को इतना पवित्र और उर्द्घव गति को प्राप्त करवा लिया था कि उन्हें किसी भी घटना का पहले से ही अनुमान हो जाता था।

भगवान राम 12 कलाओं से तो भगवान श्रीकृष्ण सभी 16 कलाओं से युक्त हैं। यह चेतना का सर्वोच्च स्तर होता है। इन्हीं 16 कलाओं से युक्त और उसके पार है शिव। इसीलिए शिव को भी हिन्दू धर्म में सर्वोच्च सत्ता माना गया है।

श्रीकृष्ण की 5 महत्वपूर्ण शिक्षाएं

ऊं श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा” 

संपूर्ण पुरुष माने जाने वाले भगवान श्री कृष्ण ने जीवन को देखने का एक नया नजरिया अपने भक्तों को दिया। जानिए श्री कृष्ण की उन 5 शिक्षाओं को जिन्हें अगर आप आत्मसात कर लें तो परमात्मा के निकट पहुंच सकेंगे…

1.   निष्काम स्वधर्माचरणम् : बिना फल की इच्छा किए या उस कार्य की प्रकृति पर सोच-विचार किए अपना कर्म करते जाओ।

2.   अद्वैत भावना सहित भक्ति : परमात्मा के प्रति अद्वैत भावना से स्वयं को उस परम शक्ति के हाथों समर्पित कर दो। उसी की भक्ति करो।

3.   ब्रह्म भावना द्वारा सम दृष्टि : सारे संसार को समान दृष्टि से देखो। सदैव ध्यान रखो कि संसार में एक सर्वव्यापी ब्रह्म है जो सर्वोच्च शक्ति है।

4.   इंद्रीय निग्रहम् और योग साधना : इंद्रियों को उनके साथान पर केंद्रित करो। सभी प्रकार की माया से स्वयं को मुक्त करने और अपनी इंद्रियों का विकास करने का निरंतर प्रयास करते रहो।

5.   शरणगति: जिन चीजों को तुम अपना कहते हो उसे उस दिव्य शक्ति को समर्पित कर दो और उस समर्पण को सार्थक बनाओ।

यह 12 उपदेश देने में सफल रहे श्रीकृष्ण

भजे व्रजैक मण्डनम्, समस्त पाप खण्डनम्,
स्वभक्त चित्त रञ्जनम्, सदैव नन्द नन्दनम्,
सुपिन्छ गुच्छ मस्तकम् , सुनाद वेणु हस्तकम् ,
अनङ्ग रङ्ग सागरम्, नमामि कृष्ण नागरम् ॥ 

1.   गुस्से पर काबू – ‘क्रोध से भ्रम पैदा होता है. भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है. जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है. जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है.’

2.   देखने का नजरिया – ‘जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, उसी का नजरिया सही है.’

3.   मन पर नियंत्रण – ‘जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है.’

4.   खुद का आकलन – ‘आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर दो. अनुशासित रहो, उठो.’

5.   खुद का निर्माण – ‘मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है. जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है.’

6.   हर काम का फल मिलता है – ‘इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है.’

7.   प्रैक्टिस जरूरी – ‘मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है.’

8.   विश्वास के साथ विचार – ‘व्यक्ति जो चाहे बन सकता है, यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे.’

9.   दूर करें तनाव – ‘अप्राकृतिक कर्म बहुत तनाव पैदा करता है.’

10.                अपना काम पहले करें – ‘किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े.’

11.                इस तरह करें काम – ‘जो कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है.’

12.                काम में ढूंढें खुशी – ‘जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते हैं.’

