राजा बलि के सबसे बड़े पुत्र बाणासुर हुए जो महान शिवभक्त थे । उनकी राजधानी केदारनाथ के पास स्थित शोणितपुर थी । बाणासुक के हजार हाथ थे । जब ताण्डव नृत्य के समय शंकरजी लय पर नाचते, तब बाणासुर हजार हाथों से बाजे बजाते थे ।
इनकी सेवा से प्रसन्न होकर भवानीपति शिव ने वर मांगने को कहा । बाणासुर ने भगवान शिव से वर मांगा—‘जैसे भगवान विष्णु मेरे पिता के यहां सदा विराजमान रहकर उनकी पुरी की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार आप भी मेरी राजधानी के पास निवास करें, और मेरी रक्षा करते रहें ।’
भगवान शिव ने ‘तथास्तु’ कहकर बाणासुर के नगर के निकट रहना स्वीकार
कर लिया । बाणासुर को ‘महाकाल’ की पदवी और
साक्षात् पिनाकपाणि भगवान शिव की समानता प्राप्त हुई । वह महादेवजी का सहचर हुआ ।
|| बाणासुर कृत शिव स्तोत्र ||
वन्दे सुराणां सारं च सुरेशं नीललोहितम् |
योगीश्वरं योगबीजं योगिनां च गुरोर्गुरुम् || १ ||
ज्ञानानन्दं ज्ञानरूपं ज्ञानबीजं सनातनम् |
तपसां फलदातारं दातारं सर्वसम्पदाम् || २ ||
तपोरूपं तपोबीजं तपोधनधनं वरम् |
वरं वरेण्यं वरदमीड्यं सिद्धगणैर्वरैः || ३ ||
कारणं भुक्तिमुक्तिनां नरकार्णवतारणम् |
आशुतोषं प्रसन्नास्यं करुणामयसागरम् || ४ ||
हिमचन्दनकुन्देन्दुकुमुदाम्भोजसन्निभम् |
ब्रह्मज्योतिःस्वरूपं च भक्तानुग्रहविग्रहम् || ५ ||
विषयाणां विभेदेन बिभ्रन्तं (बिभ्रतं) बहुरूपकम् |
जलरूपं अग्निरूपं आकाशरूप मीश्वरम् || ६ ||
वायुरूपं चन्द्ररूपं सूर्यरुपं महत्प्रभुम् |
आत्मनः स्वपदं दातुं समर्थमवलीलया || ७ ||
भक्तजीवनभीशं च भक्तानुग्रहकातरम् |
वेदा न शक्ता यं स्तोतुं किमहं स्तौमि तं प्रभुम् || ८ ||
अपरिच्छिन्नमीशानमहो वाङ्मनसोः परम् | व्याघ्रचर्माम्बरधरं वृषभस्थं दिगम्बरम् |
त्रिशूलपट्टिशधरं सस्मितं चन्द्रशेखरम् || ९ ||
इत्युक्त्वा स्तवराजेन नित्यं बाणः सुसंयतः |
प्रणमेच्छङ्करं भक्त्या दुर्वासाश्च मुनीश्वरः || १० ||
|| फलश्रुतिः ||
इदं दत्तं वसिष्ठेन गन्धर्वाय पुरा मुने
कथितं च महास्तोत्रं शूलीनः परमाद्भुतम् || ११ ||
इदं स्तोत्रं महापुण्यं पठेद्भक्त्या च यो नरः |
स्नानस्य सर्वतीर्थानां फलमाप्नोति निश्चितम् || १२ ||
अपुत्रो लभते पुत्रं वर्षमेकं श्रुणोति यः |
संयतश्च हविष्याशी प्रणम्यशङ्करं गुरुम् || १३ ||
गलत्कुष्ठी महाशुली वर्षमेकं शृणोति यः |
अवश्यं मुच्यते रोगाद्व्या सवाक्यमिति श्रुतम् || १४ ||
कारागारेऽपि बद्धो यो नैव प्राप्नोति निर्वृतिम् |
स्तोत्रं श्रुत्वा मासमेकं मुच्यते बन्धनाद् ध्रुवम् || १५ ||
भ्रष्टराज्यो लभेद्राज्यं भक्त्या मासं शृणोति यः |
