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Monday, 13 April 2020

रहीम के नीतिपरक दोहे

जीवन परिचय : रहीम दास का जन्म 17 दिसंबर 1556 में हुआ था । उनका का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। इनके पिता बैरम खां सम्राट अकबर के संरक्षक थे। रहीमदास जी की माता का नाम सुल्तान बेग़म था। वे सम्राट अकबर के दरबार में नवरत्नो में से एक थे। उनकी मुख्य रचनायें ‘रहीम दोहावली’ ,:बरवै’ ,’नायिका भेद’ ,’मदनाष्टक’ ,’रास पंचाध्यायी’ और  ‘नगर शोभा’ आदि है । उन्होने तुर्की भाषा में लिखी बाबर की आत्मकथा ‘ तुजके बाबरी’ का फ़ारसी में अंनुवाद किया ।  रहीमदास जी की मृत्यु 1627 ईस्वी आगरा में हुयी थी । रहीम का व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा-संपन्न था। वे एक ही साथ सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, कवि एवं विद्वान थे। रहीम के दोहे में शब्दों की मात्रा बहुत ही कम है लेकिन इसका मर्म, महत्व और जीवन का सार अनंत है ।

रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
अर्थ - कुछ दिन रहने वाली विपदा अच्छी होती है। क्योंकि इसी दौरान यह पता चलता है कि दुनिया में कौन हमारा हित या अनहित सोचता है।
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
अर्थ - जब बुरे दिन आए हों तो चुप ही बैठना चाहिए, क्योंकि जब अच्छे दिन आते हैं तब बात बनते देर नहीं लगती।
रहिमन धागा प्रेम कामत तोड़ो छिटकाय 
टूटे से फिर ना मिलेमिले गाँठ परि जाय 
अर्थ - प्रेम रूपी धागा जब एक बार टूट जाता है, तो दोबारा पहले की तरह जोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है । अगर उसे जोड़ भी दिया जाये तो उसमे गांठ पड़ जाती है। प्रेम का रिश्ता बहुत ही नाज़ुक होता है। बिना सोचे समझे इसे तोड़ना उचित नहीं होता है। टूटे हुए रिश्ते फिर से जोड़ने पर संदेह हमेशा रह जाता है।
जो रहीम उत्तम प्रकृतिका करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहींलिपटे रहत भुजंग ।।
अर्थ - रहीमदास जी कहते हैं कि जो अच्छे स्वभाव के मनुष्य होते हैं,उनको बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती। जिस प्रकार जहरीले सांप सुगंधित चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई जहरीला प्रभाव नहीं डाल पाते।
रूठे सुजन मनाइएजो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोइएटूटे मुक्ता हार ।।
अर्थ - यदि आपका प्रिय (सज्जन व्यक्ति) सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए । यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए। क्योकि मोतियों की माला हमेशा सभी के मन को भाती है ।
जैसी परे सो सहि रहेकहि रहीम यह देह 
धरती ही पर परत हैसीत घाम  मेह ।।
अर्थ - रहीमदास जी कहते हैं कि जैसे इस धरती पर सर्दी, गर्मी और बारिश होती है । यह सब पृथ्वी सहन करती है । उसी तरह मनुष्य के शरीर को भी सुख और दुख उठाना और सहना सीखना चाहिए
खीरा सिर ते काटि केमलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन कोचाहिए यही सजाय।।
अर्थ - खीरे का कड़ुवापन दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है। कड़ुवे मुंह वाले के लिए कटु वचन बोलने वाले के लिए यही सजा उचित है ।
दोनों रहिमन एक सेजों लों बोलत नाहिं 
जान परत हैं काक पिकरितु बसंत के माहिं ।।
अर्थ - कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती। लेकिन जब वसंत ऋतु आती है, तो कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है ।
