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Friday 11 June 2021

"महामंत्र जितने जग माहीं, कोऊ गायत्री सम नाहीं"


गायत्री मंत्र (वेद ग्रंथ की माता) को हिन्दू धर्म में सबसे उत्तम मंत्र माना जाता है । गायत्री मंत्र में तीन पहलूओं क वर्णं है - स्त्रोत, ध्यान और प्रार्थना । गायत्री देवी, वह जो पंचमुख़ी है, हमारी पांच इंद्रियों और प्राणों की देवी मानी जाती है । गायत्री मंत्र जिसको सुनने मात्र से ही हमारा तन मन शांत हो जाता है। यह मंत्र आध्यात्मिक और बौद्धिक ज्ञान के विकास के लिए रामबाण का कार्य करता है। गायत्री मंत्र हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने को प्रेरित करता है, इस मंत्र की सहायता से अज्ञानी भी ज्ञान प्राप्त कर सकता है।

गायत्री मंत्र यजुर्वेद के मन्त्र 'ॐ भूर्भुवः स्वः' और ऋग्वेद के छन्द 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवितृ देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। इसे श्री गायत्री देवी के स्त्री रूप में भी पूजा जाता है।

गायत्री मंत्र एक प्रकार का योग है, जिसे नाद योग कहा जाता है। अगर सरल शब्दों में कहें, तो नादयोग एक प्रकार का संगीत ध्यान है। दरअसल, नाद का मतलब होता है ध्वनि या आवाज, जिसकी मदद से इस योग को किया जाता है। नाद योग शरीर, मन और आत्मा के बीच तालमेल स्थापित कर प्राकृतिक रूप से शारीरिक समस्याओं के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक समस्याओं से छुटकारा पाने में मदद कर सकता है

नाद ब्रह्म विश्व स्वरूपा, नाद हि सकल जीव रूपा,

नाद हि कर्म, नाद हि धर्म, नाद हि बंधन, नाद हि मुक्ति,

नाद हि शंकर, नाद हि शक्ति, नादम, नादम, सर्वम नादम,

नादम, नादम, नादम, नादम ।।

अर्थात, ध्वनि ही ब्रह्म है, ब्रह्मांड का प्रकट स्वरुप है, ध्वनि अपने आप को सभी प्रकार के जीवन के रूप में प्रकट करती है, ध्वनि ही कर्म है, ध्वनि ही धर्म है, ध्वनि ही बंधन है, ध्वनि ही मुक्ति है, ध्वनि ही सब कुछ देने वाली है, ध्वनि ही हर चीज़ में मौजूद ऊर्जा है, ध्वनि ही सब कुछ है।

के उच्चारण में ही तीनो शक्तियों का समावेश हैं । हे माँ भगवती जिसने सभी शक्तियों का सर्जन किया ऐसी प्राणदायिनी, दुःख हरणी, सुख करणी, समस्त रोगों का निवारण करने वाली, प्रज्ञावान माँ भगवती जो सभी देवों की देवी हैं उसकी में उपासना करती हूँ जिसने मुझे संरक्षण दिया और सभी प्रकार के ज्ञान से समृद्ध बनाया ।


मंत्र विद्या का प्रयोग”

मंत्र विद्या का प्रयोग भगवान की भक्ति, ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के लिए किया जाता है। साथ ही, सांसारिक एवं भौतिक सुख-सुविधाओं, धन प्राप्त करने की इच्छा के लिए भी मंत्रों का जप किया जा सकता है।

गायत्री मंत्र का महत्व

हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले गायत्री मंत्र को सबसे पवित्र मंत्र मानते है। माना जाता है कि सभी 4 वेदों का सार इस एक गायत्री मंत्र में समाहित है। शास्त्रों के अनुसार यह मंत्र वेदों का श्रेष्ठ मंत्र है।

गायत्री मंत्र कुल 24 अक्षरों से मिलकर बना है, इन 24 अक्षरों को देवी-देवताओं का स्मरण बीज माना गया है। इन 24 अक्षरों को शास्त्रों और वेदों के ज्ञान का आधार भी बताया गया है।

गायत्री मंत्र जप के नियम

गायत्री मंत्र का जाप करते समय इन बातों को जरूर ध्यान में रखना चाहिए:

प्रातःकाल में स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ और धुले कपड़े पहनकर इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

जाप ऐसे स्थान पर करें जो स्थान शांत और एकांत होने के साथ ही पवित्र भी हो।

गायत्री मंत्र का जाप चमड़े के बने आसन पर नहीं करना चाहिए इसका जाप ऊनी और रेशमी आसनों पर बैठकर करना चाहिए।