मासं श्रुत्वा संयतश्च लभेद्भ्रष्टधनो धनम् || १६ ||
यक्ष्मग्रस्तो वर्षमेकमास्तिको यः शृणोति चेत् |
निश्चितं मुच्यते रोगाच्छङ्करस्य प्रसादतः || १७ ||
यः श्रुणोति सदा भक्त्या स्तवराजमिमं द्विज |
तस्यासाध्यमं त्रिभुवने नास्ति किंचिच्च शौनक || १८ ||
कदाचिद्बन्धुविच्छेदो न भवेत्तस्य भारते |
अचलं परमैश्वर्य्यं लभते नात्र संशयः || १९ ||
सुसंयतोऽतिभक्त्या च मासमेकं शृणोति यः |
अभार्य्यो लभते भार्य्यां सुविनितां सतीं वराम् || २० ||
महामूर्खश्चदुर्मेधो मासमेकं शृणोति यः |
बुद्धिं विद्यां च लभते गुरुपदेशमात्रतः || २१ |
कर्मदुःखी दरिद्रश्च मासं भक्त्या शृणोति यः |
ध्रुवं वित्तं भवेत्तस्य शङ्करस्य प्रसादतः || २२ ||
इह लोके सुखंभुक्त्वा कृत्वा कीर्तिं सुदुर्लभाम् |
नानाप्रकारधर्मं च यात्यन्ते शङ्करालयम् || २३ ||
पार्षदप्रवरो भूत्वा सेवते तत्र शङ्करम् |
यः शृणोति त्रिसन्ध्यं च नित्यं स्तोत्रमनुत्तमम् || २४ ||
|| शिव स्तोत्रम सम्पूर्णम ||
बाणासुर द्वारा की गई भगवान शिव की स्तुति के पाठ का फल
▪️ इस स्तुति का भक्तिभाव से पाठ करने पर सभी तीर्थों में स्नान का फल मिलता है ।
▪️ पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखने वाला मनुष्य यदि एक वर्ष तक संयमपूर्वक रहकर व सात्विक भोजनकर इस स्तोत्र का पाठ करे, तो उसकी पुत्रप्राप्ति की अभिलाषा अवश्य पूरी होती है ।
▪️ कोढ़, राजयक्ष्मा (टी बी) या पेट के रोग होने पर एक वर्ष तक इस स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य इन रोगों से मुक्त हो जाता है ।
▪️ जो मनुष्य
किसी भी प्रकार
कैद में रहकर
अशान्त हो
वह यदि एक
माह तक इस
स्तोत्र का
पाठ करे तो
हर प्रकार का बंधनमुक्त हो
जाता है ।
▪️ जिसका धन-ऐश्वर्य
छिन गया हो,
निर्धन हो,
वह इस स्तोत्र
का एक मास
तक पाठ करे
तो उसे धन-ऐश्वर्य
की प्राप्ति हो
जाती है ।
▪️ इस स्तोत्र
का पाठ करने
से मनुष्य को
अपने बंधु-बांधवों
के वियोग
का दुख
नहीं होता है
।
▪️ सुन्दर व सुलक्षणा
पत्नी की
प्राप्ति के लिए
इस स्तोत्र
का एक मास
तक भक्तिभाव
से पाठ करना
चाहिए ।
▪️ मूर्ख और दुर्बुद्धि मनुष्य इस स्तोत्र का यदि नित्य पाठ करे तो उसे बुद्धि और विद्या की प्राप्ति हो जाती है ।▪️भगवान शंकर की भक्तिभाव से पूजा कर इस स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य के लिए इस संसार में कुछ भी असाध्य नहीं रह जाता है । वह दुर्लभ कीर्ति प्राप्त करता है । अनेक प्रकार के धर्म-कर्म कर वह इस लोक में सुख भोगकर अंत में भगवान शंकर के धाम को जाता है, और वहां शिव पार्षद बनकर भगवान शिव की सेवा करता है ।