रहिमन अंसुवा नयन ढरिजिय दुःख प्रगट करेइ।
जाहि निकारौ गेह तेकस  भेद कहि देइ।।
अर्थ - आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से बता ही देता है ।
वे रहीम नर धन्य हैंपर उपकारी अंग 
बांटन वारे को लगेज्यों मेंहदी को रंग ।।
अर्थ - रहीम दास जी कहते है कि धन्य है वो लोग ,जिनका जीवन सदा परोपकार के लिए बीतता है, जिस तरह फूल बेचने वाले के हाथों में खुशबू रह जाती है । ठीक उसी प्रकार परोपकारियों का जीवन भी खुश्बू से महकता रहता है ।
मन मोटी अरु दूध रसइनकी सहज सुभाय 
फट जाये तो  मिलेकोटिन करो उपाय ।।
अर्थ - रस, फूल, दूध, मन और मोती जब तक स्वाभाविक सामान्य रूप में है ,तब तक अच्छे लगते है । लेकिन यह एक बार टूट-फट जाए तो कितनी भी युक्तियां कर लो वो फिर से अपने स्वाभाविक और सामान्य रूप में नहीं आते ।
बिगड़ी बात बने नहींलाख करो किन कोय 
रहिमन फाटे दूध कोमथे  माखन होय ।।
अर्थ - रहीमदास कहते हैं कि मनुष्य को बुद्धिमानी से व्यवहार करना चाहिए । क्योंकि अगर किसी कारण से कुछ गलत हो जाता है, तो इसे सही करना मुश्किल होता है, क्योंकि एक बार दूध खराब हो जाये, तो हजार कोशिश कर ले उसमे से न तो मक्खन बनता है और न ही दूध ।
रहिमन मनहि लगाईं कैदेख लेहूँ किन कोय 
नर को बस करिबो कहानारायण बस होय ।।
अर्थ - रहीमदास जी कहते हैं कि यदि आप अपने मन को एकाग्रचित रखकर काम करेंगे, तो आप अवश्य ही सफलता प्राप्त कर लेंगे। उसी प्रकार मनुष्य भी एक मन से ईश्वर को चाहे तो वह ईश्व को भी अपने वश में कर सकता है ।
जाल परे जल जात बहितजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को तऊ  छाँड़ति छोह॥
अर्थ - इस दोहे में रहीम दास जी ने मछली के जल के प्रति घनिष्ट प्रेम को बताया है। मछली पकड़ने के लिए जब जाल पानी में डाला जाता है तो जाल पानी से बाहर खींचते ही जल उसी समय जाल से निकल जाता है। परन्तु मछली जल को छोड़ नहीं पाती । वह पानी से अलग होते ही मर जाती है।
तरुवर फल नहिं खात हैसरवर पियहि  पान 
कहि रहीम पर काज हितसंपति सँचहि सुजान॥
अर्थ  - जिस प्रकार पेड़ अपने फल को कभी नहीं खाते हैं, तालाब अपने अन्दर जमा किये हुए पानी को कभी नहीं पीता है। उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति  भी अपना इकट्ठा किये हुए धन से दूसरों का भला करते हैं।
थोथे बादर क्वार केज्यों ‘रहीम’ घहरात 
धनी पुरुष निर्धन भयेकरैं पाछिली बात 
अर्थ  - जिस प्रकार क्वार के महीने में आकाश में घने बादल दीखते हैं पर बिना बारिश किये वो बस खाली गड़गड़ाने की आवाज़ करते हैं  । उस प्रकार जब कोई अमीर व्यक्ति गरीब हो जाता है ,तो उसके मुख से बस  अपनी पिछली बड़ी-बड़ी बातें ही सुनाई पड़ती हैं, जिनका कोई मूल्य नहीं होता।
रहिमन निज मन की व्यथामन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सबबाटि  लैहै कोय 
अर्थ - रहीमदास जी इस दोहे में हमें अपने मन के दुख को अपने मन में ही रखना चाहिए । क्योंकि  दुनिया में कोई भी आपके दुख को बांटने वाला नहीं है। इस संसार में बस लोग दूसरों के दुख को जान कर उसका मजाक उड़ाना जानते हैं ।
एकै साधे सब सधैसब साधे सब जाय 
रहिमन मूलहिं सींचिबोफूलै फलै अघाय॥
