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Thursday, 5 May 2022

घर और मन को #स्वच्छ रखें!

सुख-समृद्धि के लिए लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी साफ-सुथरे घरों में ही प्रवेश करती हैं गंदे घरों में नहीं। घर साफ-सुथरा और स्वच्छ है तो उसमें रहने वाले भी स्वस्थ और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर होंगे

पर इन सबके बीच हम कभी ऐसा क्यों नहीं करते कि घर की सफाई के साथ-साथ अपने मन को…अपने वचारों को भी साफ़ करें, उनमे भी स्वच्छता और शुद्धता का प्रवाह करें…पुराने अनुपयोगी विचारों को बाहर करों और नए उर्जावान और

सकारात्मक विचारों से अपने मन को अपने चिंतन को सजाएं!

हे ईश्वर एक आईना कुछ ऐसा बना दे
जो चेहरा नहीं नीयत दिखा दे।

कई बार लोग ऐसा महसूस करते हैं कि काफी परिश्रम और प्रयत्न के बाद भी धन नहीं मिलता या मनचाही सफलता नहीं मिलती. कभी मेहनत के अनुसार आपको पैसे नहीं मिलते तो कभी मन माफिक नौकरी नहीं मिलती. व्यापारी हैं तो व्यापार में बरकत नहीं है ! बाहरी स्वच्छता ही नहीं आंतरिक स्वच्छता भी महात्वपूर्ण है। कमोबेश हमारे मन की स्थिति भी सामान जैसी ही रहती है। उसमें अच्छे-बुरे, उपयोगी-अनुपयोगी असंख्य विचारों का तांता लगा रहता है। विचारों का प्रवाह इतना तीव्र होता है कि हमें पता ही नहीं चलता कि कौन सा विचार उपयोगी है और कौन सा नहीं। इसके कारण हमारे लक्ष्य हमेशा अस्पष्ट रहते हैं जीवन में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाती। जिस प्रकार इस भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में हमें रोज विधिवत सफाई का मौका नहीं मिलता वैसे ही हमें अपने विचारों को भी सकारात्मक बनाने का भी अलग से वक़्त नहीं मिलता।


बरकत के लिए : बरकत आती है साफ नीयत, साफ शरीर और साफ घर से. मन, शरीर और घर साफ-सुथरा और स्वच्छ रहेगा तो घर में बरकत रहेगी. साफ नीयत के लिए दान दें, साफ  शरीर के लिए पंच स्नान और व्रत करें, स्वच्छ घर के लिए समुद्री नमक से पोंछा लगाएं और घर का अटाला घर बाहर कर दें. 

यह एक तथ्य भी है कि बाहरी वातावरण का प्रभाव हमारे अन्दर की सोच पर भी पड़ता है. अतः जब बाहरी वातावरण में सकारात्मकता हो तो यही समय अपने अन्दर की सफाई के लिए भी सबसे अच्छा है।

रोजाना योग करें 
योग केवल शरीर को सेहतमंद नहीं रखता बल्कि निरंतर योग करने से सहनशीलता बढ़ने के साथ आप दिमागी तौर से भी मजबूत होते हैं। आपको छोटी-छोटी बातें परेशान नहीं करती है। आप रोजाना सुबह और रात के समय ध्यान भी लगा सकते हैं। 

गीता सार याद रखें 
दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं है। सुख-दुःख सभी बदलते रहते हैं। इसका अर्थ यह है कि जिन परिस्थितियों ने आपको उदास किया हुआ है, वे आज नहीं तो कल बदलेगी जरूर इसलिए अपने आपको भरोसा दिलाएं कि बुरा समय बदलेगा। परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है। 

खुशहाली चाहते हैं तो थोड़ा समय निकालिए

अगर धरती पर खुशहाली लानी है तो हर आत्मा को, हर दाग, जो पिछले कई जन्मों से लाए हुए हैं, उन्हें साफ करना है। जैसे कोई मुझसे प्यार ही नहीं करता, कोई मेरा सम्मान नहीं करता, किसी को मेरा मोल नहीं है, जिसे देखो मुझे इस्तेमाल कर छोड़ देता है। ये आवाजें जब अंदर चलती रहती हैं, तो आत्मा की पवित्रता खत्म हो जाती है।