मंत्र का जाप करते समय पालथी मारकर या पद्मा में बैठकर ही करें।

इस मंत्र का जप बिना आहार के करना चाहिए।

मंत्र के जप के समय जप की गिनती जरूर करनी चाहिए। क्योंकि बिना गिनती के किया गया जाप “आसुर जाप” कहलाता है।

इस मंत्र का जप मन में करना चाहिए, होठ बिलकुल भी नहीं हिलने चाहिए और मन एकाग्र होना चाहिए।

इस मंत्र का जप करते समय आपको बीच में उठना नहीं होता है। यदि किसी कारणवश उठना भी पड़े तो हाथ और मुंह धोकर वापस जप के लिए बैठे।

गायत्री मंत्र का जप प्रतिदिन नियमित समय पर ही करना चाहिए।

मंत्र का जाप करने के बाद त्रुटियों के लिए क्षमा-प्रार्थना जरूर करें।

इस मंत्र को करने के लिए आपको शुद्ध शाकाहारी होना जरूरी है।

निम्नलिखित संकल्प मन में पूर्ण विश्वास से दोहराईये:-

1- मैं त्रिपदा गायत्री की सर्वशक्तिमान पुत्री/पुत्र हूँ।

2- मैं बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान परमात्मा का बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान पुत्री/पुत्र हूँ।

3- मैं गायत्री की गर्भनाल से जुड़ी/जुड़ा हूँ और माता गायत्री मेरा पोषण कर रही हैं। मुझे बुद्धि, स्वास्थ्य, सौंदर्य व बल प्रदान कर रही है।

4- मैं वेदमाता का वेददूत पुत्री/पुत्र हूँ। मुझमें ज्ञान जग रहा है।

5- जो गुण माता के हैं वो समस्त गुण मुझमें है।

फिर गायत्री मंत्र जप करना शुरू करे - * ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥।*

(1) गायत्री मंत्र का उच्चारण करने से हमारा तन मन और मस्तिष्क पूरी तरह से शांत हो जाता है

(2) गायत्री मंत्र का उच्चारण सुबह सूर्योदय के समय करने से सकारात्मक विचार उत्पन्न होती है और कोई भी कार्य करने की अभूतपूर्व ऊर्जा मिलती है।

(3) गायत्री मंत्र का जाप करते समय 1,10,000 ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती है जो कि सभी वचनों और मंत्रों से अधिक है इससे मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर के विकार भी दूर होते है।

(4) गायत्री मंत्र में विभिन्न प्रकार की आवृतिया होती है जिन के मिश्रण से आध्यात्मिक शक्ति को और अधिक विकसित करने की क्षमता उत्पन्न होती है।

(5) विद्यार्थी के लिए यह मंत्र उच्चारण करना बहुत आवश्यक है क्योंकि इसके जाप करने मात्र से ही उनके अंदर आई सभी विकारों का नाश होता है और उनके बुद्धि का विकास होता है।

(6) इस मंत्र का जाप करने से आपके अंदर गुस्से और क्रोध की भावनाओं का पूरी तरह से नाश हो जाता है।

(7) यह मंत्र रहने ईश्वर द्वारा दी गई प्रत्येक वस्तु पृथ्वी, जल, अग्नि, अंतरिक्ष इत्यादि का बोध कराता है और ईश्वर से जुड़ने का मार्ग बताता है।

गायत्री मंत्र में हर शब्द का अर्थ और महत्व अलग-अलग है जो इस प्रकार है (Gayatri Mantra Meaning word by words in Hindi):

ॐ भूर्भुव: स्व: आह्वान है। मूल मंत्र अगली तीन पंक्तियाँ हैं।

अन्वय क्रम ( सायण भाष्य के अनुसार )

य: न: धिय: प्रचोदयात तत देवस्य सवितु: वरेण्यं भर्ग: धीमहि

शब्दार्थ:

पृथ्वी, अंतरिक्ष औऱ स्वर्ग - त्रिलोक में व्यापक परमेश्वर का आवाहन करते हैं

जो हमारी बुद्धियों को प्रेरित करते हैं उस देवता सविता का वरण करने योग्य पाप नाशक तेज - (हम) धारण करें या ध्यान करें।

= ईश्वर हमारी सबकी मदद करने वाला हर कण में मौजूद है

भू = पृथ्वी जो सम्पूर्ण जगत के जीवन का आधार और प्राणों से भी प्रिय है

भुवः = सभी दुःखों से रहित, जिसके संग से सभी दुखों का नाश हो जाता है

स्वः = वो स्वयं:, जो सम्पूर्ण जगत का धारण करते हैं

तत् = उसी परमात्मा के रूप को हम सभी

सवितु = जो सम्पूर्ण जगत का उत्पादक है

र्वरेण्यं = जो स्वीकार करने योग्य अति श्रेष्ठ है

भर्गो = शुद्ध स्वरूप और पवित्र करने वाला चेतन स्वरूप है

देवस्य = भगवान स्वरूप जिसकी प्राप्ति सभी करना चाहते हैं

धीमहि = धारण करें

धियो = बुद्धि को

यो = जो देव परमात्मा

नः = हमारी

प्रचोदयात् = प्रेरित करें, अर्थात बुरे कर्मों से मुक्त होकर अच्छे कर्मों में लिप्त हों