अर्थ - इस दोहे में दो अर्थ दृष्टिगत है ,जिस प्रकार किसी पौधे के जड़ में पानी देने से वह अपने हर भाग तक पानी पहुंचा देता है । उसी प्रकार मनुष्य को भी एक ही भगवान की पूजा-आराधना करनी चाहिए । ऐसा करने से ही उस मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण होंगे। दूसरा अर्थ यह है कि जिस प्रकार पौधे को जड़ से सींचने से ही फल फूल मिलते हैं । उसी प्रकार मनुष्य को भी एक ही समय में एक कार्य करना चाहिए ।  तभी उसके सभी कार्य सही तरीके से सफल हो पाएंगे।
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय 
उदधि बड़ाई कौन हेजगत पिआसो जाय 
अर्थ - रहीम दास जी इस दोहे में  कीचड़ का पानी बहुत ही धन्य है ।क्योंकि उसका पानी पीकर छोटे-मोटे कीड़े मकोड़े भी अपनी प्यास बुझाते हैं । परन्तु समुद्र में इतना जल का विशाल भंडार होने के पर भी क्या लाभ ? जिसके पानी से प्यास नहीं बुझ सकती है। यहाँ रहीम जी कुछ ऐसी तुलना कर रहे हैं ,जहाँ ऐसा व्यक्ति जो गरीब होने पर भी लोगों की मदद करता है । परन्तु एक ऐसा भी व्यक्ति , जिसके पास सब कुछ होने पर भी वह किसी की भी मदद नहीं करता है ।अर्थात परोपकारी व्यक्ति ही महान होता है।
बिगरी बात बनै नहींलाख करौ किन कोय 
रहिमन फाटे दूध कोमथे  माखन होय॥
अर्थ - रहीमदास जी इस दोहे में कहते हैं जिस प्रकार फटे हुए दूध को मथने से मक्खन नहीं निकलता है । उसी प्रकार प्रकार अगर कोई बात बिगड़ जाती है तो वह दोबारा नहीं बनती।
रहिमन देखि बड़ेन कोलघु  दीजिए डारि 
जहाँ काम आवे सुईकहा करे तलवारि
अर्थ - रहीमदास जी ने इस दोहे में बहुत ही अनमोल बात कही है। जिस जगह सुई से काम हो जाये वहां तलवार का कोई काम नहीं होता है। हमें समझना चाहिए कि हर बड़ी और छोटी वस्तुओं का अपना महत्व अपने जगहों पर होता है । बड़ों की तुलना में छोटो की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
रहिमन निज संपति बिनाकोउ  बिपति सहाय 
बिनु पानी ज्यों जलज कोनहिं रवि सकै बचाय॥
अर्थ - रहीमदास जी इस दोहे में बहुत ही महत्वपूर्ण बात कह रहे है। जिस प्रकार बिना पानी के कमल के फूल को सूखने से कोई नहीं बचा सकता ।उसी प्रक्रार मुश्किल पड़ने पर स्वयं की संपत्ति ना होने पर कोई भी आपकी मदद नहीं कर सकता है। रहीम जी इस दोहे के माध्यम से संसार के लोगों को समझाना चाहते हैं की मनुष्य को अपनी संपत्ति का संचय करना चाहिए, ताकि मुसीबत में वह काम आये।
रहिमन पानी राखियेबिन पानी सब सून।
पानी गये  ऊबरेमोतीमानुषचून
अर्थ - रहीम जी कहते हैं इस संसार में पानी के बिना सब कुछ बेकार है ।इसलिए पानी को हमें बचाए रखना चाहिए। पानी के बिना सब कुछ व्यर्थ है चाहे वह मनुष्य, जीव-जंतु हों या कोई वस्तु। ‘मोती’ के विषय में बताते हुए रहीम जी कहते हैं पानी के बिना मोती की चमक का कोई मूल्य नहीं है। ‘मानुष’ के सन्दर्भ में पानी का अर्थ मान-सम्मान या प्रतिष्ठा को बताते हुए उन्होंने कहा है जिस मनुष्य का सम्मान समाप्त हो जाये उसका जीवन व्यर्थ है।
छिमा बड़न को चाहियेछोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौजो भृगु मारी लात॥
अर्थ - हीमदास जी कहते है जिस प्रकार कोई कीड़ा अगर लात मारता है तो कोई फर्क नहीं पड़ता है । उसी प्रकार छोटे यदि गलतियाँ करें तो उससे किसी को कोई हानि नही पहुँचती है । अतः बड़ों को उनकी गलतियों को माफ़ कर देना चाहिये ।
रहिमन ओछे नरन सोबैर भली  प्रीत 
काटे चाटे स्वान केदोउ भाँती विपरीत ।।
अर्थ - गिरे हुए लोगों से न तो दोस्ती अच्छी होती हैं, और न तो दुश्मनी. जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों ही अच्छा नहीं होता।
पावस देखि रहीम मनकोइल साधे मौन 
अब दादुर वक्ता भएहमको पूछे कौन ।।
