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Thursday, 21 April 2022

पारिजात वृक्ष की कहानी…

शास्त्रानुसार स्वर्गलोक या पृथ्वीलोक में पारिजात वृक्ष को सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है। आयुर्वेद में परिजात के वृक्ष को हारसिंगार कहा जाता है तथा हारसिंगार अर्थात पारिजात के फूलों का लक्ष्मी व शिवपूजन में अत्यधिक महत्व है। इस पेड़ के नीचे बैठने से पल भर में थकान ऊइन छू हो जाती है।

इसमें लगने वाले फूल भी अद्भूत किस्म के होते हैं क्योंकि ये फूल केवल रात में खिलते हैं और सुबह होने पर सभी मुरझा जाते हैं। अंग्रेज़ी में इसे 'नाइट जैस्मीन' कहते हैं.


हरिवंश पुराण के अनुसार पारिजात के वृक्ष को कल्पवृक्ष कहा गया है तथा इसकी उत्तपत्ति समुन्द्र मंथन से हुई थी। इस वृक्ष को देवराज इंद्र स्वर्गलोक ले गए थे। इसे छूने का अधिकार मात्र उर्वशी नामक अप्सरा को प्राप्त था, जिससे उर्वशी की सारी थकान दूर हो जाती थी। परिजात एकमात्र ऐसा वृक्ष है जिस पर बीज नहीं लगते व इसकी कलम बोने पर दूसरा वृक्ष नहीं लगता। इस अद्भुत वृक्ष पर पुष्प जरूर खिलते हैं लेकिन वे भी मात्र रात्री में तथा प्रातः होने पर सभी फूल मुरझा जाते हैं। इन फूलों को मूलत: लक्ष्मी पूजन हेतु उपयोग किया जाता है परंतु मात्र उन्हीं फूलों उपयोग किया जाता है जो स्वयं टूटकर गिरे हों। अतः शास्त्रों में पारिजात के फूल तोड़ना वर्जित कहा गया है।

स्वर्ग से लाया गया था पारिजात वृक्ष 

पारिजात को लेकर एक कथा ऐसी भी है कि यह एक राजकुमारी थी जिसे सूर्य से प्रेम हो गया था। लेकिन सूर्य ने इन्हें अपनाने से मना कर दिया। प्रेम में पारिजात ने शरीर का त्याग कर दिया और इसकी चिता से एक पौधा निकला जिसके फूल रात में खिलकर अपनी सुगंध से मन को मोह को लेते हैं। लेकिन सुबह सूर्य के निकलने से पहले ही बिखर जाते हैं। कहते हैं वह राजकुमारी ही पारिजात के वृक्ष के रूप में प्रकट हुई थी जैसे वृंदा की चिता की राख से तुलसी की उत्पत्ति हुई थी।



1 comment:

  1. Hindu Mythology is the best in the world. I must read this book Sagas of Hindu Mythology.

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