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Tuesday, 15 June 2021

वसुधैव कुटुंबकम् — सारी पृथ्वी ही एक परिवार

 


वसुधैव कुटुंबकम्

वसुधैव कुटुम्बकम् सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है[1] जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुम्बकम्)। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।

हम बिना भेदभाव के संम्पूर्ण पृथ्वी को एक परिवार के समान समझते हैं ।

पहले अधोलिखित श्लोक को पढे—-

अयं निजं परोवेत्ति गणना लघु चेतसाम् ।

उदार चरितानाम् तु वसुधैव कुटुंबकम् ।।


सारी पृथ्वी एक कुटुंब/परिवार के समान।”

 

अयं — यह

निज: — अपना

परो वा — या पराया

गणना — गिणती

लघुचेतसाम् — छोटे दिल वालों की

उदारचरितानाम् — उदार , बड़े , महान दिल वालों के

वसुधैव — पृथ्वी ही

कुटुंबकम् — परिवार

अर्थात्

यह मेरा है अथवा पराया है ऐसा केवल छोटे दिल वाले ही सोचते हैं । उदार दिल वालों के लिए तो सारी पृथ्वी ही एक परिवार की तरह है।

संकीर्ण मानसिकता वाले लोग ही अपने पराए में भेद रखतें हैं। उदार मानसिकता वाले लोग तो सबको अपना ही समझते हैं ।

ऊंच ,नीच ,तेरा ,मेरा ऐसी भावना उनके चित्त में नहीं आती।


*ईर्ष्यी घृणी त्वसंतुष्ट: क्रोधनो नित्यशड्कितः।*

*परभाग्योपजीवी च षडेते दुखभागिनः।।*

*अर्थात-* सभी से ईर्ष्या करने वाले, घृणा करने वाले, असंतोषी, क्रोधी, सदा संदेह करने वाले और पराये आसरे जीने वाले ये छः प्रकार के मनुष्य हमेशा दुखी रहते हैं। अतः यथा संभव इन प्रवृत्तियों से बचना चाहिए।

साँच कहौ सुन ले हों सबै, जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो’


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