अर्थ - वर्षा ऋतु को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया है ।अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमारी तो कोई बात ही नहीं पूछता । अभिप्राय यह है कि कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रह जाना पड़ता है. उनका कोई आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता है ।
“रहिमन’ वहां न जाइये, जहां कपट को हेत|
हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत|”
अर्थ - ऐसी जगह कभी नहीं जाना चाहिए, जहां छल-कपट से कोई अपना मतलब निकालना चाहे। हम तो बड़ी मेहनत से पानी खींचते हैं कुएं से ढेंकुली द्वारा, और कपटी आदमी बिना मेहनत के ही अपना खेत सींच लेते हैं।
जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं|
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं |”
अर्थ - रहीम अपने दोहें में कहते हैं की किसी भी बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन कम नहीं होता, क्योकी गिरिधर को कान्हा कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती |
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग|
बाँटन वारे को लगे, ज्यो मेहंदी को रंग |”
अर्थ - रहीमदास जी ने कहा की वे लोग धन्य हैं, जिनका शरीर हमेशा सबका उपकार करता हैं | जिस प्रकार मेहंदी बाटने वाले पर के शरीर पर भी उसका रंग लग जाता हैं उसी तरह परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता हैं |
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान.
 रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान |”
अर्थ - सारा संसार जानता हैं की खैरियत, खून, खाँसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब का नशा छुपाने से नहीं छुपता हैं |
जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही इतराय|
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय |”
अर्थ - लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत इतराते हैं. वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में ज्यादा फ़र्जी बन जाता हैं तो वह टेढ़ी चाल चलने लता हैं |
चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह|
जिनको कुछ नहीं चाहिये, वे साहन के साह |”
अर्थ - जिन लोगों को कुछ नहीं चाहिये वों लोग राजाओं के राजा हैं, क्योकी उन्हें ना तो किसी चीज की चाह हैं, ना ही चिन्ता और मन तो पूरा बेपरवाह हैं |
जे गरिब पर हित करैं, हे रहीम बड|
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग |”
अर्थ - जो लोग गरिब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं. जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना हैं |
मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय|
फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय |”
अर्थ -  मन, मोती, फूल, दूध और रस जब तक सहज और सामान्य रहते हैं तो अच्छे लगते हैं लेकिन अगर एक बार वो फट जाएं तो कितने भी उपाय कर लो वो फिर से सहज और सामान्य रूप में नहीं आते |
रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ,
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ.
अर्थ - रहीम कहते हैं की आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा.
समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात.
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात.