गायत्री मन्त्र का सरल अर्थ :-----

1. ॐ = ब्रम्हा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का संयुक्त रूप से बोध कराने वाला संकेत;

भूर्भुवः स्वः = तीनों देवों के अलग-अलग निवास स्थान का संकेत है;

2. भूः = (श्री ब्रम्हा जी का);

3. भुवः = (श्री विष्णु जी का);

4. स्वः = (श्री महेश जी का);

5. तत्सवितुर्वरेण्यं = सूर्य द्वारा वरणीय अथवा सूर्य का भी उपास्य देव रूप उस;

6. भर्गो देवस्य = तेजस्वरूप देव का;

7. धीमहि = ध्यान करता हूँ;

8. धियो = बुद्धि; यो = जिससे; नः = हमारी; (जिससे हमारी बुद्धि)

9. प्रचोदयात् = शुद्ध रहे या सत्कर्म के प्रति उत्प्रेरित रहे।

गायत्री मंत्र कब करें

प्रातःकाल में उठते समय अष्ट कर्मों को जीतने के लिए गायत्री मंत्र का 8 बार जाप करना चाहिए।

सुबह पूजा में बैठे तब 108 बार इसका जप करना चाहिए।

हमेशा जब आप घर से पहली बार बाहर जाते है तो समृद्धि, सफलता, सिद्धि और उच्च जीवन के लिए इसका उच्चारण करना चाहिए।

मन्दिर में प्रवेश के दौरान इसका उच्चारण करना चाहिए।

हमेशा रात में सोने से पूर्व एक बार इसका उच्चारण जरूर करना चाहिए।

गायत्री मंत्र का जाप हम सभी लोगों को करना चाहिए क्योंकि मस्तिष्क के विकार के साथ साथ शारीरिक परेशानियां भी दूर होती है और यह हमें आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है। जिससे हमें जीवन जीने का सही मतलब समझ में आता है। गायत्री मंत्र विश्व में सबके कल्याण एक स्रोत है। गायत्री मंत्र एक ऐसा मंत्र है जिसकी उपासना भगवान स्वयं भी करते हैं। इसलिए इसके गुणों का वर्णन करना असंभव है। इस मंत्र के जप से हृदय शुद्ध होता है और मानसिक और शारीरिक विकार दूर होते हैं। शरीर में एक सकारात्मक शक्ति का संचार होता है।

   


Saturday 5 June 2021

Chakshusho Mantra: Vedic Hymn for better eye-sight

Our ancient Rishi’s had gone into such inner depths that they have given us mantras for everything as their blessings to mankind.

Mantra is energy-medicine which goes into your deepest energy body and rebalance things from there. Mantra are only in Sanskrit/ Devbhasha Sanskritam, no other language.

There are 3 lines of checking if something is correct or wrong.

  • The Veda should say it is correct.
  •  A Seer-Rishi or a Guru must say that is correct.
  •  And finally, the over-riding, your own conscience should say that it is correct. Never do anything that is against your conscience, it creates the bad karma!
Sun is supposed to give energy and life to the entire planet, and strength to eyes. This prayer is for relief from eye diseases and for attaining brilliant vision. Its reading /chanting alone is sufficient. The vision is enhanced and eyes become brilliant. The prayer is addressed to Lord Surya and it is prayed that by relieving me from my own bad karma from the past life, in still light in my eyes and cure all my eye diseases. It is said that one who reads this Upanishad daily will never suffer from eye diseases and there will not be any blind in his family. The prayer ends with salutations to Lord Vishnu. 

It is best recommended to recite the following shloka during Sun-rise time in the early morning minimum twelve times consequently, daily, (if possible 28 time to get more and quicker effect) after taking bath and with empty stomach.