साफ़ की हुई धूल भी तो कुछ दिनों बाद फिर से जमना शुरू हो जाती है, लेकिन तब उसे साफ़ करने में अधिक मेहनत नहीं लगती थोड़ी सी डस्टिंग से सतह साफ़ हो जाती है। इसी तरह आप एक बार अपने मन से किसी नकारात्मक विचार को निकाल देंगे तो पुनः उसके आने पर उस पर काबू करना आसान होगा। घर के साथ मन के कोने-कोने की भी सफाई करें।

इस सुरदुर्लभ मानव शरीर में प्राप्त हो सकने वाली शुभ सम्वेदनाओं में अवरोध उत्पन्न न हो उसके लिए यह आवश्यक है कि हमारी गतिशीलता के द्वार खुले रहें। शरीर के स्वस मन के स्वच्छ, समाज के सभ्य रहने पर ही हम उस आनन्द को प्राप्त कर सकते हैं, उस तक्ष को पूर्ण कर सकते हैं जिसके लिए यह जन्म हमें मिला है। यह तीन ही विभूतियाँ इस संसार में हैं, इन्हीं के आधार पर अन्य सब प्रकार की सम्पदायें उपलब्ध होती है। जिसके पास भारत होगा उसे धन की क्या कमी रहेगी? जिसके पास अमृत होगा उसे मृत्यु से क्यों डरना पड़ेगा? जिसके घर में कल्पवृक्ष होगा उसकी कोई ना क्यों अपूर्ण रहेगी? स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज की गणना पारस, अमृत और कल्पवृक्ष से की जा सकती है। पुराणों में वर्णित ये तीन विभूतियों आहे काल्पनिक ही सिद्ध क्यों न हों पर यह प्रत्यक्ष विभूतियाँ ऐसी हैं जिन का सत्परिणाम हाथों हाथ देखा जा सकता है।

शरीर को आलस, असंयम, उपेक्षा एवं दुर्व्यसनों में पड़ा रहने दिया जाय तो उसकी सारी विशेषताएँ नष्ट हो जायेंगी। इसी प्रकार मन को अव्यवस्थित पड़ा रहने दिया जाय, उसे कुसंस्कार ग्रस्त होने से संभाला न जाय तो निश्चय ही वह हीन स्थिति को पकड़ लेगा। पानी का स्वभाव नीचे की तरफ बहना है, ऊपर उठाने के लिए बहुत प्रयत्न करते हैं तब सफलता मिलती है। मन का भी यही हाल है यदि उसे रोका, संभाला, समझाया, बाँधा और उठाया न जाय तो उसका कुसंस्कारी दुर्गुणी, पतनोन्मुखी, आतसी एवं दीन-दरिद्र प्रकृति का बन जीना ही निश्चित है।

जिस तरह से हम अपने घर को साफ करते हैं, उसी तरह से समय-समय पर अपने मन-मस्तिष्क को भी साफ करना चाहिए। विचारों को भी व्यवस्थित करना जरूरी होता है। समय के साथ हमारा मन अनचाहे ही ऐसे विचारों व भावनाओं से भर जाता है, जिनसे अंतत: किसी का कल्याण नहीं होता। ऐसे विचारों में विस्फोट आपको बेचैनी के अंधेरे सुरंग में धकेल सकता है। इनसे समय रहते छुटकारा पाने की आवश्यकता है।


मन और मकान को वक्त वक्त

पर साफ करना बहुत जरूरी है

क्योंकि मकान में बेमतलब सामान और

मन में बेमतलब गलत फहमियां भर जाती हैं..