हे दीनबन्धो दिनेश सर्वेश्वर नमोस्तुते गोपेश गोपिका कांत राधा कांता नमोस्तुते

नमस्ते परमेशानि रासमण्डलवासिनी। रासेश्वरि नमस्तेऽस्तु कृष्ण प्राणाधिकप्रिये।।

Sunday, 29 August 2021

नाम रामायणम

नाम रामायणम संस्कृत में ऋषि वाल्मीकि द्वारा लिखित महाकाव्य रामायण का सघन संस्करण है। नाम रामायणम में 108 श्लोक हैं, और रामायण के ही समान नाम रामायणम के भी सात अध्याय हैं, जो क्रमशः बालकाण्ड, अयोध्याकांड, किष्किन्धाकाण्ड, सुंदरकांड, युद्धकांड और उत्तराखंड में विभाजित हैं।

नाम रामायणम दक्षिण भारतीय राज्यों अर्थात तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और केरल में बहुत लोकप्रिय है। हिंदी भाषी क्षेत्रों में रामचरितमानस की लोकप्रियता के कारण, उत्तर भारतीय राज्यों में नाम रामायणम कम लोकप्रिय है।



॥ बालकाण्डः॥
शुद्धब्रह्मपरात्पर राम् ॥ १ ॥
कालात्मकपरमेश्वर राम् ॥ २ ॥
शेषतल्पसुखनिद्रित राम् ॥ ३ ॥
ब्रह्माद्यामरप्रार्थित राम् ॥ ४ ॥
चण्डकिरणकुलमण्डन राम् ॥ ५ ॥
श्रीमद्दशरथनन्दन राम् ॥ ६ ॥
कौसल्यासुखवर्धन राम् ॥ ७ ॥
विश्वामित्रप्रियधन राम् ॥ ८ ॥
घोरताटकाघातक राम् ॥ ९ ॥
मारीचादिनिपातक राम् ॥ १० ॥
कौशिकमखसंरक्षक राम् ॥ ११ ॥
श्रीमदहल्योद्धारक राम् ॥ १२ ॥
गौतममुनिसम्पूजित राम् ॥ १३ ॥
सुरमुनिवरगणसंस्तुत राम् ॥ १४ ॥
नाविकधावितमृदुपद राम् ॥ १५ ॥
मिथिलापुरजनमोहक राम् ॥ १६ ॥
विदेहमानसरञ्जक राम् ॥ १७ ॥
त्र्यम्बककार्मुकभञ्जक राम् ॥ १८ ॥
सीतार्पितवरमालिक राम् ॥ १९ ॥
कृतवैवाहिककौतुक राम् ॥ २० ॥
भार्गवदर्पविनाशक राम् ॥ २१ ॥
श्रीमदयोध्यापालक राम् ॥ २२ ॥
राम् राम् जय राजा राम्।
राम् राम् जय सीता राम् ॥

॥ अयोध्याकाण्डः ॥
अगणितगुणगणभूषित राम् ॥ २३ ॥
अवनीतनयाकामित राम् ॥ २४ ॥
राकाचन्द्रसमानन राम् ॥ २५ ॥
पितृवाक्याश्रितकानन राम् ॥ २६ ॥
प्रियगुहविनिवेदितपद राम् ॥ २७ ॥
तत्क्षालितनिजमृदुपद राम् ॥ २८ ॥
भरद्वाजमुखानन्दक राम् ॥ २९ ॥
चित्रकूटाद्रिनिकेतन राम् ॥ ३० ॥
दशरथसन्ततचिन्तित राम् ॥ ३१ ॥
कैकेयीतनयार्थित राम् ॥ ३२ ॥
विरचितनिजपितृकर्मक राम् ॥ ३३ ॥
भरतार्पितनिजपादुक राम् ॥ ३४ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ।
राम् राम् जय सीता राम् ॥