चाक्षुषोपनिषद

विनियोग
ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुध्न्य ऋषिःगायत्री छन्दःसूर्यो देवताॐ बीजम् नमः शक्तिःस्वाहा कीलकम्चक्षुरोग निवृत्तये जपे विनियोगः

चक्षुष्मती विद्या

ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेज स्थिरो भव।

मां पाहि पाहि।

त्वरितम् चक्षुरोगान् शमय शमय।

ममाजातरूपं तेजो दर्शय दर्शय।

यथा अहमंधोनस्यां तथा कल्पय कल्पय ।

कल्याण कुरु कुरु

यानि मम् पूर्वजन्मो पार्जितानि चक्षुः प्रतिरोधक दुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय।

ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय।

ॐ नमः कल्याणकराय अमृताय। ॐ नमः सूर्याय।

ॐ नमो भगवते सूर्याय अक्षितेजसे नमः।

खेचराय नमः महते नमः। रजसे नमः। तमसे नमः ।

असतो मा सद गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मां अमृतं गमय।

उष्णो भगवान्छुचिरूपः। हंसो भगवान् शुचि प्रतिरूपः ।

ॐ विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं ज्योतिरूपं तपन्तम्।

सहस्त्र रश्मिः शतधा वर्तमानः पुरः प्रजानाम् उदयत्येष सूर्यः।।

ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय आदित्याया अक्षि तेजसे अहो वाहिनि वाहिनि स्वाहा।।

ॐ वयः सुपर्णा उपसेदुरिन्द्रं प्रियमेधा ऋषयो नाधमानाः।

अप ध्वान्तमूर्णुहि पूर्धि- चक्षुम् उग्ध्यस्मान्निधयेव बद्धान्।।

ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः। ॐ पुष्करेक्षणाय नमः। ॐ कमलेक्षणाय नमः। ॐ विश्वरूपाय नमः। ॐ श्रीमहाविष्णवे नमः।

ॐ सूर्यनारायणाय नमः।। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।

य इमां चाक्षुष्मतीं विद्यां ब्राह्मणो नित्यम् अधीयते न तस्य अक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अंधो भवति। न तस्य कुले अंधो भवति।

अष्टौ ब्राह्मणान् ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिः भवति।

विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं पुरुषं ज्योतिरूपमं तपतं सहस्त्र रश्मिः।

शतधावर्तमानः पुरः प्रजानाम् उदयत्येष सूर्यः। ॐ नमो भगवते आदित्याय।।

।।इतिस्तोत्रम्।।



Wednesday 2 June 2021

मंत्रयोग की उपयोगिता

 In Sanskrit, “man” translates to mind, and “tra” means to free from. Mantras are used as a tool to free the mind.

Vedic chanting is said to help develop one's mental powers and strength, ease stress, and take one to a higher level of consciousness.


ॐ दीप ज्योति परब्रह्म

दीपं सर्वे मोहनं।

दीपं ना सजते सर्वं संध्या

दीपं सरस्वत्यम॥

ॐ शांति: शांति: शांति:

आध्यात्मिक और योग साधना से इंसान के मन-मस्तिष्क को संतुलित करने में सहायता मिलती है। सही तरीके से ध्यान लगाने से इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है। लेकिन कई बार नियमित योग ध्यान करने के बावजूद आपका मन विचारों की दुनिया में भटकता रहता है। कुछ तरीको की मदद से सही ध्यान लगाने में आपकी मदद की जा सकती है।

जब भी आप किसी जरुरतमंद लोगो की किसी प्रकार की मदद करते है तो आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ जाता है। क्योंकि जब आप किसी की मदद करते हो और दूसरों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हो तो इससे अच्छी ऊर्जा मिलती है।

मन्त्र महान स्पंदन और शक्तिशाली आध्यात्मिक ऊर्जा-सम्पन्न शब्द हैं।

एक भजन में कहा गया है : "हम शब्दों के माध्यम से ही लेन-देन करते हैं। हम भावनाओं का संप्रेषण और अर्जन शब्दों द्वारा ही करते हैं।"

प्रत्येक शब्द का अपना स्पन्दन होता है और जब बोला जाता है, इसका अपना अर्थ और स्पन्दन के अनुरूप ही प्रभाव होता है। मैत्री और विनम्र भाव वाले शब्द जैसे "क्या आप मेरे ऊपर यह कृपा करने का इतना कष्ट और करेंगे!" बिल्कुल ही भिन्न प्रतिक्रिया होगी, जैसे आक्रामक शब्दों में कहते हैं "अब, जैसा मैं कहता हूं, वैसा ही करो"। व्यक्ति, स्थान, समय और परिस्थिति सभी समान हैं, जैसे मुख, जिह्वा और भाषा। अन्तर मात्र शब्दों में ही है।

नक्षत्र संसार में ही संप्रेषण के लिए कुछ खास शब्द जरूरी हैं और जैसा हमारे संसार में है, वैसा ही कुछ नियमों का पालन होना भी आवश्यक है। यदि हम किसी को दूरभाष (टेलीफोन)करना चाहते हैं और यदि हमारा या दूसरे व्यक्ति का टेलीफोन काम नहीं कर रहा है तो कोई बातचीत नहीं हो सकती। अत: संप्रेषण के लिए मूल आवश्यकता यह है कि भेजने और प्राप्त करने वाला स्थान दोनों ही ठीक तरह से क्रियाशील हों। किन्तु एक और शर्त भी पूरी करनी है। यदि एक व्यक्ति द्वारा बोले जाने वाली भाषा दूसरा व्यक्ति नहीं समझ सके तो संवाद नहीं हो सकता, चाहे दोनों टेलीफोन काम कर रहे हों।