अर्थ - रहीम कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है. सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है.
ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों.
तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै.
अर्थ - ओछे मनुष्य का साथ छोड़ देना चाहिए. हर अवस्था में उससे हानि होती है – जैसे अंगार जब तक गर्म रहता है तब तक शरीर को जलाता है और जब ठंडा कोयला हो जाता है तब भी शरीर को काला ही करता है.
वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर !
अर्थ - वृक्ष कभी अपने फल नहीं खाते, नदी जल को कभी अपने लिए संचित नहीं करती, उसी प्रकार सज्जन परोपकार के लिए देह धारण करते हैं !
लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार जा
हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार !
अर्थ - रहीम विचार करके कहते हैं कि तलवार न तो लोहे की कही जाएगी न लोहार की, तलवार उस वीर की कही जाएगी जो वीरता से शत्रु के सर पर मार कर उसके प्राणों का अंत कर देता है.
तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास !
अर्थ - जिससे कुछ पा सकें, उससे ही किसी वस्तु की आशा करना उचित है, क्योंकि पानी से रिक्त तालाब से प्यास बुझाने की आशा करना व्यर्थ है.
माह मास लहि टेसुआ मीन  परे थल और
त्यों रहीम जग जानिए, छुटे आपुने ठौर !
अर्थ - माघ मास आने पर  टेसू का वृक्ष और पानी से बाहर पृथ्वी पर आ पड़ी मछली की दशा बदल जाती है. इसी प्रकार संसार में अपने स्थान से छूट जाने पर  संसार की अन्य वस्तुओं की दशा भी बदल जाती है. मछली जल से बाहर आकर मर जाती है वैसे ही संसार की अन्य वस्तुओं की भी हालत होती है.
रहिमन नीर पखान, बूड़े पै सीझै नहीं
तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं !
अर्थ - जिस प्रकार जल में पड़ा होने पर  भी पत्थर नरम नहीं होता उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति की अवस्था होती है ज्ञान दिए जाने पर भी उसकी समझ में कुछ नहीं आता.
वरू रहीम  कानन भल्यो वास करिय फल भोग
बंधू मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग  !
अर्थ - रहीम कहते हैं कि निर्धन होकर बंधु-बांधवों के बीच रहना उचित नहीं  है इससे अच्छा तो यह है कि वन मैं जाकर रहें और फलों का भोजन करें.
राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ
जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ  !
अर्थ - रहीम कहते हैं कि यदि होनहार अपने ही हाथ में होती, यदि  जो होना है उस पर हमारा बस होता तो ऐसा क्यों होता कि राम हिरन के पीछे गए और सीता का हरण हुआ. क्योंकि होनी को होना था – उस पर हमारा बस न था इसलिए तो   राम स्वर्ण मृग के पीछे गए  और  सीता को रावण हर कर  लंका ले गया.
रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय
भीति आप पै डारि के, सबै पियावै तोय  !
अर्थ - रहीम कहते हैं कि उस व्यवहार की सराहणा की जानी चाहिए जो घड़े और रस्सी के व्यवहार के समान हो घडा और रस्सी स्वयं जोखिम उठा कर दूसरों को जल पिलाते हैं जब घडा कुँए में जाता है तो रस्सी के टूटने और घड़े के टूटने का खतरा तो रहता ही है.
निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ
पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ  !
अर्थ - रहीम कहते हैं कि अपने हाथ में तो केवल कर्म करना ही होता है सिद्धि तो भाग्य से ही मिलती है जैसे चौपड़ खेलते समय पांसे तो अपने हाथ में रहते हैं पर दांव क्या आएगा यह अपने हाथ में नहीं होता.