॥ अरण्यकाण्डः ॥
दण्डकवनजनपावन राम् ॥ ३५ ॥
दुष्टविराधविनाशन राम् ॥ ३६ ॥
शरभङ्गसुतीक्ष्णार्चित राम् ॥ ३७ ॥
अगस्त्यानुग्रहवर्धित राम् ॥ ३८ ॥
गृध्राधिपसंसेवित राम् ॥ ३९ ॥
पञ्चवटीतटसुस्थित राम् ॥ ४० ॥
शूर्पणखार्तिविधायक राम् ॥ ४१ ॥
खरदूषणमुखसूदक राम् ॥ ४२ ॥
सीताप्रियहरिणानुग राम् ॥ ४३ ॥
मारीचार्तिकृदाशुग राम् ॥ ४४ ॥
विनष्टसीतान्वेषक राम् ॥ ४५ ॥
गृध्राधिपगतिदायक राम् ॥ ४६ ॥
शबरीदत्तफलाशन राम् ॥ ४७ ॥
कबन्धबाहुच्छेदक राम् ॥ ४८ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ।
राम् राम् जय सीता राम् ॥

॥ किष्किन्धाकाण्डः ॥
हनुमत्सेवितनिजपद राम् ॥ ४९ ॥
नतसुग्रीवाभीष्टद राम् ॥ ५० ॥
गर्वितवालिसंहारक राम् ॥ ५१ ॥
वानरदूतप्रेषक राम् ॥ ५२ ॥
हितकरलक्ष्मणसंयुत राम् ॥ ५३ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ।
राम् राम् जय सीता राम् ॥

॥ सुन्दरकाण्डः ॥
कपिवरसन्ततसंस्मृत राम् ॥ ५४ ॥
तद्‍गतिविघ्नध्वंसक राम् ॥ ५५ ॥
सीताप्राणाधारक राम् ॥ ५६ ॥
दुष्टदशाननदूषित राम् ॥ ५७ ॥
शिष्टहनूमद्‍भूषित राम् ॥ ५८ ॥
सीतावेदितकाकावन राम् ॥ ५९ ॥
कृतचूडामणिदर्शन राम् ॥ ६० ॥
कपिवरवचनाश्वासित राम् ॥ ६१ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ।
राम् राम् जय सीता राम् ॥

॥ युद्धकाण्डः ॥
रावणनिधनप्रस्थित राम् ॥ ६२ ॥
वानरसैन्यसमावृत राम् ॥ ६३ ॥
शोषितसरिदीशार्थित राम् ॥ ६४ ॥
विभीषणाभयदायक राम् ॥ ६५ ॥
पर्वतसेतुनिबन्धक राम् ॥ ६६ ॥
कुम्भकर्णशिरच्छेदक राम् ॥ ६७ ॥
राक्षससङ्घविमर्दक राम् ॥ ६८ ॥
अहिमहिरावणचारण राम् ॥ ६९ ॥
संहृतदशमुखरावण राम् ॥ ७० ॥
विधिभवमुखसुरसंस्तुत राम् ॥ ७१ ॥
खस्थितदशरथवीक्षित राम् ॥ ७२ ॥
सीतादर्शनमोदित राम् ॥ ७३ ॥
अभिषिक्तविभीषणनत राम् ॥ ७४ ॥
पुष्पकयानारोहण राम् ॥ ७५ ॥
भरद्वाजादिनिषेवण राम् ॥ ७६ ॥
भरतप्राणप्रियकर राम् ॥ ७७ ॥
साकेतपुरीभूषण राम् ॥ ७८ ॥
सकलस्वीयसमानत राम् ॥ ७९ ॥
रत्नलसत्पीठास्थित राम् ॥ ८० ॥
पट्टाभिषेकालङ्कृत राम् ॥ ८१ ॥
पार्थिवकुलसम्मानित राम् ॥ ८२ ॥
विभीषणार्पितरङ्गक राम् ॥ ८३ ॥
कीशकुलानुग्रहकर राम् ॥ ८४ ॥
सकलजीवसंरक्षक राम् ॥ ८५ ॥
समस्तलोकाधारक राम् ॥ ८६ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ।
राम् राम् जय सीता राम् ॥