मन भर के जीयो

मन में भर के मत जीयो



Saturday, 30 April 2022

Akshaya Tritiya signifies never-ending prosperity

Akshaya Tritiya comes once a year on the third day (Tritiya) of the bright fortnight (Shukla Paksha) in the month of Vaishakha. This year, it is being celebrated on May 3, 2022.


Akshaya Tritiya is also known as Akha Teej considered to be one of the most auspicious days in the Hindu calendarIt is even more auspicious if the Muhurta falls on Rohini Nakshatra. It is celebrated by Hindus and Jains across the country. Akshaya is a term in Sanskrit that means no decay.  It is the day of multiplication whatever good deeds we do on this day gets multiplied. It is believed that this day brings good fortune and luck in your life.

According to Vedic Astrology, it is one of the best and the most sacred periods to begin a new venture, doing new purchases, investing in something, expanding the business, renovating the house, entering a new home or getting involved in a new relationship. It is believed that Akshaya Tritiya is the best occasion to attain immense success, growth, prosperity, well-being and to fulfil one’s desire.

Apart from the rush to purchase gold there are many other reasons why this day is very significant. Let’s look at few events happened on this auspicious day

(1) Lord Parashurama appeared on this day.

(2) Ganges descended to Earth on this day.

(3) This day marks the beginning of Treta-yuga.

(4) Sudama visited Krishna at Dwarka.

(5) Pandavas received Akshaya Patra from Sun God.

(6) Sage Vyas began dictating Mahabharat, his magnum opus, to Ganesh this very day.

(7) Adi Shankaracharya composed Kanakadhara Strota on this day.

(8) Kubera received his wealth and position as custodian of wealth.

(9) It is said that Goddess Anna Poorna Devi appeared on this day.

The whole 24 hours on the day of Akshaya Tritiya are considered to be auspicious and sacred and this is the day that offers peace by destroying the blockages caused due to Karma. It is believed that if one meditates on this day, that individual’s mind is calmed and all the negative thoughts that create a web of stress are destroyed. Through meditation and by offering prayers to the Supreme one can help fulfil their dreams through the mental power of visualizing and believing and through the power of affirmation.

Thus, to sum it up, Akshaya Tritiya is an auspicious day that is known to bestow good luck and offer success in all undertakings. It is a day where positivity is amplified and negative energies are destroyed. Akshaya (अक्षय) means never diminishing. Hence the benefits of doing any Japa, Yajna, Pitra-Tarpan, Dan-Punya on this day never diminish and remain with the person forever.


अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने।
धनं मे लभतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे॥

अक्षय तृतीया के दिन जरूर करें इन मंत्रों का जाप

  • लक्ष्मी बीज मंत्र – ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः॥
  • महालक्ष्मी मंत्र – ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
  • लक्ष्मी गायत्री मंत्र – ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
  • ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम:
  • धनाय नमो नम:
  • ॐ लक्ष्मी नम:
  • ॐ ह्रीं ह्रीं श्री लक्ष्मी वासुदेवाय नम:
  • लक्ष्मी नारायण नम:
  • पद्मानने पद्म पद्माक्ष्मी पद्म संभवे तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्
  • ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम:
  • ॐ धनाय नम:
  • ॐ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:
  • ऊं ह्रीं त्रिं हुं फट





Sunday, 24 April 2022

Visibility of things will make you #likeable.

It's an inconvenient truth, but being likable makes life significantly easier.

“People like people who are like themselves; or who are like they would like to be.”


Our likability is not entirely up to us. It depends on the context, our roles and functions within the group, the people around us, how much we have in common with them, their biases and our own, and a variety of other factors. Some people may never warm up to us no matter how likable we are. 

What makes someone likable? These are the most likable personality traits:

1.              Be funny.

2.              Be a good listener.

3.              Don’t judge.

4.              Be authentic.

5.              Show people that you like them.

6.              Smile.

7.              Be humble.

8.              Keep your promises.

9.              Keep in touch.

10.          Appear virtuous.


Fortunately, being likable is a skill you can develop over time, not something you either innately possess or don't. Here are a few tricks to help you get started:

1.   Never purchase that feeling of being likeable. If you do the right things, you will be admirable.

2.   Develop the Art of Listening. Listening is the secret to get other people attracted to you.

3.  Exude Positive Energy, Confidence, and Cheerfulness. Everyone wants to hang around a cheerful, positive, confident, and motivated person, for good reason.