पशुओं की भी अपनी 'भाषा' होती है। उदाहरण के लिए, मछली एक-दूसरे के साथ बिना शब्दों के संवाद करती है किन्तु मस्तिष्क ऊर्जा तरंगों के सीधे संचार द्वारा ही। यदि हम मछलियों के एक झुण्ड को देखें तो हमें यह अत्यन्त विस्मयकारी और लगभग समझ में न आने वाला होता है कि वे कितनी पूर्णता से अपनी गतिविधियों का समन्वय करती हैं। वे अत्यन्त स्वतन्त्रता से तैरती हैं, लगभग बिना भिड़े एक साथ और सही ढंग से एक ही दिशा में मुड़ जाती हैं।

अत: प्रत्येक स्तर पर कोई ऐसी भाषा होती है जो संवाद का प्रयोजन पूरा करती है।

जैसा पहले भी उल्लेख किया गया है मन्त्र उन शब्दों की एक शृंखला है जो अपनी सम्पूर्णता में एक सार्थक स्पन्दन के साथ एक ध्वनि का रूप निर्माण करते हैं। शब्दों का अर्थ ध्वनि है और ध्वनि स्पन्दन उत्पन्न करती है। स्पन्दन शक्ति है - सर्व व्यापक, सृजनात्मक शक्ति जो गति और प्रतिध्वनि उत्पन्न करती है। ऊर्जा का अर्थ है जीवन, और जहां जीवन है वहां सृजनात्मकता भी है।

चराचर जगत में शब्द और ध्वनि सर्वाधिक दृढ़ शक्तियां हैं। कई लोग विश्वास करते हैं कि प्रेम में बहुत शक्ति होती है किन्तु यह गलत है। सांसारिक प्रेम बिल्कुल कमजोर और सनकी है। किन्तु शब्द बहुत शक्तिशाली है। शब्द व्यक्ति को खुशी या दु:खी बना सकते हैं। वे प्रेम उत्पन्न कर सकते हैं या इसको नष्ट भी कर सकते हैं।

श्री महाप्रभू ने कहा था : "आपके होठों से शब्द ऐसे निकलने चाहिए जैसे सुगंधित पुष्प झर रहे हों।" एक कविता में कहा गया है : "सद् प्रयत्न करो कि आपके शब्दों से सभी प्रसन्न रहें। अपने द्वारा शांति और सुव्यवस्था को स्पंदित होने दो और आपके ही माध्यम से उसका प्रसार भी हो।"

किसी का अच्छा बोलने में कुछ खर्च नहीं होता है। किन्तु एक कठोर या बुरा शब्द काफी महंगा पड़ सकता है। अत: हमारे लिए केवल यही लाभदायक होगा कि हर परिस्थिति में विनम्रता और मित्रता से ही बोलें। यदि यह असंभव लगता हो तो चुप रहना ही बेहतर है। हमें अपने हृदय में प्रत्येक अपने विचारों पर इन्हें बोलने से पूर्व अच्छी तरह से सोचना चाहिए क्योंकि इसके बाद पृथ्वी पर कोई शक्ति नहीं है जो इनको वापस ला सके। एक कहावत है : "तीन वस्तुएं वापस नहीं आती - कहे हुए शब्द, बन्दूक से निकली गोली और शरीर से निकली आत्मा।"

मन्त्र शब्द के दो अक्षरों का अर्थ 'मन्' (दिमाग) और 'त्र' (स्वतंत्रता) है। मन्त्र वह ध्वनि है जो मन को भय, निर्भरता और दु:ख से स्वतन्त्र कर सकती है। एक बार मन स्वतन्त्र हो जाता है तब अन्य समस्याएं स्वत: सुलझ जाती हैं, क्योंकि सबसे बड़ी समस्या स्वयं मन ही है। मन चंचल है और यह निरन्तर अनेक विचारों से घिरा रहता है। नित्य के आपाधापी भरे जीवन और सांसारिक समस्याओं के कारण हमें ईश्वर के संबंध में विचार करने का समय ही नहीं मिलता। मन्त्र मन को शांति देता है और हमारे विचारों का मार्गदर्शन करता है।

अक्षर 'त्र' का एक अन्य अर्थ - 'पूरा करना (भरना)' है। किसी प्यासे की आवश्यकता को एक गिलास पानी संतुष्ट कर सकता है। मन को त्रस्त करने वाली यह कौनसी प्यास है? इसे कैसे बुझाया जाये? मन किस तरह बंधा हुआ है और यह स्वयं से किस तरह अलग हो सकता है?