॥ उत्तरकाण्डः ॥
आगतमुनिगणसंस्तुत राम् ॥ ८७ ॥
विश्रुतदशकण्ठोद्भव राम् ॥ ८८ ॥
सीतालिङ्गननिर्वृत राम् ॥ ८९ ॥
नीतिसुरक्षितजनपद राम् ॥ ९० ॥
विपिनत्याजितजनकज राम् ॥ ९१ ॥
कारितलवणासुरवध राम् ॥ ९२ ॥
स्वर्गतशम्बुकसंस्तुत राम् ॥ ९३ ॥
स्वतनयकुशलवनन्दित राम् ॥ ९४ ॥
अश्वमेधक्रतुदीक्षित राम् ॥ ९५ ॥
कालावेदितसुरपद राम् ॥ ९६ ॥
आयोध्यकजनमुक्तिद राम् ॥ ९७ ॥
विधिमुखविबुधानन्दक राम् ॥ ९८ ॥
तेजोमयनिजरूपक राम् ॥ ९९ ॥
संसृतिबन्धविमोचक राम् ॥ १०० ॥
धर्मस्थापनतत्पर राम् ॥ १०१ ॥
भक्तिपरायणमुक्तिद राम् ॥ १०२ ॥
सर्वचराचरपालक राम् ॥ १०३ ॥
सर्वभवामयवारक राम् ॥ १०४ ॥
वैकुण्ठालयसंस्थित राम् ॥ १०५ ॥
नित्यानन्दपदस्थित राम् ॥ १०६ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ॥ १०७ ॥
राम् राम् जय सीता राम् ॥ १०८ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ।
राम् राम् जय सीता राम् ॥
॥ इति नामरामायणम् सम्पूर्णम् ॥


मंत्रों की आकाशगंगा  -  मँत्र: स्पंदन  
मंत्रों और स्तोत्रों को इस पुस्तक में संग्रहित करने का प्रयास किया गया है.
मन, चेतना और बुद्धि की शुद्धता के लिए मंत्र हमें पूरी संतुष्टि देता है। मंत्र की शुद्ध ऊर्जा मन और चेतना से सभी कलंक और दोषों को दूर कर देती है। यह हमारे स्व (आत्मा) और ईश्वर के बीच सम्पर्क स्थापित करने की संभावना देता है और हमें सर्वोच्च चेतना से मिला देता है।
इस पुस्तक में हजार से अधिक मंत्रों का वर्णन है। बीज मंत्रों से मंत्रमाला तक सरल और संपूर्ण वैदिक, तांत्रिक और शाबर मंत्रों का अद्भुत संग्रह है। अत्यंत दुर्लभ सिद्ध मंत्र शीघ्र फल-दायक मंत्रों का संग्रह है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा था : "यदि आप अपने अन्दर और बाहर प्रकाश ढूंढना चाहते हैं, तो अपनी जिह्वा पर दिव्य नाम (मंत्र) का उज्जवल मोती सजा लें।"



खोया हुआ ऊँट


एक बार एक व्यापारी था. वह ज्यादा अमीर नहीं था. उसके पास एक उंट था जो ज्यादा खूबसूरत नहीं था, पर वह उस उंट से प्यार करता था. एक दिन, वह उंट को देखने गया मगर उंट वहां नहीं था. उंट गायब हुआ था. ‘अरे, मेरा उंट कहाँ गया? मेरा उंट, कहाँ है वह? उसने हर जगह देखा; सब जगह ढूंडा, मगर उसे अपना उंट नहीं मिला.

आखिर, उसने तीन अजनबियों को अपनी ओर आते हुए देखा. पेड़ों से घिरे हुए एक रास्ते से वह चल के उसकी तरफ आ रहे थे. जब वे उसके पास पहुचे, उसने पहले आदमी को रोक कर पूछा: ‘क्या आपने मेरे उंट को देखा है?’

‘तुम्हारा उंट एक आँख से अँधा है.’