Saturday, 11 April 2020

FIND YOUR OWN IKIGAI

LAW OF ATTRACTION IN DAILY LIFE
The more you become a love-based person, instead of a fear-based person, then more love will come back and you attracted it from the love you sent out. Every time you feel a negative energy, feeling, or behaviour, turn it around into a positive one to you attract the positive instead. Affirmations are very helpful for helping to shift thoughts from negative to positive. Maintaining a positive outlook and relative happiness is a good start. The Law of Attraction is a philosophical concept of “like energy attracts like energy.” If you think positive, then you will look at things in your life in a brighter light. If you have negative thoughts, then you will see everything in a bad way.
The present moment is the only reality and the basis of attraction. Based on our emotional attitude to the present moment, is what we attract for the next moment to come.
In Japan, millions of people have ikigai (pronounced Ick-ee-guy)— a reason to jump out of bed each morning.
In Japanese culture, there is this concept called “ikigai,” which loosely translates as “reason for being.” Every person, it is believed, has an ikigai that they must search for. The search is long and deeply personal, but once your ikigai is found, it is what you devote your life to. It is your calling, your one true purpose.
The secret to a long and happy life is not to live in the hope of a great life tomorrow. It is to live with intention today.
IKIGAI: The art of staying young while growing old Ikigai urges individuals to simplify their lives by pursuing what sparks joy for them * Marie 'KonMari' Kondo *
IKIGAI resembles to Ying and Yang or Mojo “Good to Great” soul searching discovers my own genius like concepts.

What’s your reason for getting up in the morning?
The Japanese island of Okinawa, where ikigai has its origins, is said to be home to the largest population of centenarians in the world.
Could the concept of ikigai contribute to longevity?

Dan Buettner, author of Blue Zones: Lessons on Living Longer from the People Who’ve Lived the Longest, believes it does.

Buettner suggests making three lists: your values, things you like to do, and things you are good at. The cross section of the three lists is your ikigai.

Studies show that losing one’s purpose can have a detrimental effect.

American mythologist and author Joseph Campbell once said, “My general formula for my students is “Follow your bliss.” Find where it is, and don’t be afraid to follow it.”

“Your ikigai is at the intersection of what you are good at and what you love doing,” says Hector Garcia, the co-author of Ikigai: The Japanese Secret to a Long and Happy Life. He writes, “Just as humans have lusted after objects and money since the dawn of time, other humans have felt dissatisfaction at the relentless pursuit of money and fame and have instead focused on something bigger than their own material wealth. This has over the years been described using many different words and practices, but always hearkening back to the central core of meaningfulness in life.”

ikigai is seen as the convergence of four primary elements:
·         What you love (your passion)
·         What the world needs (your mission)
·         What you are good at (your vocation)
·         What you can get paid for (your profession)



Ikigai can be thought of as the combination of (1) what you love, (2) what the world needs, (3) what you can be paid for and (4) what you are good at.  
Then there are intersections between these too: 
  • Love + need = Mission 
  • Need + pay = Vocation 
  • Pay + good at =Profession 
  • Good at + love = Passion 
The key takeaway from this episode is to learn the concept, reflect on it, and replace it for “passion”. 

Discovering your own ikigai is said to bring fulfilment, happiness and make you live longer.

Want to find your Ikigai? Ask yourself the following four questions:

1. What do I love?
2. What am I good at?
3. What can I be paid for now — or something that could   transform into my future hustle?
4. What does the world need?

In their book Ikigai The Japanese Secret to a Long and Happy Life, Hector Garcia and Francesc Miralles break down the ten rules that can help anyone find their own ikigai.

1. Stay active and don’t retire
2. Leave urgency behind and adopt a slower pace of life
3. Only eat until you are 80 per cent full
4. Surround yourself with good friends
5. Get in shape through daily, gentle exercise
6. Smile and acknowledge people around you
7. Reconnect with nature
8. Give thanks to anything that brightens our day and makes us feel alive.
9. Live in the moment
10. Follow your ikigai