आत्मा, हमारा आन्तरिक स्व, ब्रह्माण्ड स्व का सार है, जिसकी प्रकृति महाआनन्द, परमानन्द है। अत: प्रत्येक व्यक्ति की सर्वाधिक आन्तरिक विशिष्टता विश्व आत्मा के एक अंश के रूप में आनन्द, परमानन्द ही है। आत्मा पैदा नहीं होती, यह अमर है। आत्मा, हमारा सत्य स्व, सत-चित-आनन्द है। हमारी आत्मा की न बुझने वाली प्यास इसी की चाहना करती है कि स्वयं को इस आनन्द में पूरी तरह आत्मसात कर लें। शांति केवल तभी मिल सकती है जब यह आनन्द में आत्मसात हो जाती है। हम अभीष्ट जल तक पहुंच सकें, इससे पूर्व हमें मिट्टी और कंकरों को दूर करने के लिए कठोर परिश्रम करना होगा। ये बाधाएं रोजाना की कठिनाइयां और समस्याएं हैं, जिनका हमें सामना करना होता है। मन्त्र हमें दैनिक चिन्ताओं और समस्याओं, बीमारियों और दुर्भाग्यों से निबटने में सहायता कर सकते हैं। मन्त्र हमें आनन्द-अनन्त परमानन्द के अनुभव की ओर ले जायेगा।

योग सर्व ज्ञान का आधार है। योग का अर्थ प्रकाश (ज्योति), चेतना और अस्तित्व है, जो सदैव था, सदैव है और सदैव रहेगा। वे सभी जो दृश्य और अदृश्य हैं, योग के सिद्धान्त से सुव्यवस्था और सन्तुलन में जुड़ जाते हैं। यह वह शक्ति है, जो ज्ञान, ज्ञाता और ज्ञान के उद्देश्य को जोड़ती है। योगियों और ऋषियों ने ध्यान में ज्ञान का पता लगाया और इस ज्ञान का विस्तार कर, मानवता कल्याण के लिए सौंप दिया। संस्कृत ग्रन्थों के अक्षरों का पता भी ध्यान में ही लगाया गया था और इन सभी का ब्रह्माण्ड के एक खास स्तर पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। संस्कृत मन्त्रों जिनका आज हम उपयोग करते हैं, ये योगियों के आध्यात्मिक कार्यों से उद् भूत हैं। यही कारण है कि मन्त्रों का प्रभाव मूल संस्कृत भाषा में किसी अन्य भाषा से अधिक होता है। संस्कृत के अक्षर देवनागरी के रूप में जाने जाते हैं (देव का अर्थ 'ईश्वर' और नागर का अर्थ 'नागरिक')। संस्कृत 'देवों की लिपि' है। इसका तात्पर्य यह है कि यह भाषा विश्व के प्रारम्भ होने के समय से ही अस्तित्व में है।

मन्त्र कई प्रकार के हैं :

  1. भजन (आध्यात्मिक संगीत)

    भजन आध्यात्मिक बुद्धि और स्पष्टता का संचरण करता है। भजन गायन गायक और श्रोताओं दोनों को प्रेरित करता है। भजन चेतना को शुद्ध, भावनाओं को उत्तम और भक्ति को जाग्रत करते हैं।

  2. कीर्तन (गीत में ईश्वर के नाम को दोहराना)

    मन्त्र के इस खास रूप का अभ्यास हमारे भावनात्मक पक्ष से विशेष रूप से संबंधित है। प्रेम से परमात्मा का नाम दोहराये जाने से एक दृढ़ आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है और यह चेतना को शुद्ध करती है। तथापि सिद्धान्त रूप से कीर्तन 5-10 मिनट से ज्यादा नहीं करने चाहिए, क्योंकि जब ये बहुत अधिक देर तक और बहुत अधिक उल्लास में किए जाते हैं तब कीर्तन करने से अत्यधिक भावना उत्पन्न हो जाती है, जो अवास्तविकता और भाव विभोरता की स्थिति तक पहुंचा सकती है।

  3. प्रार्थना

    प्रार्थना मन्त्र का एक समारोहगत प्रकार है। यह "यह ईश्वर के साथ संवाद" है और स्वतन्त्र रूप से या प्रात:कालीन प्रार्थना, सायंकालीन प्रार्थना, श्रृंगार जैसे विशेष अवसरों के लिए तैयार पाठ से किया जा सकता है। प्रार्थना में हम ईश्वर की मौजूदगी बहुत स्पष्ट रूप में अनुभव करते हैं। प्रार्थना हमें अपनी समस्याओं से उबरने, हमारी आध्यात्मिकता विकसित करने तथा स्वयं में और ईश्वर में विश्वास बढ़ाती है।