‘हाँ, यह सच है; मेरा उंट एक आँख से अँधा है. कहाँ है वह?’

पर वह आदमी चलता गया.

अब दूसरा मुसाफिर आ पंहुचा.

‘क्या आपने मेरा उंट देखा है?’

तुम्हारा उंट एक पैर से लंगड़ा है.’

‘जी हाँ. कहाँ है वह, आपने उसके साथ क्या किया?’

पर वह मुसाफिर चलता गया.

अब तीसरा अजनबी आ कर रुक गया.

क्या आपने मेरा उंट देखा है?’

‘तुम्हारे उंट की पूँछ छोटी है.’

‘यह सच है! क्या किया आपने उसके साथ?’

मगर वह मुसाफिर चलता गया.

उस व्यापारी ने उन तीनो मुसाफिरों का, पेड़ों से घिरे उस रास्ते पर पीछा किया. ‘कहाँ है मेरा उंट? आपने मेरा उंट चोरी किया है! चोरी किया है आपने उसे! चोर! आवारा!

वे उस रास्ते से चलते गए. अब वह रास्ता चौड़ा हो गया. और वह चलता गया, पहले से भी ज्यादा गुस्से में क्योंकि वह उसे ध्यान नहीं दे रहे थे.

वह उन पर और जोर से चिल्लाता गया. अब उन सब ने सुलतान के महल की बाग़ में प्रवेश किया. उस सुगन्धित बाग़ में जासमीन और दुसरे सुन्दर फूल थे. और वहां सुलतान पधारें: ‘इस शोर का क्या मतलब है?’

‘इन अजनबियों ने मेरा उंट चोरी किया है!’

‘तुम्हे यह कैसे पता?’

‘वे जानते है की मेरा उंट एक आँख से अँधा है! वे जानते है की मेरा उंट एक पैर से लंगड़ा है! वे जानते है की मेरे उंट की पूँछ छोटी है!’

‘और आप को यह कैसे पता?’, सुलतान ने पुचा.

पहला अजनबी बोला: ‘मैं जानता हूँ की इसका उंट एक आँख से अँधा है, क्योंकि जब हम पेड़ों से घिरे उस रास्ते से आ रहे थे, सिर्फ बाए तरफ के डाल के पत्ते टूटे हुए थे. दाए तरफ के पेड़ों के पत्तों को छुआ भी नहीं गया था.’

‘आप को कैसे पता की इसका उंट एक पैर में लंगड़ा है?’

‘उंट के रास्ते को देखते हुए,’ दूसरा अजनबी बोला, ‘उसके पैरों के निशानों से यह बात साफ़ थी.’

‘आप को कैसे पता की उंट की पूँछ छोटी है?’

‘यह बात साफ़ है की उंट की पूँछ छोटी है,’ तीसरा अजनबी बोला. ‘रास्ते में खून के निशान थे. अगर उंट की पूँछ लम्बी होती तो उसने खून चूसने वाले कीड़े मकोंडों को दूर किया होता.’

‘यह सही है,’ सुलतान ने कहा. ‘ तुम्हारा उंट मेरे बाग़ में कुछ ही देर पहले आया था’.

और फिर उस उंट को सामने लाया गया. ज्यादा सुंदर नहीं था वह उंट. पर उस व्यापारी ने अपने उंट को चूमा. ‘अरे, मेरा उंट. मेरा सुंदर उंट मुझे वापस मिल गया.’

और वह सुलतान उन तीनों मुसाफिरों की तरफ मुडा: ‘आप सच मुच होशियार हैं. यही रहिये,’ सुलतान ने कहा, ‘मेरे सलाहकार बनकर.’

और पहले कभी भी, और आगे कभी भी, किसी सुलतान को इतना ज्ञान और इतनी सलाह नहीं मिली जितनी की उन तीनो से मिली.