What you deeply care about can unlock your ikigai
Philosopher and civil rights leader Howard W Thurman said, “Ask what makes you come alive and go do it.” … “Don’t ask what the world needs. Ask what makes you come alive, and go do it. Because what the world needs is people who have come alive.”
The problem for millions of people is that they stop being curious about new experiences as they assume responsibilities and build routines.
Their sense of wonder starts to escape them.
But you can change that, especially if you are still looking for meaning and fulfilment in what you do daily.
Albert Einstein encourages us to pursue our curiosities. He once said:
“Don’t think about why you question, simply don’t stop questioning. Don’t worry about what you can’t answer, and don’t try to explain what you can’t know. Curiosity is its own reason. Aren’t you in awe when you contemplate the mysteries of eternity, of life, of the marvelous structure behind reality? And this is the miracle of the human mind — to use its constructions, concepts, and formulas as tools to explain what man sees, feels and touches. Try to comprehend a little more each day. Have holy curiosity.”
A classic example is Steve Jobs’ curiosity for typefaces which led him to attend a seemingly useless class on typography and to develop his design sensibility.
Later, this sensibility became an essential part of Apple computers and Apple’s core differentiator in the market.
We are born curious. Our insatiable drive to learn, invent, explore, and study deserves to have the same status as every other drive in our lives.
Fulfilment is fast becoming the main priority for most of us. Millions of people still struggle to find what they are meant to do. What excites them. What makes them lose the sense of time. What brings out the best in them.
“Our intuition and curiosity are very powerful internal compasses to help us connect with our ikigai,” Hector Garcia and Francesc Miralles write.
What is the one simple thing you could do or be today that would be an expression of your ikigai?
Find it and pursue it with all you have, anything less is not worth your limited time on planet earth.

How can you live with purpose today, to live a longer and healthier life?

As ever, I am interested to hear your thoughts, comments, and experiences. Please share them in the comments section below.

Friday, 10 April 2020

(YOU BECAME I; I BECAME YOU) - AMIR Khusrow



Man tu shudam, Tu man shudi - Amir Khusrow

मन तू शुदम तू मन शुदी
मन तन शुदम तू जां शुदी
ताकस न गोयद बाद अज़ीं
मन दीगरम तू दीगरी 



Mun tu shudam, tu mun shudi,
Mun tan shudam, tu jaan shudi;
Taakas na goyad, baad azeen,
Mun deegaram tu deegari;
                           (A Farsi/ Persian couplet)

These lines of Amir Khosrow which means “I have become you, and you me, I am the body ,you soul, so that no one can say hereafter, that you are someone and me someone else,” inspired me to write this poem “Tu Mein - Mein tu ho Gaya,” whose first four lines are translation of above lines.

तू मै ,मै तू हो गया,

मै जिस्म हूँ,तू रूह मेरी,
कहने को अब है क्या बचा,                                            
न तू मुझसे न मै तुझसे जुदा।

Thursday, 9 April 2020

Tera Kiya Meetha Lage - Beautiful lines from GURU GRANTH SAHIB



Tera Kiya Meetha Lage, Har Naam Padarath Nanak Mange - Guru Sri Guru Arjan Dev ji

"Sweet is Your will, O God; Your actions seem so sweet to me. Nanak begs for the treasure of the Naam, the Name of the Lord. ||2||42||93||

Poetry by Kabir

Saajan Hum Tum Ek Hain Aur Kahan Sunan Ko Do
Mann Sey Mann Ko Toliye So Do Man Kabhau Na Ho – Saint Kabir

Translation:
Saajan (O Beloved), Hum Tum (I and You), Ek Hain (are One).
Aur (and), Kahan Sunan Ko (for speaking and listening), Do (two).
In other words, 'we are two for the sake of communication via language (speaking and listening)'.
Mann Se Mann Ko Toliye ('weigh our heart with the Universe's heart' or 'weight the wish of our heart with the wish of the Universe's heart').
So Do Man Kabhau Na Ho (these two hearts are never two). In other words, the (wishes of) these two hearts are aligned ('one' / exactly the same).
Poetry by Guru Nanak
Hukum Rajai Chalna, Nanak Likheya Naal – Guru Nanak

Translation:
Hukum Rajai (Will of God), Chalna (to walk), Nanak Likheya Naal (Nanak thus says). In other words, 'walking according to the Will of God is the key' where walking denotes 'living our life'.