  4. स्वास्थ्यप्रद मन्त्र

    मन्त्र का अन्य प्रकार रोग हर मन्त्र है। नाडिय़ों या चक्र में अव्यवस्था या रुकावटें बीमारी के रूप में मानव शरीर से प्रकट होती हैं। ये केन्द्र स्पन्दन से, अर्थात् शब्दों से प्रभावित होते हैं। इस प्रकार, मन्त्र का स्पन्दन भी एक सुखद, सुव्यवस्थित रोग हरण प्रभाव शारीरिक रूप पर डालता है। तथापि, रोग हरण मन्त्र का केवल पूर्ण रूप से तभी प्रभाव पड़ता है, जब कुछ विशेष शारीरिक और मानसिक अनुशासन का अनुसरण किया जाता है। इसका दुरुपयोग रोकने के लिए इन मन्त्रों को दीक्षित लोगों द्वारा मौखिक रूप से कह दिया जाता है और लिखकर नहीं देते।

  5. आध्यात्मिक मन्त्र

    एक आत्म अनुभूत गुरू अपने शिष्य को एक प्रभावी आध्यात्मिक मन्त्र देता है। गुरू इस मन्त्र को उन्हीं शिष्यों को देता है, जो अपने आध्यात्मिक विकास के लिए गंभीरतापूर्वक कार्य करते हैं और मोक्ष के लिए प्रयासरत रहते हैं। मन्त्र एक मन्त्र दीक्षा कार्यक्रम में दिया जाता है। एक आध्यात्मिक मन्त्र हमें आध्यात्मिक पथ का मार्गदर्शन करता है, हमारे ध्यान और एकाग्रता को गहन करता है और हमें आन्तरिक आशंकाओं और संदेहों से निजात दिलाने में सहायता करता है। यह दबाव चिन्ता और मन असन्तुलन व कठिन जीवन परिस्थितियों में भी बहुत लाभदायक होता है।

    मन्त्र आध्यात्मिक आकांक्षी के लिए एक प्रकाश पुंज के समान है, जो अज्ञान के अंधकार में पथ को प्रकाशित करता है। यह सामथ्र्य का एक महान स्तम्भ है जो हमें असहाय या परित्यक्त अवस्था में संरक्षण और सहायता देता है। मन्त्र हमारे ध्यान की 'आत्मा' है। मंत्र बिना ध्यान निष्फल है। मंत्र बिना ध्यान आत्मा बिना शरीर के समान है।

  6. बीज मंत्र

    लम्बे और लगातार अभ्यास के बाद शिष्य गुरू द्वारा प्रदत्त मंत्र के सार तक पहुंचता है। बीज मंत्र का प्रयोग क्रिया-अभ्यास और गहन ध्यान में होता है। बीज का अर्थ 'मूल' है। एक छोटे से अकेले बीज में एक पूरे वृक्ष का ढांचा समाया होता है। इसी प्रकार बीज मंत्र में सम्पूर्ण विश्व ब्रह्माण्ड की शक्ति समाई होती है। मंत्र शक्ति ईश्वर की अनुभूति करा सकती है या नहीं यह पूर्ण रूप से केवल शिष्य पर ही निर्भर करता है। यदि हम एक कंकर से किसी खास निशाने पर मारना चाहते हैं तो हमारी सफलता हमारे समाथ्र्य, एकाग्रता और क्या करना है, इस वृत्ति पर निर्भर है। इसी प्रकार आकांक्षी का अटूट विश्वास, अनुशासन, प्रेरणा और भक्ति ही है जो निर्धारित करता है कि मंत्र फलीभूत होगा या नहीं।

एक बार एक गुरू छोटे गांव में पधारे, वहां दो किसानों ने उनसे प्रार्थना की कि वे उनको मंत्र दें। गुरुजी ने उत्तर दिया कि उनको मंत्र देने से पूर्व वे उनकी एक परीक्षा लेंगे। दोनों किसानों को उन्होंने एक-एक सोयाबीन का बीज दिया और कहा कि वे तब तक इसकी अच्छी देखभाल करें जब तक वे दुबारा नहीं आते।

एक किसान तुरन्त अपने घर लौट गया और सोयाबीन को एक टोकरी में रखकर मजबूती से एक ताले में बंद कर दिया। उसको यह सबसे सुरक्षित तरीका लगा कि गुरुजी से मिला कीमती उपहार ऐसे ही रख दिया जाय। किन्तु दूसरे किसान ने सोचा, "कौन जाने गुरुजी कब वापस आएंगे, तब तक हो सकता है यह बीज खराब हो जाए या खो जाए।" अत: उसने निश्चय किया कि इस बीज को बो दिया जाए। शीघ्र ही एक कोमल नया पौधा दिखने लगा जिसे उसने भली-भांति जल से सींचा और उसकी देखभाल की। खेती पकाई के समय उस पौधे से काफी सोयाबीन पैदा हुआ। क्योंकि गुरुजी गांव में वापस नहीं आए, किसान ने बीजों की फिर बुआई कर दी और अगली गर्मी में फसल पकाई के समय बहुत बड़ी मात्रा में सोयाबीन प्राप्त हुआ।