एक मासूम सज़ा

यह कहानी है हिंदुस्तान के शहंशाह अकबर की और उसके वफादार और चतुर सलाहकार - बीरबल की.

दिन सुहाना था. अकबर के महल के दरबार में उनके सलाहकार उनके इंतज़ार में खड़े बातें कर रहे थे. बहुत जल्द अकबर आये, लेकिन वह आज हमेशा जैसे अच्छे मिजाज़ में नहीं थे. वे परेशान थे. अकबर का गंभीर चहरा देखकर उनके सलाहकार शांत हो गए.

"बात क्या है, जहापना? क्या आप को कोई तकलीफ है?" एक सलाहकार ने पुचा.

"आज किसीने मेरी मूंछें नोचने की जुर्रत की!" अकबर चिल्लाये. "आपको क्या लगता है, क्या सज़ा दी जाए उस बदमाश को?" अकबर ने अपने सलाहकारों को पूंछा.

एक एक कर, उन सब ने शेहेंशाह की मूछें खींचने वाले बदमाश के लिए भारी से भारी सज़ा सुझाई.

"उसे चौराहे पर फांसी पे चढ़ा दिया जाए!" एक ने कहा.

"उसका सर काट दिया जाए!" दूसरा चिल्लाया.

"उसे सौ बार चाबुक से मारा जाये!" तीसरे ने जिद्द की.

शेहेंशाह ने सबकी बातें सुनी पर उन्होंने देखा की उनके सबसे भरोसेमंद सलाहकार ने अब तक कुछ नहीं कहा था.

"बीरबल, तुम्हे कुछ नहीं कहना इस बात पर?" उन्होंने पूंछा.

बीरबल ने शांत चित्ती से कहा, "माफ़ कीजिये जहापना. मैं सुझाई हुई किसी भी सज़ा से सहमत नहीं हूँ",

अकबर बिलकुल चौक गए और उन्होंने अपने वफादार सलाहकार को पूछा, "तुम इस जुर्म के लिए क्या सज़ा सुझाते हो?"

"मुझे लगता है," बीरबल ने कहा, " की जिसने आपकी मूंछे खींचने की जुर्रत की, उसे मिठाई का डिब्बा दिया जाए."

यह सुन कर, दरबार में फिर से बातें होनी लगी. दुसरे सलाहकार बीरबल का सुझाव सुन कर चौक गए. वे सब सोचने लगे की ऐसा वफादार सलाहकार शेहेंशाह को बदमाश को मिठाई का डिब्बा देने का सुझाव कैसे दे सकता है.

"जरूर," उन्होंने विरोध किया, "यह सही सज़ा नहीं है!"

गडबडाकर शेहेंशाह ने पूंछा: "बीरबल, तुम ऐसी सज़ा क्यों सुझा रहे हो?"

"जहापना, सिर्फ आपका बेटा - राजकुमार ही आपकी मूंछे नोचने की जुर्रत कर सकता है. वह आपकी गोद में खेलता है, और आज उसने खेलते हुए आपकी मूंछे खींच लीं होंगी. ऐसे मासूम गुनेहगार को सिर्फ एक मासूम सज़ा दी जानी चाहिए. मेरा सुझाव है की आप नादान राजकुमार को एक मिठाई का डिब्बा दें."

बीरबल के चतुर प्रत्युत्तर ने शेहेंशाह के चेहरे पर मुस्कराहट लायी.

तुम सही हो, मेरे यार," शेहेंशाह अकबर बोले. "वह मेरा बेटा ही था. और उसे जरूर सज़ा की तौर पर एक मिठाई का डिब्बा ही मिलेगा!", अकबर ने कहा.

बीरबल मुस्कुराये जब की स्तिथि न समझकर भारी सज़ा सुझाने की शर्म से बाकि सलाहकार आँखें न मिला पाएं.

और आज तक, बीरबल की चतुराई और होशियारी के किस्से पीढ़ी दर पीढ़ी को दोहराए जाते है.