4.   Appreciating Other People and Complimenting Them. People love people who appreciate and compliment them.

5.   Be positive and make them laugh. People only remember what you make them feel when they are with you. So, take that chance, be funny, and laugh together.

6.   Learn to laugh on your own experiences. This behavior shows them your self-confidence. You can’t imagine how confident people are attractive to others.

7.   Never complain. If you have problems, try to fix them rather than talk. Everyone has his own problems; they will only feel pity for you.

8.   Be honest and defend your values. Some people may conflict with you, but deep in their soul they respect you for being courageous.

9.  You should respect yourself first. Never let someone offend you. You must make limits that others should not go beyond.

10.   Don’t be judgmental. And don’t talk negatively about anyone.

11.   Appearance is important. If you take care of you and how you look, people will respect you.

12.   Compliment people when you introduce them to others. You will boost their self-confident, and they will associate a positive image with you.

13.   Your body language should be correct. Stand right, look straight in the eyes and smile.

14.   Smell nice. Some people are attracted to different smells. The nicer you smell; the more people will like you. Hygiene is at the top of the list to some people. Maintaining good hygiene is crucial.

15.   Never fake your emotions to anyone, EVER. You can acknowledge them, but don’t go out of your way to tell everyone how you feel. If you start unloading your emotional baggage on someone, you’ll exhaust them.

16.   Say please and thank you. Manners define who you are. Respect can only be earned if you show it too.

17.   Don't gossip about anybody. What goes around comes around. Nobody is going to like you if you try hard to fit in by making others look bad.

18.   Be professional in your job. Do it well. If you know what you're doing, keep going. People who waste time are least likely to be seen as productive. Most people like people that are hardworking.

19.   Don't be too sensitive. Be open about everything. Listen to what others have to say. Take in everything that's happening in the world.

20.   Finally, be yourself. Don’t emulate others. You’re unique and you’ve got your own quirks. Just be you.

When you take the time to like and value others you magically become likeable yourself. Be a good motivator and show interest. Words like Amazing, Awesome, beautiful enhances the likability. Remain down to earth.  This shows your humility and humbleness towards a person.

Friday, 22 April 2022

Ashva Sanchalan (Equestrian Pose) in Yoga….

Ashva Sanchalan Asana known as Equestrian Pose is a low lunge and falls into the category of balancing postures. The Sanskrit name Ashva Sanchalan Asana is derived from three words. Ashva meaning Horse, Sanchalan meaning movement and Asana meaning Posture. This Asana is practiced at the 4th and 9th position in Surya namaskar series. Practicing this asana stimulates abdominal organs.

The Ashva Sanchalan Asana / Horse Posture is a wonderful support to people who play sports, cycle, walk and jog regularly.

Steps to practice Ashva Sanchalan Asana (Equestrian Pose)

To achieve maximum benefits and to avoid any possible injury; it is very significant to know the right alignment of the body in the asana.

Base Position: Vajrasana (Thunderbolt Pose).

1. From Vajrasana stand on your knees keeping the knees and feet together.

2. Bring the right leg in front so that it forms a 90-degree angle between the thigh and the calf. The right thigh must be parallel to the floor. The knee should be aligned with the ankle.

3. Keep the arms by the side of right leg. Fingers touches the ground supporting the body to maintain the balance in the posture.

4. Rest the knee of the left leg on the floor. Look upwards.

5. This is the final position. Hold this position as long as it is comfortable. Do not strain the body.

6. To release the posture, bring the head down and then take the right leg back to sit in Vajrasana.

7. Follow the same steps with the other leg.

Variation 2:

In this variation, raise the arms above the head in namaste gesture. This will intensify the stretch of the thigh. One should practice this variation only after practicing the 1st variation for a week or so.