तीन लम्बे वर्षों बाद गुरुजी अंत में उस गाँव में वापस लौटे, जहाँ किसानों ने उनसे एक बार फिर मंत्र देने के लिए कहा। 'पहले तुम मुझे वह बीज लाकर दो जो मैंने तुम्हें सुरक्षित रखने के लिए दिया था' - गुरुजी ने उनसे कहा। जल्दी से एक किसान अपनी रत्नजडि़त टोकरी गुरुजी के सम्मुख ले आया, किन्तु जब उसने उसे, खोला तब उसके भीतर केवल एक मरा हुआ कीड़ा मिला जो उसमें घुस गया था, जो उस बीज को खा चुका था। दूसरा किसान वहां बैठा था और प्रतीक्षा कर रहा था। गुरुजी ने उससे पूछा "तुम्हारा बीज कहां है?" किसान ने उत्तर दिया : "आपका दिया हुआ बीज इतना अधिक गुणा हो गया है कि मैं यहां लाने में असमर्थ हूं, लेकिन आप मेरे साथ चलें तो मैं आपको वह बीज दिखा सकता हूं।" वह गुरुजी को भण्डार कक्ष ले गया, जहां फसल से 100 किलो सोयबीन संग्रहित था। इस किसान ने गुरू से मंत्र प्राप्त किया जबकि दूसरे को कुछ और अधिक समय प्रतीक्षा करनी पड़ी।

एक व्यक्ति जो मंत्र प्राप्त करता है, इसका अभ्यास किये बिना ही अपनी जेब में रख लेता है, वह उस किसान के समान है जिसने सोयाबीन को एक बक्से में बन्द कर दिया था, जहां उसे समय का एक कीड़ा खा गया। केवल अभ्यास ही किसी को गुरू बनाता है।

मन्त्र का प्रयोग जीवन की किसी भी स्थिति में किया जा सकता है और साथ ही रोजाना दिनचर्या में आराम और दिमागी शांति के लिए किया जा सकता है। इससे स्पष्टता और सार्थक सोच की योग्यता आती है। सभी वस्तुओं की तरह, हमें अत्यधिक और अति अभ्यास से बचना चाहिए और कभी किसी से बलात् (जबरदस्ती) नहीं करना चाहिए। एक योगी सभी वस्तुओं में उदारता का प्रतिनिधित्व करता है। जैसा कि भगवद् गीता में (6/16) में कहा गया है, "योग में निपुणता न तो अधिक खाने वाले को मिलेगी और न भूखे रहने वाले को, न उसे जो बहुत अधिक सोता है और बहुत कम सोता है।"

सिद्धान्त में, एक आध्यात्मिक मंत्र कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता। अधिक से अधिक यह प्रभावहीन रहेगा, यदि सही आन्तरिक वृत्ति का अभाव है या अभ्यास अनियमित है। मंत्र से हमारा आध्यात्मिक अभ्यास और हमारा जीवन सफल हो जाता है।

जब यह हो जाता है, तब हमारे हृदय में निवास करने के लिए कोई आता है जिसे कोई भी हमसे कभी भी दूर नहीं ले जा सकता। हम फिर कभी अकेले अनुभव नहीं करते। मंत्र जीवन की परिस्थितियों में हमारी रक्षा करता है। हम जब भी मंत्र को सोचते हैं या इसे बोलते हैं, तब यह हमको एक सार्थक स्पन्दन से भर देता है। इस प्रकार यह हमारे आन्तरिक स्व को शुद्ध कर देता है। बाहरी शुद्धिकरण के लिए हमें साबुन और पानी की आवश्यकता होती है। मन, चेतना और बुद्धि की शुद्धता के लिए मंत्र हमें पूरी संतुष्टि देता है। मंत्र की शुद्ध ऊर्जा मन और चेतना से सभी कलंक और दोषों को दूर कर देती है। यह हमारे स्व (आत्मा) और ईश्वर के बीच सम्पर्क स्थापित करने की संभावना देता है और हमें सर्वोच्च चेतना से मिला देता है।

श्री तुलसीदास जी ने कहा था : "यदि आप अपने अन्दर और बाहर प्रकाश ढूंढना चाहते हैं, तो अपनी जिह्वा पर दिव्य नाम (मंत्र) का उज्जवल मोती सजा लें।"

  ज्ञानं ध्यानं शान्तं हरी