What is so special about Ashva Sanchalan asana?

This posture works on the entire lower half and core. Besides, it is useful to practice, as we use it to transition into different asanas.

What is the mantra of Ashva Sanchalan Asana?

The corresponding mantras for Ashva Sanchalan Asana are “Aum Bhanave Namah,” meaningSalutations to Bhanu, the shining one,” or the shorter bija mantra, “Om Hram.” This posture is thought to stimulate the Anahata, Manipura and Svadhisthana chakras.

Benefits of Ashva Sanchalan asana

  • Strengthens the lower body
  • Stretches the groin and hip flexors
  • Lengthens the spine, thereby stretching the chest
  • Therapeutic for indigestion, constipation, sciatica
  • Stimulates the abdominal organs
  • Tones the kidney and liver.
  • Builds willpower and determination

Ashva Sanchalan Asana or the equestrian pose is an amazing pose to stretch and tone the hips, legs, quadriceps, and groin. The asana also opens the chest and stretches the muscles of the back.

A lot of people suffer from tight hip flexors. Thus, the high and low lunges are great ways to reduce muscle tension.


Thursday, 21 April 2022

पारिजात वृक्ष की कहानी…

शास्त्रानुसार स्वर्गलोक या पृथ्वीलोक में पारिजात वृक्ष को सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है। आयुर्वेद में परिजात के वृक्ष को हारसिंगार कहा जाता है तथा हारसिंगार अर्थात पारिजात के फूलों का लक्ष्मी व शिवपूजन में अत्यधिक महत्व है। इस पेड़ के नीचे बैठने से पल भर में थकान ऊइन छू हो जाती है।

इसमें लगने वाले फूल भी अद्भूत किस्म के होते हैं क्योंकि ये फूल केवल रात में खिलते हैं और सुबह होने पर सभी मुरझा जाते हैं। अंग्रेज़ी में इसे 'नाइट जैस्मीन' कहते हैं.


हरिवंश पुराण के अनुसार पारिजात के वृक्ष को कल्पवृक्ष कहा गया है तथा इसकी उत्तपत्ति समुन्द्र मंथन से हुई थी। इस वृक्ष को देवराज इंद्र स्वर्गलोक ले गए थे। इसे छूने का अधिकार मात्र उर्वशी नामक अप्सरा को प्राप्त था, जिससे उर्वशी की सारी थकान दूर हो जाती थी। परिजात एकमात्र ऐसा वृक्ष है जिस पर बीज नहीं लगते व इसकी कलम बोने पर दूसरा वृक्ष नहीं लगता। इस अद्भुत वृक्ष पर पुष्प जरूर खिलते हैं लेकिन वे भी मात्र रात्री में तथा प्रातः होने पर सभी फूल मुरझा जाते हैं। इन फूलों को मूलत: लक्ष्मी पूजन हेतु उपयोग किया जाता है परंतु मात्र उन्हीं फूलों उपयोग किया जाता है जो स्वयं टूटकर गिरे हों। अतः शास्त्रों में पारिजात के फूल तोड़ना वर्जित कहा गया है।

स्वर्ग से लाया गया था पारिजात वृक्ष 

पारिजात को लेकर एक कथा ऐसी भी है कि यह एक राजकुमारी थी जिसे सूर्य से प्रेम हो गया था। लेकिन सूर्य ने इन्हें अपनाने से मना कर दिया। प्रेम में पारिजात ने शरीर का त्याग कर दिया और इसकी चिता से एक पौधा निकला जिसके फूल रात में खिलकर अपनी सुगंध से मन को मोह को लेते हैं। लेकिन सुबह सूर्य के निकलने से पहले ही बिखर जाते हैं। कहते हैं वह राजकुमारी ही पारिजात के वृक्ष के रूप में प्रकट हुई थी जैसे वृंदा की चिता की राख से तुलसी की उत्पत्ति हुई थी।